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बिहार के गाँवों में ‘ढाई आखर प्रेम’ को फैला रही पदयात्रा

•बिहार पड़ाव – पाँचवाँ दिन•

शंकर सरैया में रात्रि विश्राम के बाद 11 अक्टूबर 2023 को सुबह 06 बजे जत्थे ने दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल से आगे की यात्रा की ओर प्रस्थान किया। साथियों ने गीत गाते हुए यात्रा की शुरुआत की। हरदियाँ गाँव के रंजीत गिरी, गिरिन्दर मोहन ठाकुर जत्थे के साथ आगे-आगे चल रहे थे। लगभग साढ़े सात बजे जत्था टिकैती गाँव पहुँचा। थोड़ी देर बाद गोपाल चौक, माधोपुर पहुँचकर जत्थे के साथियों ने स्थानीय लोगों से मुलाकात की। रितेश ने कहा कि हम जन-जन तक प्रेम पहुँचाने के लिए इस जत्थे के साथ गाँव-गाँव घूम रहे हैं। नफरत, घृणा से भरे समाज में प्रेम और बराबरी कैसे स्थापित हो, यही बताना इस जत्थे का उद्देश्य है।

उसके बाद साथी निसार अली ने जत्थे के बारे में जानकारी देते हुए गीत सुनाया, ‘राहों पर नीलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी, अपनी कोशिश है कि ऐसी सुबह यहाँ पर आएगी।’ गीत सुनकर गोपाल चौक पर हुजूम उमड़ पड़ा। ‘कभी न अपना एका टूटे बटमारों की साजिश में’ जैसी पंक्तियों पर लोग झूम उठे। रंजीत गिरी ने अपने वक्तव्य में कहा, यह जो जत्था चल रहा है, जिसमें सभी साथी जुड़े हैं, वे जिन उद्देश्यों को लेकर, जिस सपने को लेकर देश में गाँव-गाँव में घूम रहे हैं, उनके साथ हम सब गाँव-गाँव के लोग जुड़कर इनकी ताक़त बनेंगे। हम प्रेम से रहेंगे, शिक्षित बनेंगे, संगठित बनेंगे और समता-समानता पर आधारित नए विश्व के लिए संघर्ष करेंगे। घृणा का जो वातावरण तैयार किया जा रहा है, उसमें जत्थे के साथियों का यह संदेश देश को समृद्ध बनाएगा, एकजुट बनाएगा। साथ ही सभी देशवासियों को एक सूत्र में बाँधकर रखेगा। सभी जाति-धर्म के लोग इस जत्थे के साथ सिर्फ जुड़ ही नहीं रहे हैं, बल्कि उसे पूरा सहयोग भी कर रहे हैं।

‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’, हिमांशु और साथियों ने इस गीत के अलावा एक अन्य गीत भी प्रस्तुत किया – ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं।’ गीतों की प्रस्तुति के बाद वहाँ उपस्थित ग्रामीणों ने आर्थिक सहयोग भी किया। विजय शाह, उवस राम रंजीत गिरी, गिरिन्दर ठाकुर लगातार जत्थे के साथ-साथ चल रहे थे। इन लोगों का सहयोग प्रशंसनीय रहा।

गोपाल चौक पर दुकानें साढ़े सात बजे तक खुल गई थीं। यह क्षेत्र पूरी तरह किसानों-मज़दूरों का है। उपस्थित लोगों ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से हम साथ-साथ जीने की ताक़त पाते हैं। उवस राम ने अंत में अपनी बातें रखीं और जत्थे को बधाई दी। गोपाल चौक में लगभग एक घंटे का कार्यक्रम कर तथा लोगों से विचारों का आदान-प्रदान करते हुए जत्था आगे बढ़ा।

लगभग साढ़े आठ बजे जत्था माधोपुर मधुमालत पहुँचा। वहाँ के दिनेश मिश्र एवं सतबीर अहमद साहब ने कहा, यह जत्था भाईचारा जोड़ने वाला है। आपसी सद्भाव बना रहे, यही इस जत्थे का संदेश है। इस गाँव में हरेक प्रकार का मेलमिलाप रहता है, किसी तरह का जातीय वैमनस्य नहीं है। हमें मिलकर एक सुंदर दुनिया के निर्माण की कोशिश करते रहनी चाहिए। यह जत्था देश-दुनिया में इस भाईचारे का संदेश लेकर घूम रहा है। हम सब ग्रामवासी इस जत्थे का स्वागत करते हैं। गाँव की समस्याएँ बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि, यहाँ रोज़गार नाम की चीज़ नहीं है। चारों ओर बेरोज़गारी है। किसी तरह जिया जा रहा है। बहुत खराब स्थिति है। जो युवक बेरोज़गार हैं, वे किसी तरह यहाँ रहकर अपनी जीविका चलाते हैं। वे खेती-किसानी, स्थानीय छोटे-छोटे दुकानों में काम कर जीवनयापन करते हैं। यहाँ की खूबसूरती यह है कि, यहाँ कोई जातीय या धार्मिक वैमनस्य नहीं है। सभी लोग एकदूसरे के पर्वों-उत्सवों में आते-जाते हैं, एकदूसरे से मिलते जुलते हैं। अभी देश की जो स्थिति है, जिस तरह भेदभाव उत्पन्न किया जा रहा है, उस समय यह जत्था एक नई उम्मीद जगाता है। हम चाहते हैं कि हमारी एकजुटता कायम रहे। हम जिस तरह अपने गाँव-घर में निश्चिन्त रहते हैं, वह प्रेम देश में भी बना रहे।

