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समता और स्वावलंबन: गांधी समाधि पर गूंजा मेधा का गीत

बड़वानी । 24 दिसम्बर 2023

‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के दूसरे दिन का प्रारंभ गांधी जी की समाधि स्थल राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुआ। वहां नर्मदा बचाओ आंदोलन के श्री मुकेश भगोरिया ने बताया कि सरकार द्वारा किस तरह से नर्मदा तट पर स्थित गांधी जी की समाधि को बुलडोजर के माध्यम से हटाकर अपमानित किया गया। मुकेश जी के अनुसार नर्मदा तट पर कस्तूरबा गांधी,  महात्मा गांधी एवं उनके सचिव महादेव भाई देसाई के अस्थि कलश समाधि में रखे गए थे। 27 जुलाई 2017 को सरकार ने जबरन समाधि को उखाड़ दिया। ग्रामवासियों एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रतिरोध के चलते नए समाधि स्थल का निर्माण राजघाट के नाम से किया गया है। उन्होंने बताया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन विगत 38 वर्षों से जारी है। नर्मदा परियोजना में डूबे गांवों के हजारों परिवार अब भी पर्याप्त मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। सरकार द्वारा बसाए गए नये गांव में अमानवीय परिस्थितियों में जीवन यापन करने पर विवश है।

राजघाट पर मंदसौर के साथियों ने गांधी जी के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ का गायन किया। अशोक नगर के कलाकारों ने ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ ले जरा, दोस्ती का एतराम कर ले जरा’ की प्रस्तुति दी। मुकेश जी ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर द्वारा रचित गीत का गायन किया। गीत के बोल इस प्रकार हैं:

कहाँ राम है, क्या रहीम है, यह प्रकृति जीवन मेरा
मेरी ही नदी, यह जमीन और जंगल मेरा
मैं मानता इंसान को, मैं मानता ईमान को
समता ही मेरा विचार है. और स्वावलंबन से प्यार है
मैं आदिवासी दलित हूँ, मैं शोषितों के साथ हूँ
हर गरीब में सांस हूँ, संघर्षों से निर्मित हूँ
सहना नहीं अन्याय को, हिंसा लूट विनाश को
मेरा बल उनका भी हो, जो दुर्बलों का आधार है
मैं कौन हूँ, तुम कौन हो, हम तुम मिलें जीते रहे
विकास की सही सोच हो, उसमें ही राम रहीम हो

मेधा पाटकर

तत्पश्चाप निसार अली ने नाचा गम्मत का गीत ‘प्रेम का बाना बांधलियो बानाजी’ गाया।

अगला कार्यक्रम बड़वानी शहर के मध्य पुराने कलेक्ट्रेट चौक में हुआ। यहां मुकेश भगोरिया एवं पत्रकार वहीद मंसूरी ने ढाई आखर प्रेम यात्रा तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन के बारे में बताया। विनीत तिवारी ने कहा की बड़वानी हक हासिल करने वालों की जमीन है जिन्होंने विकास की नई परिभाषा दी है। उसी के आधार पर सारी दुनिया में बहस जारी है। विकास केवल भवन, बांध,सड़कें ही नहीं होता, वह व्यक्ति की आकांक्षा पर आधारित होना चाहिए। देश में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। वैश्विक युद्धों और मणिपुर सहित देश के अनेक क्षेत्रों में जाति, धर्म ,कबीले के नाम पर हो रही हिंसा और नफरत की आग को बुझाने का काम सांस्कृतिक संगठन कर रहे हैं।

यहां अशोकनगर के साथियों ने कबीर का विख्यात भजन ‘साधु देखो जग बौराना’, ‘हर एक घर के लिए’ गाया। निसार अली ने भी अपने सुमेरू के साथ हमारे समय के सवालों को हास्य के माध्यम से उठाया। स्थानीय साथी कैलाश ठाकुर ने ‘जागो जागो निमाड़ की जनता’, ‘सीप से मोती बना मोती से निकला नगीना’ तथा ‘मां रेवा थारो पानी निर्मल कल कल बहता जाए’ की संगीत मय प्रस्तुति दी।

अगला पड़ाव नर्मदा पर बने बांध से विस्थापितों का मूल गांव जांगरवा था। यहां भोजन पश्चात हुइ सार्वजनिक सभा में नर्मदा बचाओ आंदोलन की जुझारू साथी कमला यादव ने बताया कि नर्मदा परियोजना ने क्षेत्र के निवासियों, पशुओं और पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा है। मेधा पाटकर के नेतृत्व में इसके खिलाफ आंदोलन चलाया गया जिसे कदम- कदम पर सरकार के दमन का सामना करना पड़ा। सरकार विस्थापितों के साथ धोखा कर रही है। लाडली बहनों को प्रचारित कर चुनावी लाभ लिया गया लेकिन सरकार के लिए हम लाडली बहने नहीं है, क्योंकि हम अपना हक मांग रही हैं। पुनर्स्थापित ग्राम जांगरवा में न सड़के हैं, न पीने का पानी। मूल गांव जांगरवा बेहद सुंदर था। नर्मदा बचाओ आंदोलन में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। महिलाओं को कमजोर न समझा जाए मेधा जी ने हमें सिखाया है कि ‘जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो’।

ग्राम के युवा सरपंच धर्मेश भाई ने बताया कि गांव में कम लोगों को ही विस्थापन का मुआवजा मिला है। 2019 में भी सरदार सरोवर बांध में पानी भरने के दौरान विस्थापित हुए ग्रामीणों को आज तक मुआवजे के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मुकेश भगोरिया ने बताया कि मध्य प्रदेश के डूब प्रभावित ग्राम वासियों को गुजरात में जमीनें दी गई है जिसके कारण कई परिवार बंट गए हैं। सरदार सरोवर में पानी भरने से प्रभावित होने वाले गांव से ग्रामीणों को पुलिस बल के माध्यम से बिना मुआवजा दिए का खदेड़ दिया गया। जबरन गांव खाली करवाए गए। यहां के कार्यक्रम में अशोकनगर के कलाकारों ने सामंतवाद को पराजित कर देने वाले पूंजीवाद के छद्म को उजागर करने वाला गीत ‘समझो- समझो भाई, ये पूंजी की है भाषा’ तथा कबीर का भजन ‘पानी विच मीन पियासी’ का गायन किया। इप्टा इंदौर इकाई के कलाकारों ने ‘सदाचार का ताबीज’ एवं निसार भाई ने अपनी नाट्य प्रस्तुति दी। सभा स्थल पर एकलव्य द्वारा पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई थी जो बच्चों के आकर्षण का केंद्र बनी। स्थानीय महिलाओं ने श्याम तेरी बंसी पागल कर जाती गीत गाया। यहां से जत्थे में शामिल यात्री डूब वाले मूल जांगरवा गांव पहुंचे, जहां नर्मदा का पानी उतर चुका था। ग्रामीण अपने घरों में पहुंचकर खेती करने का  प्रयास कर रहे थे। उनकी तकलीफों को समझने का प्रयास किया।

रिपोर्ट: हरनाम सिंह

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