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ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक पदयात्रा का बिहार में समापन

* बिहार पड़ाव – अंतिम दिन *

ढाई आखर प्रेम जत्थे ने 14 अक्टूबर को अपनी शुरुआत प्रभात फेरी से की। सुबह 07 बजे से जत्थे के सभी साथी शहर के भिन्न-भिन्न मार्गों से गुज़रें। मोतिहारी गांधी जी के कर्मों का स्मृति-स्थल है। यहाँ न सिर्फ चम्पारण सत्याग्रह से जुड़ी यादें हैं, बल्कि नील की खेती करने वाले उन किसानों का दर्द और संघर्ष भी है। उसके बाद गांधी जी की जो महत्वपूर्ण भूमिका रही पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में, उन सब का यादगार केन्द्र है मोतिहारी! उनकी सफलता और ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारत की मुक्ति का जीवित दस्तावेज़ है मोतिहारी की जनता, जो गाँव-गाँव में गांधी जी के संघर्षों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही थी।

चम्पारण सत्याग्रह, 1917, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा सत्य और अहिंसा पर आधारित चलाया गया पहला सफल सत्याग्रह था। इस सत्याग्रह के साथ भारतीय राजनीति में गांधी युग की शुरुआत हुई, जिसमें जाति, सम्प्रदाय, धर्म, लिंग और क्षेत्रीय भेदभाव का कोई स्थान नहीं था।

आज ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्थे का बिहार में समापन है। इस जत्थे की शुरुआत पटना से 07 अक्टूबर 2023 को पटना के रेल्वे स्टेशन पर जाकर गांधी जी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाने से हुई थी। जत्थे की शुरुआत पटना रेल्वे स्टेशन से इसलिए हुई कि कोलकाता से चम्पारण जाने के क्रम में पहली बार 10 अप्रेल 1917 को पटना जंक्शन (पूर्व नाम – बाँकीपुर जंक्शन) पर गांधी जी पधारे थे।

ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध चलाए जा रहे ‘नील आंदोलन’ के महान स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के साथ महात्मा गांधी 10 अप्रेल 1917 की सुबह पटना स्टेशन पहुँचे थे और नील की खेती से संबंधित तथ्यों का पता लगाने हेतु यहाँ से मुजफ्फरपुर होते हुए चम्पारण गए थे। उसी की याद में बिहार में जत्थे की शुरुआत पटना के रेल्वे स्टेशन से होते हुए गांधी मैदान पहुँचकर भगत सिंह और गांधी जी की मूर्तियों पर माल्यार्पण करते हुए गांधी मैदान में कलाकारों ने गीत-संगीत-संवाद कार्यक्रम किया था।

मोतिहारी में 14 अक्टूबर को सुबह प्रभात फेरी के दौरान जत्थे ने लोगों से सम्पर्क स्थापित किया। गीत गाते जत्थे के साथी गांधी जी से संबंधित स्थलों से गुज़रते हुए लौटे गांधी संग्रहालय पर दोपहर 02 बजे समापन कार्यक्रम के लिए।

इस ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्थे ने सभी पदयात्रियों को बहुत सी नई सीखें दीं। यह यात्रा अपने देश को समझने, उसके बहुसांस्कृतिक, बहुभाषिक रूपों को देखने और समझने में मदद कर रही थी। हमारा समाज विभिन्न परिस्थितियों में कैसे जीता है, कैसे कठिन से कठिन समय में भी अपनी एकता को बनाए रखता है, यह इस यात्रा से सीखने को मिला। जिस तरह अभी भी गाँवों में गरीबी व्याप्त है, विकास उनके लिए अभी भी सपने जैसा है, वहाँ भी लोग स्थानीय स्तर पर अपनी एकता को बनाए रखते हैं। यह ज़रूर है कि उसे तोड़ने की हरचंद कोशिश की जाती रही है लेकिन लोग परिस्थितियों से सबक सीखकर अपने जीने के तरीक़े ढूँढ़ ही लेते हैं।

