किसी भी आयोजन के पूर्वरंग यानि ‘कर्टेन रेज़र’ का ख़ास महत्व होता है और इस पूर्वरंग की तैयारियां अपने आप में इसी शब्द को समेटे है। एक लंबे समय की मानसिक और ज़मीनी तैयारी से ही किसी आयोजन का पूर्वरंग संभव है। मुझे इसका अनुभव इस बार हुआ क्योंकि लगभग सभी राज्यों ने ढाई आखर प्रेम यात्रा से पूर्व एक स्थानीय आयोजन ज़रूर किया, निश्चित ही अब तक हुई यात्रा में हर एक राज्य की ढाई आखर प्रेम जत्था आयोजन समिति ने पर्याप्त श्रम किया जिससे यात्रा के प्रचार-प्रसार के साथ लोगों का जुड़ने का सिलसिला लगातार जारी है।
सांस्कृतिक पदयात्रा के बारे में लोगों की जिज्ञासा और सवाल के आधार पर ही यह बात दर्ज़ कर रही हूँ। इस बार आमने-सामने के अलावा लोग नई तकनीक के माध्यम से भी यात्रा के हर अपडेट से अपडेट हो रहे हैं और मुझे लगता है अलग-अलग क्षेत्रों के माहिर सामजिक-सांस्कृतिक कर्मियों की दर्ज़ बातें जो वीडियों के माध्यम से लोगों तक पहुँच रही है वो कहीं न कहीं सूक्ष्मता के स्तर पर अपना असर छोड़ रही है। ढाई आखर प्रेम यात्रा की वेबसाइट के माध्यम से हर दिन की रिपोर्ट पूरे देश में साझा की जा रही है। इस तैयारी के लिए भी लंबा समय विचार-विमर्श चला, आवश्यकता ने कुछ नया जोड़ा इस बार। सीमित संसाधनों और इच्छा-शक्ति के साथ एक सेंट्रल कोओर्डिनेशन टीम बनीं जिसके हिस्से कुछ ऐसे कामों की जिम्मेदारी आई जो कहीं न कहीं अलग-अलग राज्यों के साथियों को साथ मिलकर काम करने के अभ्यास में सहायक बनीं, ढाई आखर प्रेम यात्रा के स्वरूप पर संवाद की सेतु बनीं। यदि सही मायनों में कहा जाए तो यह टीम लगातार लोगों से संपर्क, प्रचार-प्रसार के साथ तमाम जगहों की रिपोर्ट, अनुवाद और एडिटिंग का काम कर रही है। दिन में कभी 3 कभी 4 अपडेट आना यानि हर सोशल साइट पर अपडेट के साथ उन्हें हर राज्य तक पहुंचाना असल में लगता तो एक क्लिक का काम है पर जब हम किसी संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं तो इसमें लगने वाले समय का अंदाज़ होता है और यह इस बार अनुभव हुआ। यह लिखते हुए महसूस हो रहा है कि आज के सूचना के दौर में जब कई छद्म खबरें वायरल की जाती हैं तो सोचिए कितनी बड़ी वर्कफोर्स उसके पीछे लगी होगी। बहरहाल एक विवेकशील, ज़िम्मेदार नागरिक इन बातों को समझता है पर इससे उबरने का उपाय कहीं न कहीं ज़मीनी स्तर के काम से संभव हो पाएगा। जब आमजन में सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना जागेगी तब ही वे सच-झूठ के फर्क को समझने के लिए काबिल होंगी।
बहरहाल अब लौटते हैं यात्रा पर। 