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बिहार में ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा ने जन-जन में फैलाया प्रेम का संदेश

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‘ढाई आखर प्रेम; राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था’ देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रेम, बंधुत्व, समानता, न्याय और मानवता के संदेश की यात्रा है। यह यात्रा 28 सितम्बर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक लगभग 22 प्रदेशों में जन-सम्पर्क करेगी। इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे का पहला चरण दिनांक 28 सितंबर 2023 को भगत सिंह के जन्म दिवस पर अलवर (राजस्थान) से शुरू होकर 02 अक्टूबर 2023 को महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर अलवर में समाप्त हुआ। उसी क्रम में 03 से 06 अक्टूबर तक क्रमशः छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड और उत्तर प्रदेश में एक-एक दिन की पदयात्रा के पश्चात तीसरे चरण के अंतर्गत पदयात्रा बिहार में 7 अक्टूबर 2023 को पटना में शुरू हुई।

07 अक्टूबर 2023, शनिवार

बिहार में ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था की शुरुआत पर 07 अक्टूबर 2023 को गांधी मैदान में दर्शकों को संबोधित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने कहा कि ‘इस यात्रा से हम बापू, कबीर, रहीम, रसखान के ‘पदचिह्न’ और ‘चीन्ह’ की यात्रा कर रहे हैं। इस यात्रा में बापू के चम्पारण सत्याग्रह के पदचिह्न पर चलने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि देश को चम्पारण और गांधी दोनो की तलाश है। डर का माहौल बना कर अपनी बात मनवाने की जबरदस्ती के खिलाफ प्रेम और बंधुत्व के अभियान में उसी गांधी को तलाशा जा रहा है, जिसने अंग्रेज़ों के नील उगाने के तीन कठिया परंपरा को तोड़ दिया था। उस साम्राज्य को झुका दिया था, जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था।’

‘ढाई आखर प्रेम’ बिहार राज्य की पदयात्रा की शुरुआत बांकीपुर जंक्शन (पटना जंक्शन) से हुई। अप्रैल 1917 में बापू इसी स्थान पर पहली बार बिहार आए और मुजफ्फरपुर होते हुए चम्पारण पहुंचे थे। चम्पारण में ही उन्होंने आज़ादी की राह खोल दी थी। पटना जंक्शन से शुरू हुई पदयात्रा पटना यूथ हॉस्टल होते हुए भगत सिंह और महात्मा गांधी की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करती हुई, भिखारी ठाकुर रंगभूमि पहुंची, जहाँ भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। पदयात्रा में शामिल पदयात्री ’तू खुद को बदल, तो ज़माना बदलेगा’ गाते हुए चल रहे थे। ढाई आखर प्रेम का नारा लगा रहे थे।

सांस्कृतिक संवाद में प्रख्यात चिकित्सक डॉ सत्यजीत, प्रगीतशील लेखक संघ के सुनील सिंह, लोक परिषद के रूपेश और बिहार राज्य के महासचिव फ़िरोज़ अशरफ़ ख़ान ने भी संबोधित किया। छत्तीसगढ़ से आए नाचा लोक नाट्य शैली के कलाकारों ने गम्मत नाटक की प्रस्तुति की। युवा पदयात्रियों ने कबीर के पदों पर आधारित भावनृत्य प्रस्तुत किया।

प्रेम, बंधुत्व, न्याय, समानता और मानवता के संदेश के साथ ढाई आखर प्रेम पदयात्रा अगले पड़ाव जसौली पट्टी पहुँची। यह पदयात्रा अगले सात दिनों में अनेक गाँवों के लोगों से मिलते जुलते हुए 14 अक्टूबर 2023 को मोतिहारी गांधी स्मारक परिसर में एक जन सभा का आयोजन कर सम्पन्न होगी। “ढाई आखर प्रेमः राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था” के अंतर्गत बिहार के नाट्यकर्मी, लेखक, कवि, अभिनेता, गायक और सामजिक कार्यकर्ताओं ने पदयात्रा में भाग लिया। पदयात्रा के अंतर्गत नाटक, गीत, नृत्य और लोकप्रिय संवाद के साथ नागरिकों के साथ सीधा संवाद किया गया।


08 अक्टूबर 2023, रविवार

8 अक्टूबर को मुज़फ़्फ़रपुर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण पार्क होता हुआ, छाता चौक पर रुक कर वहाँ पुष्पांजलि अर्पित कर जत्थे में शामिल रंगकर्मियों ने गीतों की प्रस्तुति दी। उसके बाद जत्था पैदल चलता हुआ लंगट सिंह कॉलेज पहुँचा। वहाँ गांधी स्मारक कूप तक जाकर फूल चढ़ाए गए। यही वह जगह है जहाँ गांधी जी चम्पारण जाने के क्रम में रुके थे। इस कूप का महत्व यह है कि, यहीं गांधी जी ने स्नान आदि क्रियाएँ सम्पन्न की थीं।

प्रेम, बंधुत्व, न्याय, समानता, मानवता के संदेश के साथ बिहार का सांस्कृतिक जत्था स्थानीय लोगों से मिलते जुलते हुए, उनसे सीखते हुए, गाते-बजाते आगे बढ़ता रहा। जत्थे के साथी एक गीत गाते बढ़ रहे हैं, जिसे काफ़ी सराहा जा रहा है – “ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं”। बिहार के जत्थे में शामिल साथियों ने गांधी, कबीर, रैदास, अम्बेडकर, भगत सिंह, तथा सूफ़ी और संत कवियों के प्रेम की विरासत को लोगों तक पहुँचाया। जत्थे के साथियों को पूरे रास्ते में लोगों का प्रेम और सहयोग मिला। इस यात्रा का उद्देश्य प्रेम के साथ श्रम के गीत गाना भी था। जगह-जगह पर प्रेम और सम्मान व्यक्त करने के लिए लोगों को गमछा ओढ़ाया जा रहा था। कबीर के ताने-बाने से बनी चादर और गमछा हमारे श्रमिकों की पहचान है। श्रम में भी प्रेम का बीज तत्व छुपा होता है। हमारे देश की एक पुरानी सांस्कृतिक सामाजिक पहचान है, उसी को जन-जन तक पहुँचाना इस जत्थे का उद्देश्य रहा।

जत्था मुजफ्फरपुर से चल कर जमालाबाद आश्रम (मूसहरी प्रखण्ड) पहुँचा, जहां ‘जय प्रकाश प्रभावती मुसहरी प्रवास स्वर्ण जयंती संवाद पदयात्रा’ का समापन हो रहा था। वहाँ जत्थे के साथियों ने उनसे मिलकर आपसी बातचीत के माध्यम से अपने-अपने उद्देश्यों का आदान-प्रदान किया। इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने अपने संबोधन में कहा, ‘यह जत्था जमालाबाद में लोकनायक जयप्रकाश जी की यात्रा के समापन पर मिल रहा है, तो एक ऐतिहासिक वातावरण पैदा कर रहा है। एक यात्रा का समापन और दूसरी यात्रा की शुरुआत एक ऐसा बिंदु है जो हमें यह सीख देता है कि हम अपनी परंपरा, संस्कृति की शृंखला से इस तरह जुड़े हैं कि यह लगातार उस सामासिक संस्कृति को ज़िंदा ही नहीं रखता, उसे मज़बूत भी बनाता है। यह अनवरत चलने वाली प्रेम की धारा है, जो कहीं नहीं सूखती और न हम इसे सूखने देंगे; क्योंकि इसका सूख जाना आत्महत्या करना होगा किसी भी देश के लिए। हमारा संकल्प है कि हम गाँव के मज़दूरों, किसानों, महिलाओं आदि के संघर्षों, उनके गीतों से मिलकर एक समता, समानता, भाईचारे पर टिके समाज का निर्माण करेंगे। हम लोगों से सीखते हुए इस यात्रा को आगे बढ़ाएँगे।’

ढाई आखर प्रेम का संदेश लेकर सांस्कृतिक पदयात्रा पूर्वी चम्पारण पहुँची। 08 अक्टूबर 2023 की रात्रि को जत्था जसौली पट्टी गाँव के एक हिस्से से गुज़रता हुआ राष्ट्रीय मध्य विद्यालय, जसौली पट्टी प्रखण्ड कोटवा, पूर्वी चम्पारण पहुँचा, जहाँ जत्थे के लोगों ने रात्रि विश्राम किया। उसके पहले गाँव में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी यहीं के बड़े मैदान में हुआ। गाँव में पहुँचने पर जत्थे के साथियों का ग्रामीणों द्वारा स्वागत किया गया। लोग घर से बाहर निकलकर जत्थे का स्वागत कर रहे थे। हर मोड़ पर गीत-संगीत के साथ-साथ यात्रा की महत्ता भी लोगों को बताई जा रही थी।