यहाँ से चलकर जत्था विजय कुमार उपाध्याय के कोचिंग सेंटर के पास रूका, जहाँ काफी छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। वहाँ हिमांशु, शिवानी, विजय और अन्य साथियों ने गीत प्रस्तुत किया, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ हिमांशु, शिवानी, अमन, संजय, पूजा ने दूसरा गीत प्रस्तुत किया, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं।’

विजय कुमार उपाध्याय ने बातचीत करते हुए कहा कि हम सब एहसानमंद हैं कि आप हम गाँव में रहने वालों के पास प्रेम, सौहार्द्र का संदेश लेकर आए हैं। हम अगर अपनी एकजुटता बनाकर नहीं रखेंगे, तो प्रतिक्रियावादी ताकतें हमें कमज़ोर करके खत्म कर देंगी। ‘दिल से दिल का नाता जोड़ो। भारत जोड़ो, भारत जोड़ो।’ उन्होंने अपने विद्यार्थियों और उपस्थित लोगों से नारे लगवाए – ‘नफरत छोड़ो, दिल से दिल का नाता जोड़ो।’ यह हमारा मूल सूत्र होगा जीने का। हमने बहुत बलिदान के बाद आज़ादी हासिल की है। हमें इसे सुरक्षित रखना होगा। ऐसा हम सब मिलकर, प्यार के साथ ही कर सकते हैं।

यहाँ एक दर्ज़न से भी ज़्यादा मस्जिदें हैं और बहुत से मंदिर हैं। सभी लोग मिलकर रहते हैं। एकदूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते हैं। ये मंदिर-मस्जिद हमारी एकता की पहचान हैं। लोगों को अपने-अपने विश्वासों के साथ जीने का हक है। यह गाँव हमारा है। ये मंदिर-मस्जिद हमारे हैं। इन्हें पाक़ रखना, साथ में प्रेम रखना यही हमारे जीवन का सूत्र है।

जत्थे के कलाकार साथियों ने उसके बाद एक और गीत प्रस्तुत किया – ‘तू ज़िंदा है, तू ज़िंदगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’। माया ने एक कविता सुनाई, ‘हम बेटी हैं, अभिशाप नहीं।’ अंत में रितेश ने ग्रामीणों से आग्रह किया कि आप हमारे साथ मिलकर चलें, गीत गाएँ, कविताएँ सुनाएँ। उपस्थित छात्राओं ने कहा कि, यह यात्रा हमें बहुत अच्छी लग रही है। यह सब कुछ हमारे लिए, हमारे देश के लिए हो रहा है। यह स्वागत योग्य है।

जत्थे ने लगभग साढ़े नौ बजे अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान किया। पौन घंटे में जत्था राजकीय मध्य विद्यालय माधोपुर मठ (तुरकौलिया) में पहुँचा। वहाँ स्कूल के प्रांगण में जत्थे के साथियों का स्वागत वहाँ के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों द्वारा किया गया। करीब छैः सौ छात्र-छात्राएँ स्कूल में थे। उनके भीतर बहुत उत्साह दिख रहा था। हिमांशु ने अपने साथियों के साथ गीत प्रस्तुत किया।