27 सितंबर को नई दिल्ली में जवाहर भवन में ढाई आखर प्रेम यात्रा का पूर्वरंग सम्पन्न हुआ और 28 सितंबर 2023 को अलवर से यात्रा शुरू हुई। दिल्ली में पूर्वरंग के पूर्व सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों, संस्था के साथी जुटे और इस यात्रा से संबंधित बातों पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ। यह लिखे जाते तक एकजुटता दिखाते हम काफी दूरी साथ तय कर चुके हैं, इस संस्मरण को लिखे जाने तक 13 राज्यों की यात्रा हो चुकी है। झारखंड पड़ाव में यात्रा की नियत तारीख 8 दिसंबर से 12 दिसंबर नियत थी, जिसमें 7 दिसंबर को हम लोगों ने विभूति भूषण बंदोपाध्याय के निवास गौरी कुंज में पूर्व रंग का आयोजन रखा। यह हमारी विरासत की ऐसी धरोहर है जो हमें हर ख़ास मौकों को यहाँ सेलीब्रेट करने की वजह देती है। इस स्थान की ख़ासियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि विभूतिभूषण बंदोपाध्याय को उनके रचे अनमोल साहित्य के साथ याद करने, जीने और उनकी जीवन-शैली को आने वाली पीढ़ियों से रूबरू कराने की ज़िम्मेदारी ली है घाटशिला के प्रबुद्ध, जागरूक स्थानीय निवासियों ने। वे तन, मन और धन से इस विरासत को सँजोकर रखे हैं। इस विरासत की देखरेख और साज-सज्जा के साथ प्रबंधन के लिए उन्होंने बनाई है “गौरी कुंज उन्नयन समिति” यह सालों-साल पर्यटकों के लिए खुला रहता है। कुछ-कुछ गतिविधियां यहाँ चलती रहती है साथ ही आसपास के बच्चों के लिए निःशुल्क बांग्ला कक्षा ‘अपूर’ चलती है। गौरी कुंज उन्नयन समिति के अध्यक्ष तापस चटर्जी जो सक्रिय और महत्वपूर्ण साथी हैं उनके सहयोग से झारखंड पड़ाव की यात्रा का पूर्वरंग यहाँ सम्पन्न हो पाया।
पूर्वरंग को लेकर घाटशिला के साथियों ने अच्छी-खासी तैयारी की थी और हम सभी उल्टी गिनती कर रहे थे। 5 दिसंबर को राज्यस्तरीय प्रेस वार्ता राँची में, 6 दिसंबर, 2023 को घाटशिला और जमशेदपुर में हुई। 6 दिसंबर को मौसम ने करवट बदली और दोपहर 2 बजे से बारिश शुरू हो गई, यहाँ जमशेदपुर में डाल्टनगंज से उपेन्द्र भईया, शैलेन्द्र जी, मृदुला भाभी और आकाश आ गए थे। दोपहर 3:30 बजे के समय भी बारिश हो रही थी। संयोग से उसी दिन ‘मुख्यमंत्री आपके द्वार’ कार्यक्रम के तहत मुख्यमंत्री का भी शहर में आगमन तय था। लगा कि प्रेस रिलीज़ भेजकर ही काम चलाना होगा। बातचीत के क्रम में यही तय हुआ कि अगर प्रेस से लोग नहीं आएंगे तो पकौडियाँ तली जाएंगी। पर स्थानीय मीडिया के लगभग सभी साथी आए और ढाई आखर प्रेम पर जानकारी के साथ सवाल-जवाब भी किए। इस प्रेस वार्ता में मुझे एक ऐसा अनुभव हुआ जो जीवन भर याद रहेगा। इसमें कुछ साथी जो यूट्यूब चैनल चलाते हैं वे मुझे बाहर ले गए और बात-बात में ही मुझसे 1500/- लिए। सब कुछ मात्र 5 मिनट में हुआ और उसके 5 मिनट बाद मुझे एहसास हुआ कि मैंने क्या गलती की। इसे सार्वजनिक स्वीकार की ज़रूरत है इसलिए यहाँ ज़िक्र कर रही हूँ।
हम लोगों ने जमशेदपुर में सभी मीडिया के संपादकों से मुलाकात की जिसमें पथ के साथी मो. निज़ाम, छवि, द अम्ब्रेला क्रिएशन्स के संजय सोलोमन, जमशेदपुर इप्टा के अध्यक्ष अहमद बद्र साथ रहे। सभी संपादक गर्मजोशी से मिलें और बातचीत में महसूस हुआ कि आज के समय में पहले की तरह संपादकों के पास मिलने जाने में कमी आई है, किसी कार्यक्रम में आमंत्रित करने का तरीका बदल गया है। कहीं न कहीं हम सभी सूचना के इस युग में एक साथ मिलने, बैठने और संवाद की कमी महसूस करते हैं और ढाई आखर यात्रा इन दूरियों को लांघने की कोशिश का नाम भी है।