गाँव के निवासी विनय कुमार, जो पर्यावरण के क्षेत्र में काम करते हैं, उन्होंने पूरी टीम का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि स्कूल प्रांगण में होने वाले रात्रिकालीन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लोगों को प्रेरित भी किया। गाँव में घूमकर जत्थे ने स्कूल पहुँचकर सांस्कृतिक कार्यक्रम किया, जिसमें ग्रामीण बड़ी संख्या में भाग लेने पहुँचे। सबसे ज़्यादा भीड़ बच्चों और महिलाओं की थी। ढाई घंटे तक गीत-संगीत, नाटक, संवाद का कार्यक्रम होता रहा। सबसे महत्वपूर्ण थी बच्चों की भागीदारी, जो जत्थे के साथियों के साथ मिलकर मंच के कार्यक्रमों का हिस्सा बन रहे थे।

विनय कुमार ने मंच से स्वागत किया तथा गाँव की ऐतिहासिकता से लोगों को अवगत कराया। कार्यक्रम में गाँव के रामश्रेष्ठ बैदा, सुनील दास, दिलीप ठाकुर, उपेन्द्र कुमार, मंकेश्वर पाण्डेय, जुलुम यादव (पैकस अध्यक्ष), रामजी राय, हरेन्द्र कुमार, जितेन्द्र कुमार की मुख्य भूमिका रही।

सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गायन से हुई। ‘बढ़े चलो जवान तुम बढ़े चलो’ गीत को काफी सराहना मिली। उसके बाद उन्होंने दूसरा गीत चंद्रशेखर पाठक भारद्वाज द्वारा लिखित ‘कैसे जैबेंगे सजनिआ पहाड़ तोडे़ ला, हमरा अंगुली से खूनवा की धार बहे ला’ प्रस्तुत किया। हारमोनियम पर अमरनाथ संगत कर रहे थे। शिवानी गुप्ता ने गाँव के बच्चों के साथ गाकर दूसरा गीत प्रस्तुत किया – ‘हम हैं इसके मालिक, हिंदुस्तान हमारा है’। दूसरा गीत था – ‘रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे, रेलिया बैरन…’। शिवानी ने कजरिया ‘कैसे खेले जाइबू सावन में कजरिया, बदरिया घिरी आइल ननदी’ गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने लोगों को संबोधित करते हुए इस जत्थे के उद्देश्य पर बातें रखीं। उन्होंने कहा कि दुनिया के मानचित्र पर जो क्रांतिकारी गाँव हैं, उसमें सर्वोच्च स्थान जसौली पट्टी का है। एक प्रसंग में उन्होंने गांधी जी की चार्ली चैप्लिन से हुई भेंट का ज़िक्र करते हुए बताया कि गांधी ने चैप्लिन से पूछा कि ‘कला का क्या मतलब होता है? गीत-संगीत का क्या मतलब होता है?’ चैप्लिन ने जवाब दिया, ‘गीत-संगीत, कविता का मतलब जनता के प्रति प्रेमपत्र है। यह सत्ता के प्रति अभियोग पत्र भी है।’

उसके बाद हिमांशु और साथियों ने गीत प्रस्तुत किया, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना-बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ अगली प्रस्तुति के रूप में जत्थे के साथी मनोज भाई ने बच्चों के सामने हाथ सफाई दिखलाई और लोगों को संदेश दिया कि जादू वगैरह कुछ भी नहीं होता, सिर्फ हाथ की सफाई होता है। उसके बाद कबीर के दोहों को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। अंतिम प्रस्तुति छत्तीसगढ़ से आए निसार अली एवं साथियों की नाट्य-प्रस्तुति ‘टॉर्च बेचैया’ थी। यह छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत शैली में थी, जिसके नएपन के कारण वह ग्रामीणों को बहुत पसंद आई।

09 अक्टूबर 2023, सोमवार

09 की सुबह जत्था जसौली पट्टी माध्यमिक विद्यालय से निकलकर गाँव से गुज़रा। चूँकि जसौली पट्टी गाँव 09-10 किलोमीटर तक फैला हुआ बहुत बड़ा गाँव है, जहाँ की जनसंख्या लगभग 10000 है। यहाँ 12 वॉर्ड हैं तथा सभी जातियों के लोग रहते हैं। एक मुस्लिम परिवार भी रहता है। गाँव के सभी लोगों में सहयोग की भावना है। यहाँ जातीय या धार्मिक तनाव नहीं है। मूल आर्थिक आधार कृषि है और लोग बाहर रहकर भी नौकरी पेशे से जुड़े हैं। लोगों में जत्थे को लेकर बहुत उत्साह था। चारों ओर खेत में धान, मक्का, ईख लगे हुए थे। यहाँ सब्जी की खेती भी बहुत बड़े पैमाने पर होती है।

जत्था सबेरे स्कूल से निकला तो निसार अली साथियों के साथ गाते हुए निकले, ‘मशालें लेकर चलना है कि जब तक रात बाकी है’। गाँव के बच्चे भी साथ-साथ गा रहे थे। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश भी साथियों के साथ चल रहे थे। साथ में स्थानीय विनय कुमार, सुनील कुमार दास भी अन्य ग्रामीणों के साथ चल रहे थे। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रूककर जत्थे के साथी ग्रामीणों से संवाद स्थापित करते, उनकी बातें सुनते, उनसे खुद की बातें भी बता रहे थे। उन्हें न सिर्फ जत्थे के महत्व की जानकारी दे रहे थे, बल्कि उनसे भी, कार्यक्रम के उनके ऊपर पड़े प्रभाव को सुन रहे थे। गाँव बहुत बड़ा होने के कारण घर दूर-दूर हैं। खेतों की पगडंडियों और मुख्य सड़क से होता हुआ जत्था आगे बढ़ता गया।

जसौली पट्टी के ही दूसरे क्षेत्र में जत्था पहुँचा, एक लोहे के पुल को पार कर पट्टी गाँव पहुँचा, जो जसौली पट्टी का ही हिस्सा है। यहाँ से होते हुए बिशुनपुर ननकार के लोगों से बातें करते हुए आगे 03 किलोमीटर चलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय मध्य विद्यालय पट्टी (प्रखण्ड कोटवा) पहुँचा। यहाँ छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षकों की टोली अपने प्रधानाध्यापक के साथ जत्थे के स्वागत में खड़ी थी। स्कूल के भीतर के प्रांगण में स्थित गांधी जी की मूर्ति पर सभी ने फूलमालाएँ चढ़ाईं। यहाँ प्रधानाचार्य अशोक सिंह, शिक्षक जितेन्द्र कुमार, विपिन बिहारी प्रसाद आदि ने जत्थे के साथियों के साथ गुलमोहर और अमलतास के पौधे लगाए। विद्यार्थियों से बातचीत करते हुए उन्हें जत्थे के उद्देश्य से अवगत कराया गया। स्कूल के पास संगीत का कार्यक्रम हुआ।

यहाँ से रवाना होकर स्थानीय निवासी ध्रुव नारायण के घर नाश्ता किया गया। वहाँ से लोमराज सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उनके परिवार के ही सदस्य रघुनाथ सिंह के घर जाकर उन्हें प्रेम और श्रम का प्रतीक चिन्ह गमछा और झोला भेंट किया गया। लगभग 85 वर्ष के बुजुर्ग रघुनाथ सिंह भावविभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि आप सब जो कर रहे हैं, वे यहाँ के किसानों द्वारा किये गये संघर्षों को ही सम्मानित कर रहे हैं। आप लोगों ने इस गाँव को जो सम्मान दिया, उसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं। उनकी आँखें भर आई थीं।

वहाँ से चलकर जत्था सिरसिआ गाँव पहुँचा, जहाँ के मुखिया जितेन्द्र प्रसाद यादव ने अपने ग्रामीणों के साथ जत्थे का स्वागत किया। उस गाँव में जत्था 12 बजे पहुँचा, साढ़े बारह बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरु हुआ। वहाँ के चौक पर काफी संख्या में लोग एकत्रित थे। कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गीत ‘जवान तुम बढ़े चलो’ से हुई। उसके बाद राजेन्द्र जी ने पहले ‘लेहली देसवा के अजदिया बापू खदिया पहिन के न…’ गाया, उसके बाद ‘तोहर हिरा हेरा गइल कपड़े में’ तथा कबीर के गीत सुनाए, जिन्हें काफी सराहा गया।

