देश भर के तमाम सांस्कृतिक संगठनों के सामूहिक प्रयासों से संचालित सांस्कृतिक यात्रा ‘ढाई आखर प्रेम’ दिनांक 23 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक मध्यप्रदेश में निकली। यात्रा में चार दिन के लिए इप्टा के साथियों के साथ शामिल हुआ। क्षमता से ज्यादा गाया, रोगों के साथ थकने के बाद भी चला। यात्रा में रहने का जो रचनात्मक अनुभव था उसमें जानने और सीखने के लिए बहुत कुछ था।
कम से कम संसाधनों में आपसी सहकार से ये सांस्कृतिक यात्रा निकाली गई। इंदौर से बड़वानी के बीच नर्मदा किनारे के और उसके पास के अनेक गांवों और कस्बों में हम गए। यात्रा में उजाड़ और पुनर्वास दोनों ही हमने देखे। बहुत लोगों को हमने सुना और वे भी हमे सुनते रहे। जब आंदोलनों में स्त्रियां भी बराबरी से हिस्सेदारी करती हैं तो उनकी निडरता, सजकता, आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति देखते ही बनती है। आंदोलनों से अर्जित व्यवहारिक शिक्षा के उदाहरण भी हमारे सामने आए।
बहुत सारे शब्दों को उनके व्यापक अर्थों के साथ मैंने अलग तरह से ग्रहण किया जैसे – विकास, क्रूरता, सरकार, मुआवजा, बांध, जल भराव, नदी, मनुष्य, दुःख, लड़ाई, एकता, श्रम, प्रेम और कविता। जो बात कविता में ही कही जा सकती उसे न कह पाने की विवशता और बेचैनी से भी दो चार हुआ। नदी के किनारे रहने वाले लोगों को, नदी को, प्रकृति को, आस्था को, विकास को, मनुष्यता को और संघर्ष को बहुत पास से देखने और जानने का अवसर मिला। जो देखा उसे भाषा में व्यक्त कर पाना सचमुच बहुत मुश्किल है।
दो दिन तो संक्षिप्त रूप में डायरी लिख पाया पर अंतिम दो दिन व्यस्तता के चलते उतना भी संभव नहीं हुआ। हो सकता है इस यात्रा के अनुभव से धीरे-धीरे रिस-रिस कर फिर कुछ निकले।
Photo: Kabeer Rajoria