जत्था सवा चार बजे तुरकौलिया से खाना खाकर आगे बढ़ा। लगभग 45 मिनट चलने के पश्चात पदयात्रा बैरिया बाजार पहुँची। वहाँ पहुँचकर परचे बाँटे गए। लोगों से सम्पर्क कर इस जत्थे के उद्देश्य के बारे में बातें की गईं। उसके बाद जत्था पहुँचा पिपरिहा। गीत-संगीत के माध्यम से लोगों को अपनी यात्रा के बारे में जानकारी दी गई। एक बात, जो इस इलाके में देखने को मिली, वह थी गरीबी, बेरोज़गारी। फसल अच्छी थी। छोटी-छोटी जोत के किसान हैं। रोज़गार नहीं होने के कारण ज़्यादा युवा राज्य से बाहर जाकर काम करते हैं। शौचालय नहीं हैं। छोटी-छोटी झोंपड़ियाँ हैं। सरकारी सुविधाएँ सभी तक नहीं पहुँच पाती हैं। इस इलाके की एक उल्लेखनीय बात यह है कि ज़्यादातर लोग गांधी जी के बारे में, भगत सिंह और बाबासाहेब के बारे में जानते हैं।

जत्थे के साथ पहले दिन से ही पूर्वी चम्पारण के वीरेन्द्र मोहन ठाकुर साथ चल रहे हैं। वे न केवल चल रहे हैं, अलग-अलग पड़ाव पर पहुँचने में सहायता भी कर रहे हैं।

जत्था पिपरिहा होते हुए रात्रि विश्राम के लिए लगभग साढ़े छैः बजे सपही पहुँचा, जहाँ के पंचायत भवन में जत्थे के रूकने की व्यवस्था की गई थी।

साढ़े छैः बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम में सबसे पहले निसार अली और देवनारायण साहू ने मिलकर छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत शैली का नाटक ‘ढाई आखर प्रेम’ प्रस्तुत किया। यह शैली चूँकि छत्तीसगढ़ की लोकनाट्य शैली है, इसलिए इसके नएपन ने दर्शकों का काफी मनोरंजन किया। यह नाटक पूरी यात्रा में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। जिस भी इलाके से जत्था गुज़रता है, वहाँ छत्तीसगढ़ के दोनों कलाकार इसकी प्रस्तुति करते हैं। इसके साथ ही साथी निसार अली कबीर, रहीम, अदम गोंडवी आदि के दोहे, ग़ज़ल आदि भी पढ़ते हैं और नाटक के मूल संदेश को जनता तक पहुँचाते हैं।

पोथी पढि पढि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पर जाए।।

इसी तरह अदम गोंडवी का शेर है :
सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पर रखकर हाथ कहिए, देश क्या आज़ाद है?

रितेश ने जत्थे के संदेश के बारे में ग्रामीणों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि, ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक जत्था देश में प्रेम, न्याय, समानता आदि मूल्यों पर जो हमले हो रहे हैं, उसके खिलाफ हम लोग इस जत्थे के माध्यम से उन मूल्यों की रक्षा करने के लिए गाँव-गाँव जा रहे हैं। हमारा देश अनेक रंगों, विचारों से मिलकर बना है। हमारा उद्देश्य देश में गांधी जी, भगत सिंह, बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित मूल्यों की रक्षा करना है, उन्हें मजबूत बनाना है। यह तभी संभव है, जब यह संदेश गाँव-गाँव तक पहुँचे। सभी जाति-धर्म के लोग एक दूसरे का सम्मान करें। प्रेम हमारा पहला और अंतिम सत्य हो। इसलिए हम कबीर-रहीम की वाणी को, उनके पदों को आपके बीच गाते चल रहे हैं। हम युद्ध के खिलाफ हैं, हम शांति चाहते हैं, प्रेम चाहते हैं।

इसके बाद फिर गीत प्रस्तुत किये गये। हिमांशु, शिवानी, तन्नू, माया, पूजा आदि साथियों ने अपने गीतों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहला गीत था, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ दूसरी प्रस्तुति थी, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग़ मिटाने आए हैं।’

इस तरह सिपहा बाजार में लोगों से संवाद करते कार्यक्रम समाप्त हो गया। हालाँकि कार्यक्रम के बाद काफी देर बिजली गुल थी, परंतु ग्रामवासियों का खाना बनाना, तमाम व्यवस्थाएँ करना, जत्थे के साथियों का गीत-संगीत की रिहर्सल करना और रिपोर्ट लिखने का काम कई टॉर्चों की मदद से जारी रहा। हर तरह से ऊर्जा से भरे जत्थे के साथी गाते-बजाते हुए पैदल यात्रा कर रहे हैं। एक नया अनुभव उन्हें भी हो रहा है। सिपहा बाजार में काफी भीड़ थी। लोगों ने काफी उत्साह से कार्यक्रम में शिरकत की। कई तरह से संवाद किये गये। सभी लोगों ने इस तरह के कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आप लोग बेहतर काम कर रहे हैं। यह पैदल यात्रा निश्चित रूप से नए प्रेम से भरे भारत का निर्माण करेगी।

  • सत्येन्द्र कुमार
    मीडिया प्रभारी, ढाई आखर प्रेम ;राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था, बिहार
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