मोतिहारी के व्याख्याता हरिश्चंद्र चौधरी ने लोगों को संबोधित किया। उल्लेखनीय है कि चौधरी जी ने चम्पारण आंदोलन पर महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं हैं। खाना खाकर सभी लोग रास्ते में मिलते जुलते हुए कोटवा बाजार पहुँचे। उपस्थित लोगों से संवाद स्थापित करते हुए गीत-संगीत की प्रस्तुति हुई। इसमें जत्थे में शामिल हिमांशु कुमार, संजय, शिवानी गुप्ता, तन्नू कुमारी, अभिषेक कुमार, माया कुमारी, पूजा कुमारी, सुबोध कुमार, राहुल कुमार आदि साथियों ने गीत प्रस्तुत किये। वहाँ से जत्था रात्रि के 08 बजे झखरा बलुआ गाँव पहुँचा, जहाँ स्थानीय साथी जोगी मांझी ने अन्य ग्रामीणों के साथ जत्थे का स्वागत किया। जोगी मांझी को भी कबीर गमछा पहनाकर उनका सम्मान किया गया। साढ़े आठ बजे से ग्रामीणों के साथ बातचीत के साथ गीत-संगीत-नाटक की प्रस्तुति की गई। जिसमें राजेन्द्र प्रसाद राय, लक्ष्मी प्रसाद यादव और साथी शामिल थे। यह गाँव मज़दूरों का गाँव था, लेकिन रात के कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति बहुत उत्साह प्रदान करने वाली थी। गाँव की महिलाएँ, बच्चे, युवा सभी ग्रामीण 03 घंटे तक हुए कार्यक्रम से जुड़े रहे और उन्होंने जत्थे की जानकारी लेते हुए प्रेम और समता वाले समाज पर अपना विश्वास जताया। रात्रि विश्राम इसी गाँव में हुआ।


10 अक्टूबर 2023, मंगलवार

झखरा बलुआ में झखरा पट्टी है जहां 9 अक्टूबर की रात्रि को जत्था रुका था। सुबह साढ़े नौ बजे झखरा बलुआ से जत्था गांव में भ्रमण के लिए निकला। “गंगा की कसम यमुना की कसम“ जैसे गीत गाते हुए लगभग 10.15 पर झखरा चौक पर रुक कर जत्थे ने लोगों से संपर्क किया। उसके बाद राष्ट्रीय उच्च मध्य विद्यालय झखरा सर्व शिक्षा अभियान के भवन पर बच्चों से मुलाकात की गई। वहां 500 बच्चे पढ़ते हैं। सतेंद्र कुमार शिक्षक हैं और चतुर्भुज बैठा प्रधानाध्यापक, उनसे बात हुई। उन्होंने बताया, आज भी काफी ग़रीबी है। उनके पास जमीन नहीं है, बाथरूम वगैरह भी नहीं है। अभी भी लोगों को काफी कष्ट झेलना पड़ रहा है।

वहां से पदयात्री सूर्यपुर पहुंचे। यह भी एक टोला है, काफी गरीब है। यहां के लोगों से बातचीत की। उसके बाद सूर्यपुर अंबेडकर टोला जाकर लोगों से मिले। 11.00 बजे दिन में राजकीय मध्य विद्यालय सूर्यपुर पिपरा कोठी प्रखंड पहुंचकर वहां के शिक्षकों और विद्यार्थियों से बातचीत की गई। जत्था के साथ चलने वाले साथियों ने उन्हें कुछ गीत सुनाए। शिक्षक, प्रधानाध्यापक व विद्यार्थियों को जत्था का उद्देश्य बताया गया। प्रमोद सिंह इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं। विद्यालय में 550 विद्यार्थी पढ़ते हैं। शिक्षकों की संख्या 13 है। विनोद राम स्टीफन शिक्षक हैं। उन्हें बातचीत के दौरान जत्थे का मकसद बताया गया कि, हमें समता और समानता मूलक समाज बनाना है। हम बाबासाहेब आंबेडकर, जोतिबा फुले, गांधीजी, भगत सिंह आदि महापुरुषों के विचारों को लेकर गांव-गांव जा रहे हैं। बाबा साहब ने समाज सुधार के लिए जो शिक्षा की अनिवार्यता बताई है, उसे आगे बढ़ाना है। विषमता मूलक संस्कृति को हटाना है। समता मूलक संस्कृति को लाना है। शिक्षक विनोद राम स्टीफन ने बताया कि, ‘यह इलाका दलित अति पिछड़ों का रहा है। मैं मुशहरों के टोले में पढ़ता था, तब शिक्षा नाम मात्र की भी नहीं थी। बोलना नहीं आता था। वहां सब लोगों ने मिलकर शिक्षा को बढ़ाने का प्रयास किया। आज हम कुछ आगे बढ़े हैं।’

आगे चलकर जत्था जीवधरा पहुंचा। इस रास्ते में गांव थोड़े हैं। एक ही गांव तीन-चार किलोमीटर तक फैला हुआ है। दोपहर को जीवधारा में मुख्य मार्ग के किनारे चौराहे पर जत्था के साथियों ने कार्यक्रम पेश किया। ‘ढाई अक्षर प्रेम के हम जानते हैं, बहुलता में एकता पहचानते हैं’ गीत के बाद अगली प्रस्तुति थी – ‘गंगा की कसम यमुना की कसम, यह ताना-बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो यह जमाना बदलेगा’।

इस यात्रा में विभिन्न राज्यों के जिलों के तथा विभिन्न संगठनों के साथी भी शरीक हुए हैं। पंकज श्रीवास्तव झारखंड प्रलेस उपाध्यक्ष ने अपनी बातें रखते हुए गांधी जी के चंपारण आगमन की कहानी को व्यवस्थित तरीके से उपस्थित लोगों के सामने रखा। यहाँ के कार्यक्रम में अंतिम गीत रितेश, हिमांशु और जत्थे में चल रहे अन्य साथियों ने गाया – ‘तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर’। अंत में रितेश ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उसके बाद जीवधारा मलाई टोला के मुखिया पासवान जी के यहां जत्थे के लोगों ने भोजन किया।

सांस्कृतिक जत्था वहां से चंद्रहीय के लिए चल पड़ा। वहां जाकर जत्थे के साथियों ने गांधी स्मारक को देखा और उपस्थित लोगों से बातचीत की। उसके बाद वहां से सलेमपुर पहुंचे, जहां ग्रामीणों से मिलकर जत्थे के उद्देश्य के बारे में बताया। सलेमपुर के मुकेश जी ने कहा कि ऐसा जत्था देश की एकता और अखंडता तथा प्रेम और विश्वास के लिए बहुत जरूरी है। हम गांववासी आपके इस यात्रा का समर्थन ही नहीं, बल्कि आपके काम की सराहना भी करते हैं। वहां से जत्था रात्रि विश्राम के लिए शंकर सरैया के दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल पहुँचा। इसी स्कूल में जत्थे के भोजन और ठहरने की व्यवस्था थी। काफी बड़ी संख्या में विद्यार्थी और ग्रामीण पहुँचे हुए थे। सांस्कृतिक जत्थे द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गीत से हुई – ‘बढ़े चलो, जवान तुम बढ़े चलो’। उसके बाद उन्होंने ‘कैसे जइबइगे सजनिया पहाड़ तोड़े ला’ प्रस्तुत किया। वहाँ उपस्थित दर्शकों ने इन गीतों को खूब पसंद किया। इसके बाद राजेन्द्र प्रसाद ने गाया, ‘लिहले देसवा के अजदिया, खदिया पहिन के जी’। उनकी दूसरी प्रस्तुति थी, ‘हमरा हिरा हेरा गइल कचरे में’। इन गीतों का भी श्रोताओं ने भरपूर रसास्वादन किया।

रंजीत गिरी और स्कूल प्रबंधक रामपुकार जी ने जत्थे के सभी साथियों का बहुत ही प्रेम से स्वागत किया। रंजीत गिरी समाजसेवी हैं। उनकी उपस्थिति और उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। रामपुकार जी ने सांस्कृतिक पदयात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज जिस तरह से दुनिया में हिंसा बढ़ती जा रही है, वैसे ही प्रेम का यह प्रचार-प्रसार और गाँव-गाँव जाकर लोगों को जागृत करने का जज़्बा और उनसे सीखने की ललक बहुत महत्वपूर्ण है। आज समाज में भाईचारे के लिए ऐसे कामों की सख्त ज़रूरत है।

हिमांशु कुमार एवं साथियों ने फिर एक गीत की प्रस्तुति की, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना-बाना बदलेगा। तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ अगली प्रस्तुति छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली और साथियों द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘ढाई आखर प्रेम’ था। निसार अली अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ से आकर बिहार के इस जत्थे के साथ लगातार भ्रमण कर रहे हैं। उनके नाचा-गम्मत शैली के नाटक को बच्चों ने खूब पसंद किया। इस नाटक में कबीर, रहीम, अदम गोंडवी की रचनाओं को भी पिरोया गया था। साथ ही भगत सिंह, महात्मा गांधी, बाबासाहेब आंबेडकर के वक्तव्यों के उद्धरण देकर उसे बहुत शिक्षाप्रद बनाया गया था। कार्यक्रम के अंत में हिमांशु और साथियों ने ‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’ प्रस्तुत किया। रितेश ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