जिस प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के लिए यह राष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा है, वह भारत के भिन्न-भिन्न विचारों को समझते हुए, सभी के महत्व को पहचानते हुए आगे बढ़ रहा है। विचार की जितनी सरणियाँ रही हैं, उनमें से प्रमुख चीज़ों को आत्मसात करते हुए देश की एकता, अखण्डता और प्रेम के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है। वैचारिक असहमतियों के बावजूद जो मुख्य विषय है देश की एकता, उस पर किसी तरह का ख़तरा नहीं आने देना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। यह जत्था आपसी प्रेम, शांति और सौहार्द्र का उत्सव है, जो दुनिया में व्याप्त नफरत और अविश्वास की भावना के जवाब में संस्कृतिकर्मियों और ज़िम्मेदार नागरिकों की एक ज़िम्मेदार पहल है।

चम्पारण के कण-कण में कोई कस्तूरबा हैं, कोई राजकुमार शुक्ल हैं, कोई गोरख प्रसाद हैं, कोई शेख गुलाम हैं, लोमराज सिंह हैं, हरिवंश राय हैं, शीतल राय हैं, कोई धरणीधर प्रसाद हैं, तो कोई रामनवमी बाबू हैं और कोई बतख मियाँ अंसारी हैं। चम्पारण के गांधी-सत्याग्रह ने एक और सीख दी थी कि आपसी एकता, प्रेम हमें बड़ी से बड़ी लड़ाई जीतने में मदद करता है, वहीं हमारा अविश्वास, हमारी घृणा, जनता के भीतर का अलगाव, उसे विभाजन तक ले जा सकता है। 1947 में जिसके कारण एक करोड़ तीस लाख के करीब लोग घर से बेघर हुए, हज़ारों हत्याएँ हुईं, स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए। इस विभीषिका से देश को गुज़रना पड़ा। जिस एकता से जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को परास्त किया था, लेकिन अपने स्वार्थों और घृणा के कारण अपनों से ही हार गया। यह सबक है चम्पारण सत्याग्रह का, जिसे जत्थे के साथ शामिल साथियों ने अपने भीतर न केवल ग्रहण किया, उससे सबक भी सीखा। हमारी एकता, हमारा प्रेम ही हमारा बल है। दुनिया युद्ध से नहीं जीती जाती है, यही चम्पारण और गांधी जी का सबसे बड़ा संदेश था, जिसे जत्थे के साथी अपने साथ लिए नए समूहों के साथ जुड़ने के विश्वास के साथ लौट रहे थे।

समापन कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए बिहार इप्टा के कार्यवाह महासचिव फ़िरोज़ अशरफ़ ख़ान ने बताया कि, ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्थे के द्वारा कविता, गीत, संगीत, संवाद के माध्यम से यात्रा में जन-सम्पर्क किया गया। इसी पदयात्रा के समापन कार्यक्रम में हम आप सब का ख़ैरमक़दम करते हैं। प्रेम, सद्भाव और समरसता बनाए रखने के लिए तमाम सेक्यूलर सोच के संगठनों ने मिलकर यह यात्रा निकाली। हमने इस यात्रा से अनुभव किया कि आज भी किसानों की समस्याएँ जैसी की तैसी हैं। सरकारें किसानों के हितों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखतीं, केवल दिखावा करती हैं। उनके नाम पर जो कार्यक्रम तय किये जाते हैं, या उनके लाभ के नाम पर जो नीतियाँ बनाई जाती हैं, उसका बड़ा हिस्सा बिचौलिए खा जाते हैं। उस लूट में सरकारें, उनके ब्यूरोक्रेट्स, बिचौलिए सब शामिल रहते हैं।

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा के स्थानीय संयोजक अमर जी ने यात्रा को सफल बनाने में अथक मेहनत की है। उन्होंने स्थायी यात्रियों के सम्मान में अपनी बातें कहीं, ‘चम्पारण की धरती को चुनने के लिए आपने जो निर्णय लिया, उसके लिए हम चम्पारण की जनता की ओर से आपका अभिनंदन करते हैं। अभी इस देश में जिस तरह का ज़हरीला माहौल बनाया जा रहा है, वैसे समय में गांधी जी के पदचिह्नों पर चलने के लिए आपने जो निर्णय लिया, वह स्वागत योग्य है। आपने तमाम उन स्थानों पर जाकर लोगों से मिलकर, उन ऐतिहासिक पुरुषों के गाँव में जाकर उन क्रांतिकारियों को याद किया, इसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं।’ इसके बाद उन्होंने मनोज कुमार, रामाश्रय बाबू, शंभु साहनी, दिग्विजय सिंह के साथ उन तमाम लोगों का शुक्रिया अदा किया, जिन्होंने यात्रियों को रास्ते में ठहराने या भोजन की व्यवस्था की थी। उन्होंने योगी मांझी, गंगिया देवी, विनोद बाबू, मंकेश्वर जी, विनय कुमार जी का शुक्रिया अदा किया कि इन सबने आगे बढ़कर इस यात्रा को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका अदा की।

