संगीत: मणिमय मुखर्जी
|| मेरा तेरा मनुआँ कैसे एक होई रे ||
मैं कहता आँखिन की देखी, तू कहता कागज की लेखी
मैं कहता सुर झावन हारी, तू राख्यो उरझाई रे
मैं कहता तू जागत रहियो, तू रहता है सोई रे
मैं कहता निर्मोही रहियो, तू जाता है मोही रे
सतगुरु धारा निर्मल वाहे, वा में काया धोई रे
कहत कबीर सुनो भाई साधौ,तबही वैसा होई रे