11 अक्टूबर 2023, बुधवार

शंकर सरैया में रात्रि विश्राम के बाद सुबह 06 बजे जत्थे ने दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल से आगे की यात्रा की ओर प्रस्थान किया। साथियों ने गाते हुए यात्रा की शुरुआत की। हरदियाँ गाँव के रंजीत गिरी, गिरिन्दर मोहन ठाकुर जत्थे के साथ आगे-आगे चल रहे थे। लगभग साढ़े सात बजे जत्था टिकैती गाँव पहुँचा। थोड़ी देर बार गोपाल चौक माधोपुर पहुँचकर जत्थे के साथियों ने स्थानीय लोगों से मुलाकात की। रितेश ने कहा कि हम जन-जन तक प्रेम पहुँचाने के लिए इस जत्थे के साथ गाँव-गाँव घूम रहे हैं। नफरत, घृणा से भरे समाज में प्रेम और बराबरी कैसे स्थापित हो, यही बताना इस जत्थे का उद्देश्य है।

उसके बाद साथी निसार अली ने जत्थे के बारे में जानकारी देते हुए गीत सुनाया, ‘राहों पर नीलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी, अपनी कोशिश है कि ऐसी सुबह यहाँ पर आएगी।’ गीत सुनकर गोपाल चौक पर हुजूम उमड़ पड़ा। ‘कभी न अपना एका टूटे बटमारों की साजिश में’ जैसी पंक्तियों पर लोग झूम उठे। रंजीत गिरी ने अपने वक्तव्य में कहा, ‘यह जो जत्था चल रहा है, जिसमें सभी साथी जुड़े हैं, वे जिन उद्देश्यों को लेकर, जिस सपने को लेकर देश में गाँव-गाँव में घूम रहे हैं, उनके साथ हम सब गाँव-गाँव के लोग जुड़कर इनकी ताक़त बनेंगे। हम प्रेम से रहेंगे, शिक्षित बनेंगे, संगठित बनेंगे और समता-समानता पर आधारित नए विश्व के लिए संघर्ष करेंगे।’

‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’, हिमांशु और साथियों ने इस गीत के अलावा एक अन्य गीत भी प्रस्तुत किया – ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं।’ गीतों की प्रस्तुति के बाद वहाँ उपस्थित ग्रामीणों ने आर्थिक सहयोग भी किया। विजय शाह, उवस राम रंजीत गिरी, गिरिन्दर ठाकुर लगातार जत्थे के साथ-साथ चल रहे थे। इन लोगों का सहयोग प्रशंसनीय रहा।

गोपाल चौक पर दुकानें साढ़े सात बजे तक खुल गई थीं। यह क्षेत्र पूरी तरह किसानों-मज़दूरों का है। उपस्थित लोगों ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से हम साथ-साथ जीने की ताक़त पाते हैं। उवस राम ने अंत में अपनी बातें रखीं और जत्थे को बधाई दी। गोपाल चौक में लगभग एक घंटे का कार्यक्रम कर तथा लोगों से विचारों का आदान-प्रदान करते हुए जत्था आगे बढ़ा। लगभग साढ़े आठ बजे जत्था माधोपुर मधुमालत पहुँचा। वहाँ के दिनेश मिश्र एवं सतबीर अहमद साहब ने कहा, यह जत्था भाईचारा जोड़ने वाला है। हम सब ग्रामवासी इस जत्थे का स्वागत करते हैं। गाँव की समस्याएँ बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि, यहाँ रोज़गार नाम की चीज़ नहीं है। चारों ओर बेरोज़गारी है। किसी तरह जिया जा रहा है। बहुत खराब स्थिति है। जो युवक बेरोज़गार हैं, वे किसी तरह यहाँ रहकर अपनी जीविका चलाते हैं। वे खेती-किसानी, स्थानीय छोटे-छोटे दुकानों में काम कर जीवनयापन करते हैं। यहाँ की खूबसूरती यह है कि, यहाँ कोई जातीय या धार्मिक वैमनस्य नहीं है। सभी लोग एकदूसरे के पर्वों-उत्सवों में आते-जाते हैं, एकदूसरे से मिलते जुलते हैं। अभी देश की जो स्थिति है, जिस तरह भेदभाव उत्पन्न किया जा रहा है, उस समय यह जत्था एक नई उम्मीद जगाता है।

यहाँ से चलकर जत्था विजय कुमार उपाध्याय के कोचिंग सेंटर के पास रूका, जहाँ काफी छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। वहाँ हिमांशु, शिवानी, विजय और अन्य साथियों ने गीत प्रस्तुत किया, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ हिमांशु, शिवानी, अमन, संजय, पूजा ने दूसरा गीत प्रस्तुत किया, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आए हैं।’ ‘दिल से दिल का नाता जोड़ो। भारत जोड़ो, भारत जोड़ो।’ विजय कुमार उपाध्याय ने अपने विद्यार्थियों और उपस्थित लोगों से नारे लगवाए – ‘नफरत छोड़ो, दिल से दिल का नाता जोड़ो।’

यहाँ एक दर्ज़न से भी ज़्यादा मस्जिदें हैं और बहुत से मंदिर हैं। सभी लोग मिलकर रहते हैं। एकदूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते हैं। ये मंदिर-मस्जिद हमारी एकता की पहचान हैं। लोगों को अपने-अपने विश्वासों के साथ जीने का हक है। यह गाँव हमारा है। ये मंदिर-मस्जिद हमारे हैं। इन्हें पाक़ रखना, साथ में प्रेम रखना यही हमारे जीवन का सूत्र है। जत्थे के कलाकार साथियों ने उसके बाद एक और गीत प्रस्तुत किया – ‘तू ज़िंदा है, तू ज़िंदगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’। माया ने एक कविता सुनाई, ‘हम बेटी हैं, अभिशाप नहीं।’ अंत में रितेश ने ग्रामीणों से आग्रह किया कि आप हमारे साथ मिलकर चलें, गीत गाएँ, कविताएँ सुनाएँ। उपस्थित छात्राओं ने कहा कि, यह यात्रा हमें बहुत अच्छी लग रही है। यह सब कुछ हमारे लिए, हमारे देश के लिए हो रहा है। यह स्वागत योग्य है।

जत्था अगले पड़ाव राजकीय मध्य विद्यालय माधोपुर मठ (तुरकौलिया) में पहुँचा। वहाँ स्कूल के प्रांगण में जत्थे के साथियों का स्वागत वहाँ के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों द्वारा किया गया। करीब छैः सौ छात्र-छात्राएँ स्कूल में थे। उनके भीतर बहुत उत्साह दिख रहा था। हिमांशु ने अपने साथियों के साथ गीत प्रस्तुत किया।
जत्था तुरकौलिया से खाना खाकर आगे बढ़ा। लगभग 45 मिनट चलने के पश्चात पदयात्रा बैरिया बाजार पहुँची। वहाँ पहुँचकर परचे बाँटे गए। लोगों से सम्पर्क कर इस जत्थे के उद्देश्य के बारे में बातें की गईं। उसके बाद जत्था पहुँचा पिपरिहा। गीत-संगीत के माध्यम से लोगों को अपनी यात्रा के बारे में जानकारी दी गई। एक बात, जो इस इलाके में देखने को मिली, वह थी गरीबी, बेरोज़गारी। फसल अच्छी थी। छोटी-छोटी जोत के किसान हैं। रोज़गार नहीं होने के कारण ज़्यादा युवा राज्य से बाहर जाकर काम करते हैं। शौचालय नहीं हैं। छोटी-छोटी झोंपड़ियाँ हैं। सरकारी सुविधाएँ सभी तक नहीं पहुँच पाती हैं। इस इलाके की एक उल्लेखनीय बात यह है कि ज़्यादातर लोग गांधी जी के बारे में, भगत सिंह और बाबासाहेब के बारे में जानते हैं। जत्थे के साथ पहले दिन से ही पूर्वी चम्पारण के वीरेन्द्र मोहन ठाकुर साथ चल रहे हैं। वे न केवल चल रहे हैं, अलग-अलग पड़ाव पर पहुँचने में सहायता भी कर रहे हैं। जत्था पिपरिहा होते हुए रात्रि विश्राम के लिए लगभग साढ़े छैः बजे सपही पहुँचा, जहाँ के पंचायत भवन में जत्थे के रूकने की व्यवस्था की गई थी।

साढ़े छैः बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम में सबसे पहले निसार अली और देवनारायण साहू ने मिलकर छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत शैली का नाटक ‘ढाई आखर प्रेम’ प्रस्तुत किया। यह शैली चूँकि छत्तीसगढ़ की लोकनाट्य शैली है, इसलिए इसके नएपन ने दर्शकों का काफी मनोरंजन किया। यह नाटक पूरी यात्रा में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। जिस भी इलाके से जत्था गुज़रता है, वहाँ छत्तीसगढ़ के दोनों कलाकार इसकी प्रस्तुति करते हैं। इसके साथ ही साथी निसार अली कबीर, रहीम, अदम गोंडवी आदि के दोहे, ग़ज़ल आदि भी पढ़ते हैं और नाटक के मूल संदेश को जनता तक पहुँचाते हैं।

रितेश ने जत्थे के संदेश के बारे में ग्रामीणों को विस्तार से बताया। इसके बाद फिर गीत प्रस्तुत किये गये। हिमांशु, शिवानी, तन्नू, माया, पूजा आदि साथियों ने अपने गीतों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहला गीत था, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ दूसरी प्रस्तुति थी, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग़ मिटाने आए हैं।’

