और तब जब हर तरफ बड़ी और मोटी किताबों में लिखकर यह बताया जाने लगे – कि मैं और तुम कितने अलग हैं, कितने दूर हैं चलो एक सादे पन्ने पर डेढ़ आखर तुम लिखो और मैं लिख दूं बचा एक आखर यह अकेला समेट लेगा रंग, भाषा, जाति, धर्म सब कुछ मिटाकर सब कुछ […]
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कविता: ढ़ाई आखर प्रेम का
