Categories
Poetry/Tales

ढाई आखर प्रेम के 

हम गलियों में,  हम चौराहों पर,  हम गावों में,  हम शहरों में,  हर जगह ढूंढते फिर रहे  गमछा माथे पर,  गमछा काँधे पर  गमछा कमर में कसकर  मानवता का अलख जगाते  जीवन का गीत गाते  प्रेम का संगीत सुनाते  कोई तो होगा  जो हमारी आवाज से  आवाज मिलाकर  काँधे से काँधे को मिलाते   हाथों में […]

Categories
Poetry/Tales

कविता: ढ़ाई आखर प्रेम का

और तब जब हर तरफ बड़ी और मोटी किताबों में लिखकर यह बताया जाने लगे – कि मैं और तुम कितने अलग हैं, कितने दूर हैं चलो एक सादे पन्ने पर डेढ़ आखर तुम लिखो और मैं लिख दूं बचा एक आखर यह अकेला समेट लेगा रंग, भाषा, जाति, धर्म सब कुछ मिटाकर सब कुछ […]

Categories
Poetry/Tales

साधु और बिच्छू (लोक कथा)

ढाई आखर प्रेम की मूल भावना और उसके अपरिमित विस्तार को दर्शाती बचपन में पढ़ी एक कहानी मुझे याद आ रही है। साधु और बिच्छू की कहानी। नदी में नहाते समय साधु ने जब पानी में बहते हुए एक बिच्छू को अपनी जान बचाने के लिए हाथ पैर मारते देखा तो उसे दया आ गई। […]

Categories
Poetry/Tales

जब नव-जीवन की नई ज्योति अंतस्थल में जग जाती है

(गीत) खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा माता का इसमें मान भरा अन्यायी का अपमान भरा खादी के रेशे-रेशे में अपने भाई का प्यार भरा मां-बहनों का सत्कार भरा बच्चों का मधुर दुलार भरा खादी की रजत चंद्रिका जब, आकर तन पर मुसकाती है जब नव-जीवन की नई ज्योति अंतस्थल में जग जाती […]

Categories
Poetry/Tales

हममें अब भी कबीर ज़िन्दा हैं (गीत)

(गीत) नानक नरसी नज़ीर ज़िन्दा हैं हममें अब भी कबीर ज़िन्दा हैं रोज़ ही तीरगी से लड़ते हैं शान से ज़िन्दगी से लड़ते हैं रोशनी तो उन्हीं से मिलती है फ़ैज़ ग़ालिब कि मीर ज़िन्दा हैं आइनों से निबाह लेते हैं सच की सूरत सराह लेते हैं बात होती अमीर खुसरो से जायसी से फ़कीर […]

Categories
Poetry/Tales

लघुकथा – आग की परांत

हत्यारे जलती हुई आग की परांत सिर पर लेकर घर से निकले। वे चारों तरफ आग बिखेर रहे थे जिससे बस्तियाँ राख में तब्दील हो रही थीं। लोगों के जले हुए जिस्मों से निकली बू से आत्मा शर्मसार हो रही थी। तभी हत्यारों को सामने एक खेत दिखा जिसमें एक किसान खरपतवार काट रहा था। […]

Categories
Poetry/Tales

ढाई आखर प्रेम के हम जानते हैं

हम नहीं खोएंगे पल भर में सदी को दिलों में अनुराग की बहती नदी को ढाई आखर प्रेम के हम जानते हैं बहुलता में एकता पहचानते हैं हम नहीं खोएंगे भाईचारगी को अमन की अभ्यस्त साझी ज़िंदगी को हैं अलग मज़हब अलग हैं जातियाँ एक जगमग दीप की हम बातियाँ हम नहीं खोएंगे इस संजीवनी […]

Categories
Poetry/Tales

ढाई आखर (कविता)

ढाई आखर प्रेम का ना पढ़ा ना पंडित हुए बस जात धरम में बंट गए कमबख्त मुए बीज कहाँ अँकुआता माटी ना थी निर्गुण ज्ञान कहाँ समाता थाती ना थी राह सुझाते संत खप गए इनको ना सूझा पर वो टप गए अंत समय तक रहे जोड़ते पर जोड़ ना था घर खज़ाना तो भर […]