इस तरह सिपहा बाजार में लोगों से संवाद करते कार्यक्रम समाप्त हो गया। हालाँकि कार्यक्रम के बाद काफी देर बिजली गुल थी, परंतु ग्रामवासियों का खाना बनाना, तमाम व्यवस्थाएँ करना, जत्थे के साथियों का गीत-संगीत की रिहर्सल करना और रिपोर्ट लिखने का काम कई टॉर्चों की मदद से जारी रहा।


12 अक्टूबर 2023, गुरुवार

सुबह जत्थे ने सपही गाँव से आगे की ओर प्रस्थान किया। यह जत्था आपसी प्रेम, शांति और सौहार्द्र का उत्सव है, जो दुनिया में व्याप्त नफरत, अविश्वास की भावना के जवाब मे हम संस्कृतिकर्मियों और ज़िम्मेदार नागरिकों की एक ज़रूरी पहल है। गाँव के कुछ पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवाओं से बात करने पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये कि ‘चंद मजबूत और ताकतवर देश कमज़ोर देशों को समाप्त कर देना चाहते हैं। चारों ओर युद्ध की विभीषिका से दुनिया त्रस्त है। इजराइल द्वारा जिस तरह गाजा पट्टी पर हमले कर फिलीस्तीनी लोगों को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, वह नितांत चिंताजनक है। हम आप लोगों के जत्थे के उद्देश्यों के साथ खड़े हैं। हम सब भी युद्ध और हिंसा की दुनिया नहीं चाहते। हम युवा हैं लेकिन हमारे सपनों को कुचला जा रहा है। रोज़गार, नौकरी नहीं है। पढ़-लिखकर भी यूँ ही छोटे-छोटे काम करके किसी तरह सिर्फ साँस भर ले पा रहे हैं।’

पदयात्रा के दौरान ग्रामवासी ऐतिहासिक संदर्भों की स्थानीय कहानियाँ भी सुनाते थे। सपही से जत्था निकलने से पहले वहाँ के निवासी शंभु सहनी ने बताया कि सपही बाजार में जहाँ रात में जत्थे ने अपने गीत-संगीत का कार्यक्रम किया था, वहाँ एक कुआँ है, जिसका पानी ज़हरीला था। पुरखे कहते हैं कि जब अंग्रेज़ उधर से गुज़रते थे और पानी माँगते थे तो गाँव के लोग उसी कुएँ का पानी उन्हें देते थे। उस पानी को पीने के बाद बचने की संभावना नहीं रहती थी। इस तरह हमारे पूर्वज हर तरीके से अपना विरोध प्रकट कर रहे थे। सामने से लड़कर भी, साथ ही साथ जैसे भी मौका मिले। आज भी वह कुआँ मौजूद है। शंभु सहनी का कहना है कि इस कुएँ को ‘तितहवा इनार’ कहते हैं। उन्होंने एक गीत के द्वारा इसे बताया, ‘मत मुअ मत माहुर खा, मरे के होखे तो सपही जा।’ यह कहानी हमारे पूर्वज सुनाते थे। यह विश्वास आज भी इस इलाके में मौजूद है। आज भी सपही विकास की बाट जोह रहा है। काफी सरकारी लूट है। गरीबों की संख्या बहुत अधिक है। धार्मिक कर्मकांड बहुत ज़्यादा है। शिक्षा का स्तर बहुत ख़राब है। दिखाने के लिए विकास है मगर बहुत कम लोगों तक उसकी पहुँच है। यहाँ भी अंग्रेज़ नील की खेती कराते थे और रैयत का शोषण-दमन भी करते थे।

12 अक्टूबर को जत्थे का पहला पड़ाव था सपही वेरेतिया (वॉर्ड नं. 5)। वहाँ के चौक पर जत्थे के उद्देश्य पर ग्रामीणों से चर्चा की गई। जत्थे के सभी साथियों ने मिलकर हिमांशु के नेतृत्व में गीत गाया, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं’। उसके बाद दूसरा गीत था, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ आगे जत्था बनारसी चौक (चैलहाँ) जाकर रूका। वहाँ दोपहर के भोजन के बाद जत्था आगे बढ़ा। अरविंद कुमार सिंह (अजगरी) तथा कुमार मनोज सिंह (पचरुखा) पश्चिमी का (मुखलिसपुर) जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे। अरविंद जी पूर्व मुखिया रहे हैं। उन्होंने बहुत सम्मान के साथ जत्थे का स्वागत किया एवं रास्ते भर परिचय कराते हुए पदयात्रा को खुशगवार बनाए रखा।

यहाँ से जत्था रवाना होकर बतख मियाँ की मज़ार पर पहुँचा। मस्जिद की बगल में मज़ार है। (बतख मियाँ के बारे में बताया गया कि जब गांधी जी मोतिहारी आए थे, उन्हें अंग्रेज़ों द्वारा दूध में ज़हर देकर मारने का षड्यंत्र रचा गया था। यह बात बतख मियाँ ने सुन ली। सुनकर पहले तो वे जार-जार रोए, मगर उसके बाद उन्होंने जाकर गांधी जी को यह बात बताई और दूध पीने से मना कर दिया। गांधी जी ने उपवास की बात कहकर दूध पीना टाल दिया और उनकी जान बच गई। अगर गांधी नहीं बचते तो स्वतंत्रता नहीं मिलती, क्षेत्र में अभी भी यह विश्वास दृढ़ है। इस घटना के अनेक प्रकार के विवरण लोगों द्वारा सुनाए जाते हैं। जत्थे के साथियों ने इन बातों को कई जगह रिकॉर्ड किया है।)

वहाँ मो. हाजी हुसैन अंसारी साहब काजी तथा मौलाना सलाउद्दीन रिज़वी इमाम साहब से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि बतख मियाँ के चिन्हों को मिटाने की हरचंद कोशिश की जा रही है। बतख मियाँ के पोते हैदर अंसारी आज भी गाँव में रहते हैं। उनके पास ज़मीन तक नहीं है। उनका बेटा साबिर अली विकलांग है। नवाज़न खातून उनकी पत्नी है। यह परिवार बतख मियाँ के भाई का है। उनका अब कोई परिवार नहीं है। अजगड़ी गाँव के लोगों ने आज भी गांधी जी और बतख मियाँ अंसारी की यादों को उसी तरह सँजोकर रखा है। लोकस्मृतियों में ही पूरा इतिहास सुरक्षित है। आज भी कुछ बुजुर्ग कहते हुए मिले कि हमारे नेता आज भी गांधी जी ही हैं। कुछ लोग गांधी जी और बतख मियाँ के सपनों का भारत बनाने में हमेशा अड़चन पैदा करते रहे हैं।

फिर जत्था सिसवा पहुँचा। रास्ते में बाजार मिला, वहाँ लोगों से सम्पर्क करते हुए जत्था आगे बढ़ता गया। रात उतर रही थी। लोग धीरे-धीरे गाते-बजाते रात्रि विश्राम की जगह सिसवा पहुँचे। यहाँ के पंचायत भवन में रूकने की व्यवस्था की गई थी। सिसवा में पूर्व विधायक रामाश्रय प्रसाद सिंह, अमीरुल हुदा, ज़फीर आज़ाद चमन, जो मंजरिया प्रखण्ड के प्रमुख हैं, आदि ने अपने अन्य साथियों के साथ पूरे जत्थे का इस्तकबाल किया। थोड़ी देर रूककर, सामान वगैरह रखने के बाद जत्था लगभग साढ़े सात बजे कपहरिया टोला सिसवा चौक पर पहुँचा। यहाँ पहले से ही लोग इकट्ठे थे। जत्थे के आगमन की सूचना उन्हें पहले से ही थी। बहुत उत्साहवर्द्धक माहौल था। यह भी मुस्लिमबहुल क्षेत्र है। यहाँ भी आपसी एकता देखते बनती थी।

