(गीत)
नानक नरसी नज़ीर ज़िन्दा हैं
हममें अब भी कबीर ज़िन्दा हैं
रोज़ ही तीरगी से लड़ते हैं
शान से ज़िन्दगी से लड़ते हैं
रोशनी तो उन्हीं से मिलती है
फ़ैज़ ग़ालिब कि मीर ज़िन्दा हैं
आइनों से निबाह लेते हैं
सच की सूरत सराह लेते हैं
बात होती अमीर खुसरो से
जायसी से फ़कीर ज़िन्दा हैं
शाख़ से टूटकर बिखरते हैं
राग से,रंग से सँवरते हैं
देखिए तो मियाँ की तोड़ी में
आज भी ख़ाँ अमीर ज़िन्दा हैं
रास्तों में क़याम करते हैं
हर किसी से सलाम करते हैं
नक़्श मिलते हैं सूर-तुलसी से
पीर सुनते हैं, पीर ज़िन्दा हैं
•यश मालवीय•