समापन समारोह दोपहर 02 बजे से शुरु हुआ, जिसमें जत्थे के साथियों के साथ बड़ी संख्या में शहर के लोग शामिल हुए। समापन समारोह के पहले पदयात्रा करते हुए टीम गांधी संग्रहालय पहुँची। उसके बाद वहाँ के मंच पर कलाकारों ने अपना कार्यक्रम पेश किया।

पहला गीत सभी साथियों के साथ प्रस्तुत किया गया, ‘हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा’। अगली प्रस्तुति थी, ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम, तिन कठिया लेलेबा परनवा राम राम हरे हरे, डूबि गैले सबेरे किसनवा राम राम हरे हरे, रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम, वैष्णव जन तो तेणे कहिए जे पीर पराई जाने रे’। तीसरी प्रस्तुति हुई, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’

उसके बाद सामाजिक संस्था एक्शन एड की शरद कुमारी जी ने अपनी बात रखते हुए कहा, मैं सभी पदयात्रियों का अभिनंदन करती हूँ। अभी पूरी दुनिया में सहनशीलता कम हो रही है। विकास के नाम पर जिस तरह भेदभाव पैदा किया जा रहा है, वह देश के लिए बहुत ख़तरनाक़ है। अभी युद्ध के माहौल में इप्टा और उनसे जुड़े हुए तमाम संगठनों के साथियों का अभिनंदन, जिन्होंने इस विकट समय में देश के सामने प्रेम और भाईचारे का उदाहरण पेश किया है। सभी भाई-बहन मिलकर इस प्रेम को जन-जन तक पहुँचाए। किसी भी देश की सभ्यता का यह प्रमाण है कि उस समाज की स्त्रियों को कितना सम्मान दिया जाता है। हमें किसी भी प्रकार की हिंसा के खि़लाफ़ खड़े होना चाहिए।

कटिहार कॉलेज की प्रिंसिपल चंदना झा ने शरद कुमारी जी को झोला और गमछा देकर सम्मानित किया। साथ ही रामायण सिंह, हामिद रज़ा, भरत राय को भी चंदना झा द्वारा सम्मानित किया गया।

रितेश रंजन ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। नृत्य की प्रस्तुति हुई। अगली प्रस्तुति राजेन्द्र प्रसाद के गीत की थी, ‘खदिया पहिन के ओ बापू खदिया पहिन के। लिहल देसवा के अजदिया बापू खदिया पहिन के।’ लक्ष्मी प्रसाद यादव ने ‘बढ़े चलो जवान तुम बढ़े चलो, बढ़े चलो’ गीत की प्रस्तुति दी और उसके बाद दूसरा गीत सुनाया, ‘कैसे जइबे गे सजनिआ पहाड़ तोड़े ला हे, हमरा अंगूरी से खूनवा के धार बहेला’।

लखनऊ से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ता नासिरुद्दीन ने सवाल उठाया कि, ढाई आखर प्रेम कहने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? क्यों हमें इस तरह जत्था लेकर घूमना पड़ रहा है? आखिर इसकी क्या ज़रूरत आ पड़ी है? क्या हमारे जीवन से प्रेम, सहयोग खत्म होता जा रहा है? क्या समाज में विसंगतियाँ बढ़ती जा रही हैं? आज मीडिया पूरी तरह से नफ़रत फैलाने का काम कर रहा है। वह नफ़रत की भाषा सिखा रहा है। केवल घृणा पैदा की जा रही है। सोशल मीडिया हमारे जीवन में एक साजिश के तौर पर बंधुता, प्रेम को ख़त्म करने की कोशिश करता है। ‘ढाई आखर प्रेम’ का यह जत्था लोगों में प्रेम पैदा करने का प्रयास कर रहा है। हम बापू के पदचिह्न पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।

