हम गलियों में,
हम चौराहों पर,
हम गावों में,
हम शहरों में,
हर जगह ढूंढते फिर रहे
गमछा माथे पर,
गमछा काँधे पर
गमछा कमर में कसकर
मानवता का अलख जगाते
जीवन का गीत गाते
प्रेम का संगीत सुनाते
कोई तो होगा
जो हमारी आवाज से
आवाज मिलाकर
काँधे से काँधे को मिलाते
हाथों में हाथ दे कर
ढाई आखर प्रेम का गीत गायेगा
इंकलाबी हम
इंकलाब की आवाज
पर
मर मिटने वाले हम
कम ही सही
पर हैं तो
• कविता साहनी