हम नहीं खोएंगे पल भर में सदी को
दिलों में अनुराग की बहती नदी को
ढाई आखर प्रेम के हम जानते हैं
बहुलता में एकता पहचानते हैं
हम नहीं खोएंगे भाईचारगी को
अमन की अभ्यस्त साझी ज़िंदगी को
हैं अलग मज़हब अलग हैं जातियाँ
एक जगमग दीप की हम बातियाँ
हम नहीं खोएंगे इस संजीवनी को
गंगा जमुनी सभ्यता की रागिनी को
हम अलग दिखते हैं पर हैं एक ही
लाख भटकें पर रहेंगे नेक ही
हम नहीं खोएंगे टह-टह चाँदनी को
नानक-ओ-चिश्ती से आती रोशनी को
हम धनक के रंग दुनिया हमें देखे
साथ रहते आए हैं सुर-ताल जैसे
हम नहीं खोएंगे इस वाबस्तगी को
आपसी सद्भाव गहरी दोस्ती को
– शिव कुमार पराग