कार्यक्रम की शुरुआत ‘जोगीरा’ से हुई। पीयूष के शुरुआत करते ही पूरी टीम उनके साथ गाने लगी, ‘ओ जोगीरा सरर … रर… र. र’ पर लोग झूम रहे थे। फिर रितेश ने लोगों के बीच अपनी बातें रखीं और जत्थे के महत्व पर लोगों से बातचीत भी की। उसके बाद इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र ने लोगों को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि, ‘यह गांधी जी, भगत सिंह की विरासत को बचाने का समय है और आज हम जहाँ खड़े होकर बातें कर रहे हैं, यह पूरा क्षेत्र गांधी जी और किसानों-मज़दूरों की एकता का एक मिलन बिंदु रहा है। यह गांधी जी और उनके कई साथियों का कर्मक्षेत्र रहा है। आज उस भूमि को, हमारे मुल्क को घृणा का अखाड़ा बनाया जा रहा है। पहले जब मैं बच्चा था तो एक भजन सुनता था, ‘मन तड़पत हरि दरशन को आज’, इसे गाया मोहम्मद रफी ने, लिखा शकील बदायूँनी ने और संगीतकार थे नौशाद। इन्होंने सभी दूरियाँ खत्म कर दीं। यह मुल्क बनते बनते बना है। अमीर खुसरो, सूफियों-संतों की लम्बी परम्परा, गालिब, मीर, निराला, कालिदास सभी से गुज़रकर यह गुलिस्तां बना है। स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह और गांधी जी में कुछ वैचारिक भिन्नता थी, उनके तरीके कुछ अलग थे; लेकिन दोनों एक साथ देश की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। सिर्फ़ आज़ादी ही नहीं, बराबरी, समानता के साथ आज़ादी, मज़दूरों-किसानों की आज़ादी, महिलाओं को सामंती शिकंजे से आज़ादी! दोनों देश को एक सेक्यूलर देश देखना चाहते थे। हम उन्हीं के असली वारिस हैं। हम उन संघर्षों और सपनों की रक्षा करने, आपके साथ जुड़ने के लिए यहाँ आए हैं। गांधी जी के पास नैतिक ताकत थी। हम मोहब्बत का पैग़ाम लेकर आपके पास आए हैं।’

फिर एक बार गीत की शुरुआत की लक्ष्मी प्रसाद यादव ने – ‘सोनेवाले जाग समय अंगड़ाता है’। उसके बाद उन्होंने दूसरा गीत सुनाया, ‘बढ़े चलो जवान तुम बढ़े चलो, बढ़े चलो।’ पूर्व विधायक रामाश्रय प्रसाद सिंह ने अपनी बातें रखते हुए कहा, ‘यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है, हम नए पौधों को देख रहे हैं। उन्हें देख यह विश्वास बढ़ा है कि अभी भी भविष्य सुरक्षित है। जब तक बच्चे एक सुर में एक साथ रहने का प्रण लेते हैं, तब तक हमें कोई परास्त नहीं कर सकता।’ इसके बाद लक्ष्मी प्रसाद यादव ने फिर एक गीत सुनाया, ‘कैसे जइबै गे सजनिआ पहाड़ तोड़े ला हे, हमर अंगुरी से खूनवा के धार बहेला। साथी रितेश ने उपस्थित लोगों से जत्थे में शामिल होने की अपील की। उसके बाद प्रमुख चमन जी ने कहा कि, ढाई आखर प्रेम का उद्देश्य आप सब जानते हैं। आप कितना भी विकास क्यों न कर लें, अगर प्रेम और विश्वास नहीं तो ऐसे विकास का कोई अर्थ नहीं रह जाता। यह गांधी जी की कर्मभूमि रही है और उन्होंने हमें प्रेम और त्याग का पाठ पढ़ाया है। हम अपनी बहुसांस्कृतिक पहचान को लेकर ही सुंदर दिखते हैं।
निसार अली और देवनारायण साहू ने छत्तीसगढ़ की लोकनाट्य नाचा-गम्मत शैली में ‘ढाई आखर प्रेम’ नाटक प्रस्तुत किया। दर्शकों का उत्साह देखते बनता था। स्थानीय लोगों के लिए नाचा-गम्मत बिल्कुल नया था, फिर भी लोगों ने खूब लुत्फ़ उठाया। बच्चे कूद रहे थे इतना उत्साह था। नाटक के बीच बीच में कबीर, रहीम के दोहे, अदम गोंडवी की ग़ज़लें भी प्रस्तुत की जा रही थीं। फिर हिमांशु और साथियों ने गीत प्रस्तुत किया, ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं। ‘ढाई आखर प्रेम’ बिहार राज्य के सांस्कृतिक कार्यक्रम का यह छठवाँ दिन था।


13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार

बिहार में ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा के सातवें दिन सुबह जत्था सिसवा पूर्वी पंचायत में रात्रि विश्राम के बाद प्रभात फेरी के रूप में निकल पड़ा। इस दौरान ग्रामीणों के साथ संवाद किया गया। यहाँ से अपने अगले पड़ाव सुरहा के लिए जत्था चल पड़ा। जत्थे के साथियों ने ‘गंगा की कसम यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा। तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ गाते हुए यात्रा की शुरुआत की। जत्थे के सभी साथियों के चेहरे पर विश्वास था कि यह दुनिया, यह वक्त चाहे कितना ही बुरा क्यों न दिखाई दे या इस दुनिया को बदरंग करने की जितनी भी कोशिशें क्यों न की जाएँ; लेकिन हम जन-जन तक, लोगों के बीच पहुँचकर अपनी सांस्कृतिक विरासत की कथा कहते रहेंगे। हमारा जो बहुरंगी ताना बाना है, उसे बचाने के लिए हम कृतसंकल्प हैं। जत्थे के सभी साथियों ने, चाहे वे युवा हों, बुजुर्ग हों, सबके कदम एक साथ उठ रहे थे उसी जोशखरोश के साथ। कहीं थकावट के चिह्न नहीं।

जत्था अपने अंतिम पड़ाव मोतिहारी की तरफ़ बढ़ रहा था अपने बापू की कर्मभूमि की ओर। यूँ तो यह पूरा क्षेत्र ही बापू के पदचिह्नों का अहसास दिलाता है। यहाँ की मिट्टी में बापू के त्याग और बलिदान की सुगंध है। आज भी हर गाँव गांधी को ही अपना सब कुछ मानता है।

‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्था सिसवा से चलता हुआ लोगों से मिलते हुए सुरहाँ गाँव पहुँचा। यहाँ जत्थे के साथियों ने हरिहर प्रसाद, बाबूलाल महतो, खेदू महतो से बातचीत की। वे सब मज़दूर हैं। उन्होंने कहा कि हम सब आपकी यात्रा का पूर्ण समर्थन करते हैं। अगर देश में हर कोई इसी प्रेम को फैलाने का प्रण ले ले तो आतताई तुरंत समाप्त हो जाएंगे। उन्होंने कहा, हमारा गाँव बहुत गरीब है। पूरे गाँव की जनसंख्या 1200 के करीब है, लेकिन 4-5 लोग ही नौकरी में हैं। ज़्यादातर लोग मोतिहारी शहर जाकर जीवनयापन के साधन ढूँढ़ते हैं। हमारे पास जो थोड़ी ज़मीन है, उसी पर गेहूँ, धान, मकई, गन्ना आदि से जीवनयापन करते हैं। यहाँ हर वर्ष बाढ़ आती है लेकिन दो वर्षों से नहीं आ रही है इसलिए धान हो रहा है। जब बाढ़ आती है तो लोग सुरक्षित जगहों पर अपने जानवरों और घर के कुछ सामान, जो वे बचा सकते हैं, ले कर चले जाते हैं। यहाँ एक मिडिल स्कूल है जहाँ बच्चे पढ़ने जाते हैं। एक विशेषता है हमारे गाँव की कि, हम मिलजुलकर रहते हैं। सभी एकदूसरे की मदद करते हैं। हमारे पास आपसी मदद के सिवा है भी क्या?? अगर हम अपना भाईचारा, प्रेम भी भूल जाएँ तो रहेंगे कैसे?

जत्थे के युवा साथियों को एक नई दुनिया पहली बार दिख रही थी। जो दुनिया शहरों में दिखती है, जो जगमगाहट दिखती है, उसके लिए गाँवों को अपना बलिदान देना पड़ता है।

फिर जत्थे ने आगे मोड़ पर बरगद के पेड़ के नीचे कार्यक्रम की शुरुआत की। तभी रामदेव गिरी, जो चलने में बिल्कुल लाचार थे, लाठी के सहारे किसी तरह कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे। कुछ लोगों ने पानी लाकर दिया। गाँव की लड़कियाँ कुर्सियाँ निकालकर दे रही थीं। जिनके पास जो कुछ था, वह साथियों को देकर अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रहे थे। वे गरीब लोग थे, सीमित साधनों वाले लोग थे, बिचौलिए लोगों की मार से मारे गए लोग थे। लेकिन उनकी जिजीविषा और प्रेम के प्रति समर्पण नई आशा जगाती है।