यहाँ 15 अक्टूबर की बैठक का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है जिसमें तमाम संस्था और संगठन के साथियों ने सहयोग का जो प्रस्ताव दिया वह यात्रा की सफलता का मील का पत्थर है। इससे पहले यात्रा की तैयारी के सिलसिले में निरंतर संवाद और सुझाव के लिए अमिताव घोष दादा, अरविन्द अंजुम जी, सुखचन्द झा, मुख़्तार अहमद खां का ज़िक्र करना ज़रूरी है, जो लगातार संपर्क में रहे और अपने सुझाव से इस यात्रा की तैयारी पर बात करते रहे। मीटिंग के लिए कला मंदिर, सेलुलॉइड चैप्टर के मीटिंग हॉल में हम इकट्ठा हुए। वहाँ सबने अपनी-अपनी तरफ से सहयोग का जो प्रस्ताव दिया वो झारखंड की यात्रा हासिल है। जहां ह्यूमन वेलफेयर ट्रस्ट के मुख़्तार भाई ने यात्रियों के सोने की व्यवस्था हल कर दी, यात्रा में गद्दे, कंबल, चादर वगैरह उपलब्ध करने का वादा किया, पथ के मो. निज़ाम ने इन सामानों को ढोने के लिए अपना छोटा हाथी और एक ड्राइवर उपलब्ध करा दिया। गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े अंकुर ने यात्रा तक ग्राफिक, फोटोग्राफी और पूरी यात्रा में रहने का वादा किया, सर्वोदय संघ के साथी सुखचन्द झा ने एक समय के भोजन की व्यवस्था ले ली। इसके अलावा कुछ साथी रसीद बुक ले आर्थिक सहयोग में सहायक हुए। वे हैं – गौहर अज़ीज़, सुलोचना, वरुण प्रभात, नियाज़ अख़्तर। यात्रा में प्रचार-प्रसार की सामग्री के लिए संजय सोलोमन ऐसे साथी हैं जो इस यात्रा का ब्रोशर भी डिजाइन किए और कुछ पोस्टर उन्होंने और अंकुर ने बनाए। अंकुर और सोलोमन दोनों ऐसे युवा साथी हैं जो आने वाले समय में समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।
झारखंड पड़ाव संथाली बेल्ट के गांवों से गुज़रा। इन गांवों में स्कूल, पंचायत भवन मौजूद हैं जिसमें रात्री पड़ाव के लिए गाँव के मुखिया और प्रधान ने सहमति जताई, उनसे भोजन और आश्रय के अलावा कुछ और मदद के लिए कह नहीं पाए इसलिए तैयारी के दौरान लगा कि पदयात्रियों के लिए गद्दा, कंबल और दरी लेकर जाना होगा क्योंकि ठंड का समय है और यह काम मुख़्तार भाई ने पहली ही हल कर दिया था।
7 दिसंबर की सुबह भी मौसम का मिज़ाज हमें परेशान किए थे। सुबह-सुबह कुर्ला एक्सप्रेस में स्टेशन में नाचा थियेटर के हमारी साथियों से मुलाकात और फिर डाल्टनगंज के ऊर्जावान साथी रवि, शशि, भोला,संजीव और अनुभव के आगमन से बैटरी चार्ज हो गई, लगा कि अब जैसी भी स्थिति रहेगी हम लोग यात्रा निकालने के लिए तैयार हैं। ये ऐसे साथी हैं जो सामूहिकता में विश्वास के साथ चलते हैं और ये साथी बहुत से काम और ज़िम्मेदारी को अपने हिस्से ले ले लिए और इन सबकी आवाज़ में जो दम, ऊर्जा और जज़्बा है वो सहज ही किसी को भी साथ गुनगुनाने के लिए मजबूर कर सकता है।
