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प्रेम न बाड़ी ऊपजै

प्रेम न तो किसी खेत में उत्पन्न होता है और न ही वह किसी बाज़ार में बिकता है। यह तो ऐसी चीज है कि राजा हो अथवा प्रजा, जिस किसी को भी वह रुचिकर लगे वह अपना सिर देकर अर्थात अहंकार त्याग कर ही उसे ले जा सकता है।
– कबीर

Love neither grows in any field nor is it sold in any market. This is such a thing that whoever finds it interesting, be it a king or a common man, can take it only by giving his head i.e. by renouncing his ego.
– Kabir

Poster: Pankaj Dixit

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