अगली प्रस्तुति के रूप में मनोज ने हाथ की सफाई प्रस्तुत की। गांधी संग्रहालय के सचिव ब्रजकिशोर जी, जसौली पट्टी के पारसनाथ सिंह तथा डॉ. परवेज़ को सम्मानित किया गया। ब्रजकिशोर जी ने जत्थे के सभी साथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया, जिन्होंने गांधी जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का अकथनीय कार्य किया।

अगली एकल प्रस्तुति थी राजन कुमार के नाटक ‘भगत सिंह’ की। इसमें भगत सिंह के अंतिम पत्र को एकल नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया।

अखिलेश्वर राम ने अपने संबोधन में कहा कि, आज नफ़रत और हिंसा के समय में गांधी जी ही हमारे मार्गदर्शक हो सकते हैं। उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जत्थे के साथियों को बहुत बहुत बधाई।

तन्नू कुमारी और साथियों के द्वारा ‘किसान नृत्य’ प्रस्तुत किया गया, जिसके बोल थे, ‘दुनिया कायम बा किसान भैया, दुनिया कायम बा किसान से’।

इसके बाद संवाद के लिए शैलेन्द्र कुमार को बुलाया गया। उन्होंने कहा, प्रेम, जो कबीर, नानक और रैदास पैदा करते हैं। यह ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा भगतसिंह के जन्मदिन से शुरु हुई है और महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर खत्म होगी। दोनों ही सेक्यूलर हिंदुस्तान का सपना देखते थे। जब भी देश पर हिंसा, नफरत का हमला होता है, हम दोनों को याद करते हैं। प्रेम और अहिंसा आदमी को बहादुर बनाती है। हिंसा डरपोक का औज़ार है। गांधी भारत की मॉरल ऑथोरिटी हैं। मार्केट आपको संचालित करता है, गांधी आपको उम्मीद देते हैं। सभ्यता का इतिहास क्रूरता का इतिहास है। हम कहाँ से चले थे, अब कहाँ आ गए हैं! मनुष्य अंधकार से प्रकाश की ओर आया है। गांधी विकास से ज़्यादा करुणा के पक्ष में रहे हैं। करुणा जैसे मूल्य ताक़त देते हैं। हम उसी की तलाश में इस यात्रा पर निकले हैं।

कपिला जी, अनिता निधि, कपिलेश्वर जी को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया। इसके बाद किसान की व्यथा पर केन्द्रित कठपुतली नृत्य प्रस्तुत किया गया। बोल थे, ‘भैया रे भैया, हम तो बनल ही किसान, हमरा बेटा भूखले सूते रे राम।’ उसके बाद छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत लोकशैली पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया गया। निसार अली और देवनारायण साहू रायपुर छत्तीसगढ़ से आए थे। वे पूरी पदयात्रा में जत्थे के साथ रहे। इस नाटक के माध्यम से उन्होंने गांधी जी के मूल्यों को फैलाने का प्रयास किया। साथ ही साथ भगत सिंह के सिद्धांतों को भी नाटक के माध्यम से प्रकाशित किया। बीच-बीच में वे कबीर, रहीम के पदों के साथ ही साथ अदम गोंडवी की ग़ज़ल को भी पढ़ते गए,

‘पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।’

‘रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय।।’

अदम गोंडवी की ग़ज़ल,

‘सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पर रखकर हाथ पूछिये, देश क्या आज़ाद है!

जीवन यदु राही का गीत, ‘राहों पर गुलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी’ के साथ नाटक खत्म हुआ। समापन समारोह में अंतिम कार्यक्रम था गीत ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं। हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं।’

अंत में मंकेश्वर पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। करीब साढ़े तीन घंटे तक सफल कार्यक्रम के बाद जत्थे की पदयात्रा का समापन हुआ। सभी साथी एक दूसरे से मिलते हुए अगले पड़ावों पर मिलने का वादा कर जुदा हुए।

महात्मा गांधी ज़िंदाबाद!
भगत सिंह ज़िंदाबाद!
भारत की सामासिक सांस्कृतिक एकता ज़िंदाबाद!

  • सत्येन्द्र कुमार
    मीडिया प्रभारी बिहार जत्था
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