शाम साढ़े चार बजे निर्धारित पूर्वरंग का कार्यक्रम लगभग एक घंटे विलंब से शुरू हुआ पर आसपास के स्थानीय दर्शकों के जुटने से हौसला बढ़ा। गौरी कुंज उन्नयन समिति ने कार्यक्रम स्थल में एक बड़ी तिरपाल लगा दी थी जिससे लोग हँसना-गपियाना कर रहे थे। हमारे नाचा थियेटर के साथी निसार आली, देवराम साहू, जगनू राम और हर्ष सेन सुबह घाटशिला पहुँच गए थे जिनकी संवाद शैली में प्रस्तुतियों और मेकअप ने पूरी यात्रा में सहज ही लोगों को आकर्षित किया। निसार अली ऐसे साथी हैं जो छतीसगढ़ के लोक थियेटर नाचा के माध्यम से ढाई आखर प्रेम के संदेश के साथ-साथ हर उम्र के लोगों के लिए प्रस्तुतियाँ दिए जो किसी भी जन प्रस्तुति का मुख्य आधार होना चाहिए।
जमशेदपुर जलेस के अध्यक्ष अशोक शुभदर्शी, साइंस फॉर सोसाइटी के राज्य अध्यक्ष और जलेस के राष्ट्रीय सचिव अली इमाम खां और जमशेदपुर के साइंस फॉर सोसाइटी के साथी डी एन एस आनंद, पथ के मो. निज़ाम, छवि, रूपेश, सत्यम, घाटशिला के आई सी सी वर्कर्स यूनियन के महासचिव कॉमरेड ओम, अध्यक्ष कॉम वीरेंद्र सिंहदेव, गौरी कुंज उन्नयन समिति के अध्यक्ष तापस चटर्जी के साथ जमशेदपुर और घाटशिला के कई साथी सम्मिलित रहे। ठंड की सिहरन होती इससे पहले ही उपेन्द्र भईया ने गैस चूल्हा सुलगा सभी के लिए शानदार नीबू चाय की व्यवस्था कर दी, चाय होते ही स्फूर्ति आई और बारिश से शिकायत जैसे दूर हो गई।
चंद्रिमा ने ज्योति-शेखर के साथ मिलकर कार्यक्रम का आगाज़ किया। गौरी कुंज समिति से जुड़े स्थानीय बच्चों के नृत्य ने मन मोह लिया। हम सभी इंतज़ार कर रहे थे रांची के अपने साथियों का जिन्हें बारिश की वजह से विलंब हो गया था। कार्यक्रम के बीच में ही लोक गायक पद्मश्री मधू मंसूरी, ट्राइबल रिसर्च सेंटर के निदेशक रणेन्द्र, राष्ट्रपति पदक प्राप्त वृत्तचित्र फिल्मकार बीजू टोप्पो, विनोबा भावे विश्वविद्यालय के डीन मिथिलेश और चित्रकार भारती जी पहुंची। मधू दा ने ने जहां गाकर मन मोह लिया वहीं उपन्यासकार रणेन्द्र ने अपने सम्बोधन से प्रभावित किया।
पूर्वरंग के बाद सभी साथी यूनियन ऑफिस में पहुंचे जहां लिट्टी-चोखा की व्यवस्था थी। इतने सारे साथियों के लिए तैयारी के लिए इप्टा घाटशिला की महिला साथियों कविता सीट, संगीता हेम्ब्रम, आकांक्षा सीट के साथ ज्योति की माताजी भवानी देवी ने गणेश मुर्मू के बगीचे में दोपहर से बनाना शुरू किया था। साथ में पकौड़ी और चाय भी थी।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था रात गहरा रही थी वो काले-घने बादलों को अलविदा कर रही थी, यह हम सभी के लिए राहत की बात थी। सुबह के उजाले में जब नींद खुली तो साफ़ आकाश ने स्वागत किया और सहज ही स्नेहिल मुस्कान सभी के चेहरे पर तैर रही थी। यात्रा शुरू करने का नियत समय सुबह 8 बजे रखा गया था पर उससे पहले सुबह-सुबह लोक गायक मधु मंसूरी दादा के साथ बिताए एक-डेढ़ घंटे हम सभी साथी विस्मृत नहीं कर पाएंगे। वे सहजता से लोक गायन, लोक गीतों, संस्कृति और अपने जीवन से जुड़े हमारे सवालों के जवाब दे रहे थे और हम मौन शुक्राना दे रहे थे उन साथियों का जिन्होंने इस यात्रा को सोचा जिस पर चलने के लिए हम सभी तैयार हुए।