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प्रेम, श्रम और रंगमंच; दिल्ली में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

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‘ढाई आखर प्रेम’ ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था’ की एक कड़ी के रूप में तीन दिवसीय थिएटर कार्यशाला का आयोजन 17 से 19 अक्टूबर 2023 तक हरिजन सेवा संघ, दिल्ली में किया गया।

कार्यशाला के पहले दिन लगभग 200 युवा रंगमंच प्रेमी कलाकार शामिल हुए। प्रसिद्ध थिएटर शख़्सियत और इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (आईपीटीए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना हेग्गोडु के मार्गदर्शन में कार्यशाला की शुरुआत ज्ञानवर्धक बातचीत से हुई, जहां प्रसन्ना ने अभिनय के बुनियादी सिद्धांतों पर चर्चा की।

पहले दिन पहले सत्र में युवा कलाकारों के साथ प्रसन्ना ने अपनी बातचीत के दौरान श्रमदान और अभिनय के बीच अंतर्संबंध स्थापित किया। उसके बाद सत्र का अंत खुले प्रश्नोत्तर सत्र में हुआ। बातचीत में की गई सैद्धांतिक चर्चा को व्यावहारिक धरातल पर लागू करने के लिए, श्रम का वास्तविक अनुभव लेने के लिए युवा कलाकारों को बाहर भेजा गया। वहां आसपास की सफाई के माध्यम से श्रमदान करने तथा कुछ देर प्रकृति के सान्निध्य का आनंद महसूस करने के लिए कहा गया। 

इसके बाद युवा कलाकारों को प्रकृति के सान्निध्य और श्रमदान से प्राप्त अनुभव के बारे में सोचने के लिए वहीं शांत बैठने के लिए कहा गया। श्रमदान के बाद जब कलाकार भीतर लौटे तो उन्होंने तत्सम्बन्धी अपने अनुभव प्रसन्ना से साझा किए। प्रतिभागियों ने प्रकृति के माध्यम से रंगमंच को समझने के लिए एक गंभीर सीख और एक नया उत्साह महसूस किया। कुल मिलाकर कार्यशाला का पहला दिन बौद्धिक रूप से बहुत ही उत्प्रेरक और प्रतिभागी कलाकारों के लिए एक अद्भुत स्मृति छोड़ गया।

दूसरे दिन कलाकार के अनुभव और अभिनय के बुनियादी सिद्धांतों के बेहतरीन मिश्रण को देखने का मौका प्रतिभागियों को मिला, जब प्रसिद्ध अभिनेता और थिएटर शख़्सियत पंकज त्रिपाठी ने अपनी उपस्थिति से कार्यशाला को विशेष बनाया। पहले सत्र की शुरुआत पंकज त्रिपाठी और युवा कलाकारों के बीच विचारपूर्ण बातचीत से हुई। दिए गए चरित्र को दृढ़ता से कैसे चित्रित किया जाए, इस बारे में कई सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने “कल्पना भी कोई चीज होती है” इस विचार-बिंदु के इर्द गिर्द कल्पना के महत्व पर प्रकाश डाला।

पंकज त्रिपाठी ने अपने काम में निरंतरता, निराश हुए बिना विफलताओं से लड़ना और हरेक दिन ख़ुद का एक बेहतर परिष्कृत नवीन रूप गढ़ने के महत्व को साझा किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कलाकार का अपने व्यक्तिगत अनुभव को समेटते हुए, कोई छोटी कहानी सुनाते हुए प्रतिक्रिया करना ही अभिनय कहलाता है। उन्होंने सिनेमा बनाम थिएटर की बहस का जवाब देते हुए अपने सत्र का समापन करते हुए कहा कि दोनों का अपना-अपना महत्व है। लेकिन जल्द ही लोग लाइव प्रदर्शन के लिए ज़्यादा तरसेंगे क्योंकि दुनिया पूरी तरह से आभासी हो गई है, जो नीरस हो सकती है।

पंकज त्रिपाठी के साथ इस ज्ञानवर्धक सत्र के बाद, प्रसन्ना द्वारा सत्र को आगे बढ़ाया गया। दूसरे सत्र में उन्होंने कलाकारों को 15-15 के समूहों में विभाजित किया और एक गतिविधि के रूप में उन्हें दो वाक्यांशों से बने विषयों को लेकर एक-एक ‘सीन वर्क’ तैयार करने का निर्देश दिया। ये दो वाक्यांश थे – “हरिजन सेवा संघ” और “ढाई आखर प्रेम”। कलाकारों ने उत्साहपूर्वक अपने ‘सीन वर्क’ पर काम करना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में अपनी रचनात्मक प्रस्तुतियों के साथ वापस आ गए। प्रसन्ना ने प्रत्येक प्रस्तुति को देखने के बाद उस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। इससे कलाकारों को अपनी गलतियों को पहचानने और आगे के कार्यान्वयन के लिए नई युक्तियाँ सीखने में मदद मिली। दिन का समापन हंसी-ख़ुशी के साथ हुआ, जब प्रसन्ना ने एक गतिविधि के माध्यम से प्रक्षेपण (प्रोजेक्शन) के महत्व को समझाया, जिसके साथ प्रतिभागियों ने विभिन्न धुनों और तालों पर नृत्य किया।

कार्यशाला के तीसरे दिन की शुरुआत श्रमदान से हुई, जहां प्रतिभागियों को प्रकृति के साथ गहरा संबंध बनाकर अपने दिन की शुरुआत करने के लिए कहा गया। इसके बाद, पिछले दिन के शेष ‘सीन वर्क’ प्रस्तुत किए गए। प्रसन्ना ने सभी ‘सीन वर्क’ को ध्यान से देखा और हरेक प्रस्तुति की विस्तृत विवेचना की। इससे प्रतिभागियों को अपनी गलतियाँ सुधारने और एक बेहतर अभिनेता बनने की समझ मिली।

इस ज्ञानवर्धक सत्र का समापन कुछ शारीरिक अभ्यासों के साथ हुआ, जिन्हें प्रसन्ना ने प्रतिभागियों को करने के लिए कहा था। इन अभ्यासों ने प्रतिभागियों को शारीरिक स्तर पर खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।कुल मिलाकर, प्रसन्ना ने श्रमदान और कुछ अद्भुत नाटकीय अभ्यासों के माध्यम से सभी प्रतिभागियों के मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को खोलने का काम किया।

कार्यशाला के समापन समारोह में रजनीश बिष्ट के नेतृत्व वाले समूह ‘खेल तमाशा’ द्वारा एक सांगीतिक प्रस्तुति दी गयी, जिसने प्रतिभागियों को थिरकने के लिए बाध्य किया। उनके द्वारा गाए गए गीतों में से एक ‘होली’ को सबसे ज़्यादा उत्साहवर्धक प्रतिसाद मिला, क्योंकि प्रतिभागी नाचने और ‘बीट्स’ का आनंद लेने से खुद को नहीं रोक सके। इस तरह कार्यशाला का संगीतमय और सफल समापन हुआ और सभी प्रतिभागी कुछ अविस्मरणीय अनुभव और यादें लेकर लौटे, जिन्हें वे जीवन भर याद रखेंगे।

रिपोर्ट: अनुला, इप्टा जेएनयू | अनुवाद: ऊषा आठले

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