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Poetry/Tales

ढाई आखर प्रेम के हम जानते हैं

हम नहीं खोएंगे पल भर में सदी को
दिलों में अनुराग की बहती नदी को

ढाई आखर प्रेम के हम जानते हैं
बहुलता में एकता पहचानते हैं
हम नहीं खोएंगे भाईचारगी को
अमन की अभ्यस्त साझी ज़िंदगी को

हैं अलग मज़हब अलग हैं जातियाँ
एक जगमग दीप की हम बातियाँ
हम नहीं खोएंगे इस संजीवनी को
गंगा जमुनी सभ्यता की रागिनी को

हम अलग दिखते हैं पर हैं एक ही
लाख भटकें पर रहेंगे नेक ही
हम नहीं खोएंगे टह-टह चाँदनी को
नानक-ओ-चिश्ती से आती रोशनी को

हम धनक के रंग दुनिया हमें देखे
साथ रहते आए हैं सुर-ताल जैसे
हम नहीं खोएंगे इस वाबस्तगी को
आपसी सद्भाव गहरी दोस्ती को

– शिव कुमार पराग 

 

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