‘ढाई आखर प्रेम: राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था’ के पंजाब चरण की शुरुआत 27 अक्टूबर को खटकर कलां से हुई। पंजाब के शहीद भगत सिंह नगर जिले में स्थित खटकर कलां को भगत सिंह का पैतृक गांव कहा जाता है, जहां से भगत सिंह और उनकी विरासत को याद करते हुए जत्थे की शुरुआत हुई।
जत्था का उद्देश्य सद्भाव, पारस्परिक सम्मान और मानव श्रम की गरिमा का संदेश फैलाते हुए जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ना है। उसी को चरितार्थ करते हुए भगत सिंह स्मारक के पास एक गुरुद्वारे में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने नेपाल के प्रवासी मजदूरों से उनके जीवन और आजीविका के मुद्दों पर बातचीत की। इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा, इप्टा पंजाब के महासचिव इंद्रजीत रूपोवाली और दीपक नाहर ने भी गुरुद्वारे में उपस्थित दर्शकों से संवाद किया।
भगत सिंह के शब्दों “इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है” को याद करते हुए प्रसन्ना और राकेश वेदा ने इस बात पर जोर दिया कि ये प्रेम, मानवता और सद्भाव के विचार हैं जो हमें उन लोगों से विरासत के रूप में मिली है जिन्होंने हमारे देश को आज़ाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी विरासत को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी और कर्तव्य है।
पदयात्रा जब आगे बढ़ी तो जत्थे में शहीद-ए-आजम भगत सिंह आदर्श विद्यालय के छात्र भी शामिल थे। उनकी ऊर्जावान भागीदारी ने जत्थे के सहयात्रियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया। उनके हाथों में जत्थे के झंडे और बैनर थे। भगत सिंह के पैतृक घर के पास स्थित गुरुद्वारे के प्रांगण में आज़ाद थिएटर ग्रुप के कलाकारों ने भगत सिंह के जेल जीवन पर नाटक प्रस्तुत किया. इसके बाद हमारे देश में चल रही सांप्रदायिक और धार्मिक नफरत और प्रतिद्वंद्विता पर आधारित एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया गया। प्रदर्शनों में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि धार्मिक झगड़े और सांप्रदायिकता से कभी भी किसी देश का भला नहीं होता। हम सभी भाई-बहन की तरह हैं, चाहे हम किसी भी धर्म को मानते हों।
पंजाब में इस क्षेत्र को दोआबा कहा जाता है। इसकी पहचान बड़े-बड़े घर और हवेलियाँ हैं। अधिकांश परिवार अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका में रह रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के प्रवासी मजदूर विषम परिस्थितियों में कृषि श्रमिक के रूप में यहाँ के खेतों में दिहाड़ी पर काम करते हैं। जब जत्था इन खेतों से गुजर रहा था तो मजदूरों को देख जत्था यात्री भी इन खेतों में कूद पड़े और इन मजदूरों की मदद करने लगे क्योंकि ‘श्रमदान’ भी जत्था का एक अभिन्न हिस्सा है। श्रमदान के दौरान प्रसन्ना ने इन मजदूरों से बातचीत भी की और उनकी कार्य स्थितियों के बारे में जानकारी ली। काम की प्रकृति के आधार पर, ये प्रवासी श्रमिक केवल 300-400 रुपये की दैनिक मजदूरी पाते हैं और उन्हें हर दिन काम भी नहीं मिलता। अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर एक जगह पर वे तपती धूप में पूरा दिन कड़ी मेहनत करते हैं, उनकी कड़ी मेहनत पूरे देश को भोजन प्रदान करती है। हालाँकि, राष्ट्र उन्हें और उनके परिवार को एक सभ्य जीवन और एक अच्छा भविष्य प्रदान नहीं कर सका।
एकजुटता के इस प्रदर्शन के बाद, जत्था यात्री गुरुदास गुरुद्वारा पहुंचे जहां उन्होंने बड़े उत्साह के साथ गुरु दा प्रसाद – लंगर (गुरुद्वारों में परोसा जाने वाला एक सामुदायिक भोजन) खाया।
गुना में एक कार्यक्रम में प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ‘प्यार ही नफरत और हिंसा का मुकाबला करने का एकमात्र तरीका है। कबीर से लेकर गुरु नानक और गांधी तक – सभी ने प्रेम और सद्भाव का संदेश फैलाते हुए अपना जीवन व्यतीत किया।’ पहले दिन के अंत में, प्रसन्ना ने थिएटर और अभिनय की कला पर युवा कलाकारों और थिएटर के इच्छुक लोगों के साथ बातचीत की।
जत्थे में संजीवन सिंह (अध्यक्ष, इप्टा पंजाब), इंद्रजीत रूपोवाली (महासचिव, इप्टा पंजाब), दीपक नाहर, बलकार सिंह सिद्धू (अध्यक्ष, इप्टा चंडीगढ़), के एन एस शेखों (महासचिव, इप्टा चंडीगढ़), देविन्दर दमन (थिएटर कलाकार), जसवन्त दमन (फिल्म कलाकार), जसवन्त खटकर, अमन भोगल, डॉ. हरभजन सिंह, परमिंदर सिंह मदाली, सत्यप्रकाश, रणजीत गमानु, बिब्बा कलवंत, रोशन सिंह, रमेश कुमार, कपन वीर सिंह, विवेक सहित कई थिएटर और फिल्म कलाकार शामिल हुए।
रपट – संतोष, इप्टा दिल्ली