स्थानीय लोगों ने चौक पर खड़े होकर कार्यक्रम को देखा और बहुत पसंद किया। प्रस्तुतियों के बाद रितेश रंजन ने लोगों को ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के बारे में जानकारी दी। उसके बाद शिवानी और साथियों ने गीत गाया, ‘‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग़ मिटाने आए हैं’। दूसरा गीत भी प्रस्तुत किया गया, ‘गंगा की कसम यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा। तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ निसार अली ने अपने संबोधन में कहा, हम दूर से चलकर आए हैं, एक संदेश लेकर आए हैं। यह बाजार का समय है, यह खरीदने-बेचने का समय है। ऐसे में हमें बाजार का विकल्प ढूँढ़ना है। वह बाजार, जो मनुष्य को, उसकी कला को एक कमोडिटी या उपभोक्ता वस्तु में बदल देता है।
जत्था वहाँ से निकलकर शाम 6 बजे मोतिहारी शहर से गुज़रकर एनसीसी कैम्पस राजा बाजार पहुँचा। यहाँ शाम को नुक्कड़ पर कार्यक्रम हुआ। सबसे पहले जत्थे के बुजुर्ग साथी गायक राजेन्द्र प्रसाद ने गीत सुनाया, ‘लिहले देसवा के अजदिया, खदिया पहिन के जी’, दूसरा गीत भी उन्होंने प्रस्तुत किया, ‘हमरा हिरा हेरा गइल कचरे में’। उसके बाद निसार अली और देवनारायण साहू ने ‘ढाई आखर प्रेम’ छत्तीसगढ़ी नाटक प्रस्तुत किया। उसके बाद ‘राहों पर नीलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी, अपनी कोशिश है कि ऐसी सुबह यहाँ पर आएगी’ सुनाया।

इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार ने महात्मा गांधी के कथन को उद्धृत करते हुए कहा, ‘बापू अपने आप को हिंदू मानते थे और इस बात को वे खुलकर कहते थे। मगर वे बार बार यह भी कहते थे कि मैं अपने आप को केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि ईसाई, मुसलमान, यहूदी, सिख, पारसी, जैन या किसी भी अन्य धर्म-सम्प्रदाय का अनुयायी मानता हूँ। इसका मतलब यह है कि मैंने अन्य सभी धर्मों और सम्प्रदायों की अच्छाइयों को ग्रहण कर लिया है। इस प्रकार मैं हर प्रकार के झगड़े से बचता हूँ और धर्म की कल्पना का विस्तार करता हूँ। यह बात उन्होंने 10 जनवरी 1947 को कही थी। यानी एक धर्म को मानने का यह मतलब नहीं होता कि हम दूसरे धर्मों के खिलाफ हो जाएँ। हमें साथ-साथ रहना है तो परस्पर प्रेम से जीना होगा।’

उल्लेखनीय है कि 14 अक्टूबर को मोतिहारी में इस ‘ढाई आखर प्रेम’ बिहार जत्थे की पदयात्रा का समापन होना है, इसलिए रितेश रंजन ने सभी लोगों को समापन कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया। बिहार इप्टा के कार्यवाह महासचिव फिरोज़ अख़्तर खान ने बताया कि समापन में बात होगी बंधुत्व की, बात होगी बराबरी की, बात होगी ढाई आखर प्रेम की। इसके बाद पदयात्रा मोतिहारी शहर पहुँची। 14 अक्टूबर 2023 को दोपहर 02 बजे गांधी संग्रहालय मोतिहारी में समापन कार्यक्रम आयोजित किया गया है।


14 अक्टूबर 2023, शनिवार

ढाई आखर प्रेम जत्थे ने 14 अक्टूबर को अपनी शुरुआत प्रभात फेरी से की। सुबह 07 बजे से जत्थे के सभी साथी शहर के भिन्न-भिन्न मार्गों से गुज़रें। मोतिहारी गांधी जी के कर्मों का स्मृति-स्थल है। यहाँ न सिर्फ चम्पारण सत्याग्रह से जुड़ी यादें हैं, बल्कि नील की खेती करने वाले उन किसानों का दर्द और संघर्ष भी है। उसके बाद गांधी जी की जो महत्वपूर्ण भूमिका रही पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में, उन सब का यादगार केन्द्र है मोतिहारी! उनकी सफलता और ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारत की मुक्ति का जीवित दस्तावेज़ है मोतिहारी की जनता, जो गाँव-गाँव में गांधी जी के संघर्षों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही थी।
चम्पारण सत्याग्रह, 1917, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा सत्य और अहिंसा पर आधारित चलाया गया पहला सफल सत्याग्रह था। इस सत्याग्रह के साथ भारतीय राजनीति में गांधी युग की शुरुआत हुई, जिसमें जाति, सम्प्रदाय, धर्म, लिंग और क्षेत्रीय भेदभाव का कोई स्थान नहीं था।

आज ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्थे का बिहार में समापन है। इस जत्थे की शुरुआत पटना से 07 अक्टूबर 2023 को पटना के रेल्वे स्टेशन पर जाकर गांधी जी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाने से हुई थी। जत्थे की शुरुआत पटना रेल्वे स्टेशन से इसलिए हुई कि कोलकाता से चम्पारण जाने के क्रम में पहली बार 10 अप्रेल 1917 को पटना जंक्शन (पूर्व नाम – बाँकीपुर जंक्शन) पर गांधी जी पधारे थे।
ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध चलाए जा रहे ‘नील आंदोलन’ के महान स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के साथ महात्मा गांधी 10 अप्रेल 1917 की सुबह पटना स्टेशन पहुँचे थे और नील की खेती से संबंधित तथ्यों का पता लगाने हेतु यहाँ से मुजफ्फरपुर होते हुए चम्पारण गए थे। उसी की याद में बिहार में जत्थे की शुरुआत पटना के रेल्वे स्टेशन से होते हुए गांधी मैदान पहुँचकर भगत सिंह और गांधी जी की मूर्तियों पर माल्यार्पण करते हुए गांधी मैदान में कलाकारों ने गीत-संगीत-संवाद कार्यक्रम किया था।

मोतिहारी में 14 अक्टूबर को सुबह प्रभात फेरी के दौरान जत्थे ने लोगों से सम्पर्क स्थापित किया। गीत गाते जत्थे के साथी गांधी जी से संबंधित स्थलों से गुज़रते हुए लौटे गांधी संग्रहालय पर दोपहर 02 बजे समापन कार्यक्रम के लिए।

इस ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्थे ने सभी पदयात्रियों को बहुत सी नई सीखें दीं। यह यात्रा अपने देश को समझने, उसके बहुसांस्कृतिक, बहुभाषिक रूपों को देखने और समझने में मदद कर रही थी। हमारा समाज विभिन्न परिस्थितियों में कैसे जीता है, कैसे कठिन से कठिन समय में भी अपनी एकता को बनाए रखता है, यह इस यात्रा से सीखने को मिला।

चम्पारण के कण-कण में कोई कस्तूरबा हैं, कोई राजकुमार शुक्ल हैं, कोई गोरख प्रसाद हैं, कोई शेख गुलाम हैं, लोमराज सिंह हैं, हरिवंश राय हैं, शीतल राय हैं, कोई धरणीधर प्रसाद हैं, तो कोई रामनवमी बाबू हैं और कोई बतख मियाँ अंसारी हैं। चम्पारण के गांधी-सत्याग्रह ने एक और सीख दी थी कि आपसी एकता, प्रेम हमें बड़ी से बड़ी लड़ाई जीतने में मदद करता है, वहीं हमारा अविश्वास, हमारी घृणा, जनता के भीतर का अलगाव, उसे विभाजन तक ले जा सकता है। 1947 में जिसके कारण एक करोड़ तीस लाख के करीब लोग घर से बेघर हुए, हज़ारों हत्याएँ हुईं, स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए। इस विभीषिका से देश को गुज़रना पड़ा। जिस एकता से जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को परास्त किया था, लेकिन अपने स्वार्थों और घृणा के कारण अपनों से ही हार गया। यह सबक है चम्पारण सत्याग्रह का, जिसे जत्थे के साथ शामिल साथियों ने अपने भीतर न केवल ग्रहण किया, उससे सबक भी सीखा। हमारी एकता, हमारा प्रेम ही हमारा बल है। दुनिया युद्ध से नहीं जीती जाती है, यही चम्पारण और गांधी जी का सबसे बड़ा संदेश था, जिसे जत्थे के साथी अपने साथ लिए नए समूहों के साथ जुड़ने के विश्वास के साथ लौट रहे थे।

समापन कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए बिहार इप्टा के कार्यवाह महासचिव फ़िरोज़ अशरफ़ ख़ान ने बताया कि, ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्थे के द्वारा कविता, गीत, संगीत, संवाद के माध्यम से यात्रा में जन-सम्पर्क किया गया। इसी पदयात्रा के समापन कार्यक्रम में हम आप सब का ख़ैरमक़दम करते हैं। प्रेम, सद्भाव और समरसता बनाए रखने के लिए तमाम सेक्यूलर सोच के संगठनों ने मिलकर यह यात्रा निकाली। हमने इस यात्रा से अनुभव किया कि आज भी किसानों की समस्याएँ जैसी की तैसी हैं। सरकारें किसानों के हितों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखतीं, केवल दिखावा करती हैं। उनके नाम पर जो कार्यक्रम तय किये जाते हैं, या उनके लाभ के नाम पर जो नीतियाँ बनाई जाती हैं, उसका बड़ा हिस्सा बिचौलिए खा जाते हैं। उस लूट में सरकारें, उनके ब्यूरोक्रेट्स, बिचौलिए सब शामिल रहते हैं।

