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‘कल हमने एक नाम के दो गांव देखे’

यात्रा संस्मरण: ढाई आखर प्रेम यात्रा, मध्यप्रदेश पड़ाव

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आज सुबह गुरुद्वारे में नाश्ता करने के बाद यात्रा गांधी समाधि स्थल गई । 2017 में प्रशासन ने गांधीजी की इस समाधि को नर्मदा नदी किनारे से उखाड़ दिया था और समाधि के अवशेषों को बाद में बड़वानी के एक स्थान पर पुनर्स्थापित किया गया। नागरिक ही नहीं आंदोलनों को प्रेरित करने वाली धरोहरों को भी सत्ता ने विस्थापित किया है। मंदसौर से आए इप्टा के कलाकारों ने ‘रघुपति राघव’ वाला गीत गाया। यात्रियों ने गांधी जी की समाधि पर फूल चढ़ाए।

सीमा और मैंने इस यात्रा के लिए लिखा गीत – “ढाई आखर प्रेम के पढ़ ले जरा” गाया। निसार भाई ने नाटक का एक अंश का प्रदर्शन किया जिसमें यात्रा के संदेश का सार था फिर उन्होंने नाच करते हुए छत्तीगढ़ी गीत का गायन किया।

यात्रा के साथी बड़वानी शहर में भी निकले। एक चौराहे पर निसार भाई ने अपना नाटक भी किया और मंदसौर की साथी हूर बानो कैफ़ी और उनके साथियों ने दुष्यंत कुमार की गजल – “कहां तो तय था चिरागा” का बहुत प्रभावी गायन किया। कबीर का एक गीत हमने भी गाया।

जहां-जहां भी यात्रा का कार्यक्रम होता है वहां बच्चों की पुस्तकों की प्रदर्शनी भी साथ में चलती है. देखकर अच्छा लगता है कि तमाम दुष्प्रचार के बाद भी बच्चों की आंखों में पुस्तकों की चमक अभी भी बची हुई है। बड़वानी शहर के एक दूसरे चौराहे पर निसार भाई ने ‘दमा दम मस्त कलंदर’ गीत का छत्तीसगढ़ की नाचा शैली में गायन किया जिसमें अभिनय भी शामिल था।

फिर हम जांगरवा गांव गए। कल यात्रा में हमने एक नाम के दो गांव देखे। एक जहां से लोग विस्थापित हुए, दूसरा वो जहां इस गांव के लोगों का सरकार ने पुनर्वास किया। जहां पुनर्वास हुआ वहां कलाकारों ने गीत गाए और नाटक भी किया। इस सभा में गांव के सभी लोगों ने बहुत उत्साह के साथ भागीदारी की। नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी रहीं कमलू जीजी ने संघर्ष के दिनों का एक चित्र अपने भाषण में खींचा जिसमें लाठियां और जेल का भी जिक्र था। निमाड़ी बोली में उन्होंने अपनी बात कही।

इसी गांव में सभी ने खाना खाया । खाने में बाटी और वापले जैसा ही कुछ था, पर इस स्वाद में नयापन था। गांव के लोग ही परसाई कर रहे थे। यहां पहली बार मैंने आलू और खोपरा से बनी मीठी बर्फी भी खाई। इस गांव के बाद हम पुराने वाले जांगरवा गांव गए, जो नर्मदा नदी के किनारे बसा है और उजड़ गया है। हमने बहुत लोगों की कहानियां सुनीं।

यहां से लौटते हुए शाम हो गई थी। थकान बहुत हो गई थी, दिन में इतना खा लिया था कि फिर बिना खाए ही थककर सो गया था।

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