ढाई आखर प्रेम; राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे का पहला चरण दिनांक 28 सितंबर 2023 को भगत सिंह के जन्म दिवस से अलवर (राजस्थान) से शुरू होकर 02 अक्टूबर 2023 को महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर अलवर में समाप्त हुआ। उसी क्रम में 03 से 06 अक्टूबर तक क्रमशः छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड और उत्तर प्रदेश में एक-एक दिन की पदयात्रा के पश्चात तीसरे चरण के अंतर्गत पदयात्रा बिहार में 7 अक्टूबर 2023 को पटना में शुरू हुई।
8 अक्टूबर को मुज़फ़्फ़रपुर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण पार्क होता हुआ, छाता चौक पर रुक कर वहाँ पुष्पांजलि अर्पित कर जत्थे में शामिल रंगकर्मियों ने गीतों की प्रस्तुति दी। उसके बाद जत्था पैदल चलता हुआ लंगट सिंह कॉलेज पहुँचा। वहाँ गांधी स्मारक कूप तक जाकर फूल चढ़ाए गए। यही वह जगह है जहाँ गांधी जी चम्पारण जाने के क्रम में रुके थे। इस कूप का महत्व यह है कि, यहीं गांधी जी ने स्नान आदि क्रियाएँ सम्पन्न की थीं।
प्रेम, बंधुत्व, न्याय, समानता, मानवता के संदेश के साथ बिहार का यह सांस्कृतिक जत्था अन्य साहित्यिक सांस्कृतिक साथियों के साथ लोगों से मिलते, उनसे सीखते, गाते-बजाते हुए जगह-जगह भ्रमण कर रहा है। जत्था के साथी एक गीत गाते बढ़ रहे हैं, जिसे काफ़ी सराहा जा रहा है – “ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं”। यह जत्था देश में नफ़रत के खि़लाफ़ प्रेम को बाँटने के लिए देश के अनेक राज्यों से गुज़र रहा है।
बिहार के जत्थे में शामिल साथी गांधी, कबीर, रैदास, अम्बेडकर, भगत सिंह, तथा सूफ़ी और संत कवियों के प्रेम की जो हमारी विरासत है, उसे लोगों तक लेकर जा रहे हैं। रास्ते में जत्थे के साथियों को प्रेम मिल रहा है, सहयोग मिल रहा है। इस यात्रा का उद्देश्य प्रेम के साथ श्रम के गीत गाना भी है। कबीर के ताने-बाने से बनी यह चादर और गमछा हमारे श्रमिकों की पहचान है। श्रम में भी प्रेम का बीज तत्व छुपा होता है। हमारे देश की एक पुरानी सांस्कृतिक सामाजिक पहचान है, उसी को जन-जन तक पहुँचाना इस जत्थे का उद्देश्य है।
जत्था मुजफ्फरपुर से चल कर जमालाबाद आश्रम (मूसहरी प्रखण्ड) पहुँचा, जहां जय प्रकाश प्रभावती मुसहरी प्रवास स्वर्ण जयंती संवाद पदयात्रा का समापन हो रहा था। वहाँ जत्थे के साथियों ने उनसे मिलकर आपसी बातचीत के माध्यम से अपने-अपने उद्देश्यों का आदान-प्रदान किया। इस ‘ढाई आखर प्रेम’ के जत्थे में इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश नेतृत्व कर रहे थे। फिरोज अशरफ खान, बिहार इप्टा के कार्यवाह महासचिव और इप्टा के दूसरे साथी नेतृत्वकारी भूमिका अदा कर रहे हैं। प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से सत्येंद्र कुमार इस जत्थे के साथ हैं। इस जत्थे में इप्टा के साथ-साथ प्रलेस, जलेस, जसम, जन नाट्य मंच आदि संगठनों के साथियों का सहयोग है।
राकेश जी ने रास्ते में इस जत्थे के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। यह जत्था जमालाबाद में लोकनायक जयप्रकाश जी की यात्रा के समापन पर मिल रहा था, तो एक ऐतिहासिक वातावरण पैदा कर रहा था। इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि ‘एक यात्रा का समापन और दूसरी यात्रा की शुरुआत एक ऐसा बिंदु है जो हमें यह सीख देता है कि हम अपनी परंपरा, संस्कृति की शृंखला से इस तरह जुड़े हैं कि यह लगातार उस सामासिक संस्कृति को ज़िंदा ही नहीं रखता, उसे मज़बूत भी बनाता है। यह अनवरत चलने वाली प्रेम की धारा है, जो कहीं नहीं सूखती और न हम इसे सूखने देंगे; क्योंकि इसका सूख जाना आत्महत्या करना होगा किसी भी देश के लिए। हमारा संकल्प है कि हम गाँव के मज़दूरों, किसानों, महिलाओं आदि के संघर्षों, उनके गीतों से मिलकर एक समता, समानता, भाईचारे पर टिके समाज का निर्माण करेंगे। हम लोगों से सीखते हुए इस यात्रा को आगे बढ़ाएँगे।’
रिपोर्ट: सत्येन्द्र कुमार,
मीडिया प्रभारी, ढाई आखर प्रेम; राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था (बिहार)