ढाई आखर प्रेम पदयात्रा के स्थानीय संयोजक अमर जी ने यात्रा को सफल बनाने में अथक मेहनत की है। उन्होंने स्थायी यात्रियों के सम्मान में अपनी बातें कहीं, ‘चम्पारण की धरती को चुनने के लिए आपने जो निर्णय लिया, उसके लिए हम चम्पारण की जनता की ओर से आपका अभिनंदन करते हैं। अभी इस देश में जिस तरह का ज़हरीला माहौल बनाया जा रहा है, वैसे समय में गांधी जी के पदचिह्नों पर चलने के लिए आपने जो निर्णय लिया, वह स्वागत योग्य है। आपने तमाम उन स्थानों पर जाकर लोगों से मिलकर, उन ऐतिहासिक पुरुषों के गाँव में जाकर उन क्रांतिकारियों को याद किया, इसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं।’ इसके बाद उन्होंने मनोज कुमार, रामाश्रय बाबू, शंभु साहनी, दिग्विजय सिंह के साथ उन तमाम लोगों का शुक्रिया अदा किया, जिन्होंने यात्रियों को रास्ते में ठहराने या भोजन की व्यवस्था की थी। उन्होंने योगी मांझी, गंगिया देवी, विनोद बाबू, मंकेश्वर जी, विनय कुमार जी का शुक्रिया अदा किया कि इन सबने आगे बढ़कर इस यात्रा को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका अदा की।

समापन समारोह दोपहर 02 बजे से शुरु हुआ, जिसमें जत्थे के साथियों के साथ बड़ी संख्या में शहर के लोग शामिल हुए। समापन समारोह के पहले पदयात्रा करते हुए जत्था गांधी संग्रहालय पहुँचा। उसके बाद वहाँ के मंच पर कलाकारों ने अपना कार्यक्रम पेश किया।

पहला गीत सभी साथियों के साथ प्रस्तुत किया गया, ‘हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा’। अगली प्रस्तुति थी, ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम, तिन कठिया लेलेबा परनवा राम राम हरे हरे, डूबि गैले सबेरे किसनवा राम राम हरे हरे, रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम, वैष्णव जन तो तेणे कहिए जे पीर पराई जाने रे’। तीसरी प्रस्तुति हुई, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’

उसके बाद सामाजिक संस्था एक्शन एड की शरद कुमारी जी ने अपनी बात रखते हुए कहा, ‘मैं सभी पदयात्रियों का अभिनंदन करती हूँ। अभी पूरी दुनिया में सहनशीलता कम हो रही है। विकास के नाम पर जिस तरह भेदभाव पैदा किया जा रहा है, वह देश के लिए बहुत ख़तरनाक़ है।’ कटिहार कॉलेज की प्रिंसिपल चंदना झा ने शरद कुमारी जी को झोला और गमछा देकर सम्मानित किया। साथ ही रामायण सिंह, हामिद रज़ा, भरत राय को भी चंदना झा द्वारा सम्मानित किया गया।

रितेश रंजन ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। नृत्य की प्रस्तुति हुई। अगली प्रस्तुति राजेन्द्र प्रसाद के गीत की थी, ‘खदिया पहिन के ओ बापू खदिया पहिन के। लिहल देसवा के अजदिया बापू खदिया पहिन के।’ लक्ष्मी प्रसाद यादव ने ‘बढ़े चलो जवान तुम बढ़े चलो, बढ़े चलो’ गीत की प्रस्तुति दी और उसके बाद दूसरा गीत सुनाया, ‘कैसे जइबे गे सजनिआ पहाड़ तोड़े ला हे, हमरा अंगूरी से खूनवा के धार बहेला’।

लखनऊ से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ता नासिरुद्दीन ने सवाल उठाया कि, ढाई आखर प्रेम कहने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? क्यों हमें इस तरह जत्था लेकर घूमना पड़ रहा है? आखिर इसकी क्या ज़रूरत आ पड़ी है? क्या हमारे जीवन से प्रेम, सहयोग खत्म होता जा रहा है? क्या समाज में विसंगतियाँ बढ़ती जा रही हैं? आज मीडिया पूरी तरह से नफ़रत फैलाने का काम कर रहा है। वह नफ़रत की भाषा सिखा रहा है। केवल घृणा पैदा की जा रही है। सोशल मीडिया हमारे जीवन में एक साजिश के तौर पर बंधुता, प्रेम को ख़त्म करने की कोशिश करता है। ‘ढाई आखर प्रेम’ का यह जत्था लोगों में प्रेम पैदा करने का प्रयास कर रहा है। हम बापू के पदचिह्न पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।

अगली प्रस्तुति के रूप में मनोज ने हाथ की सफाई प्रस्तुत की। गांधी संग्रहालय के सचिव ब्रजकिशोर जी, जसौली पट्टी के पारसनाथ सिंह तथा डॉ. परवेज़ को सम्मानित किया गया। ब्रजकिशोर जी ने जत्थे के सभी साथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया, जिन्होंने गांधी जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का अकथनीय कार्य किया। अगली एकल प्रस्तुति थी राजन कुमार के नाटक ‘भगत सिंह’ की। इसमें भगत सिंह के अंतिम पत्र को एकल नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया। अखिलेश्वर राम ने अपने संबोधन में कहा कि, आज नफ़रत और हिंसा के समय में गांधी जी ही हमारे मार्गदर्शक हो सकते हैं। उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जत्थे के साथियों को बहुत बहुत बधाई। तन्नू कुमारी और साथियों के द्वारा ‘किसान नृत्य’ प्रस्तुत किया गया, जिसके बोल थे, ‘दुनिया कायम बा किसान भैया, दुनिया कायम बा किसान से’।

इसके बाद संवाद के लिए शैलेन्द्र कुमार को बुलाया गया। उन्होंने कहा, ‘यह ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा भगतसिंह के जन्मदिन से शुरु हुई है और महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर खत्म होगी। दोनों ही सेक्यूलर हिंदुस्तान का सपना देखते थे। जब भी देश पर हिंसा, नफरत का हमला होता है, हम दोनों को याद करते हैं। प्रेम और अहिंसा आदमी को बहादुर बनाती है। हिंसा डरपोक का औज़ार है। गांधी भारत की मॉरल ऑथोरिटी हैं। मार्केट आपको संचालित करता है, गांधी आपको उम्मीद देते हैं।’

कपिला जी, अनिता निधि, कपिलेश्वर जी को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया। इसके बाद किसान की व्यथा पर केन्द्रित कठपुतली नृत्य प्रस्तुत किया गया। बोल थे, ‘भैया रे भैया, हम तो बनल ही किसान, हमरा बेटा भूखले सूते रे राम।’ उसके बाद छत्तीसगढ़ की नाचा-गम्मत लोकशैली पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया गया। निसार अली और देवनारायण साहू रायपुर छत्तीसगढ़ से आए थे। वे पूरी पदयात्रा में जत्थे के साथ रहे। इस नाटक के माध्यम से उन्होंने गांधी जी के मूल्यों को फैलाने का प्रयास किया। साथ ही साथ भगत सिंह के सिद्धांतों को भी नाटक के माध्यम से प्रकाशित किया। बीच-बीच में वे कबीर, रहीम के पदों के साथ ही साथ अदम गोंडवी की ग़ज़ल को भी पढ़ते गए। जीवन यदु राही का गीत, ‘राहों पर गुलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी’ के साथ नाटक खत्म हुआ। समापन समारोह में अंतिम कार्यक्रम था गीत ‘ढाई आखर प्रेम के पढ़ने और पढ़ाने आए हैं। हम भारत से नफ़रत का हर दाग़ मिटाने आए हैं।’
अंत में मंकेश्वर पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। करीब साढ़े तीन घंटे तक सफल कार्यक्रम के बाद जत्थे की पदयात्रा का समापन हुआ। सभी साथी एक दूसरे से मिलते हुए अगले पड़ावों पर मिलने का वादा कर जुदा हुए।

इस यात्रा की सहयोगी संस्थाओं में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) बिहार, भारतीय जन विकलांग संघ मोतिहारी, बिहार महिला समाज, दलित अधिकार मंच पटना, आइडिया मोतिहारी, जन संस्कृति मंच बिहार, जनवादी लेखक संघ बिहार, कृषक विकास समिति मोतिहारी, लोक परिषद, महात्मा गांधी लोमराज सिंह पुस्तकालय पट्टी जसौली, प्रगतिशील लेखक संघ बिहार, सीताराम आश्रम बिहटा पटना तथा प्रेरणा (जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा) प्रमुख हैं।

महात्मा गांधी ज़िंदाबाद!
भगत सिंह ज़िंदाबाद!
भारत की सामासिक सांस्कृतिक एकता ज़िंदाबाद!

(ढाई आखर प्रेम बिहार राज्य की सांस्कृतिक पदयात्रा की प्रतिदिन की रिपोर्ट तैयार कर रहे थे सत्येन्द्र कुमार तथा फोटो और वीडियो उपलब्ध करवाए दिनेश शर्मा और निसार अली ने। संकलन किया है उषा आठने ने।)

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