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पंजाब में ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था का तीसरा दिन
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं
दिल पे रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है
कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आँकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है
अदम गोंडवी की इस ग़ज़ल की प्रस्तुति दे रहे थे छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली जब जत्था अपने तीसरे दिन – 29 अक्टूबर को – फगवाड़ा से पदयात्रा करते पलाही पहुंचा। दूर तक लहलहाते धान के खेतों ने यात्रियों का मन मोह लिया। ट्यूबवेल से निकलता हुआ मीठा पानी भूमिगत रास्ते से खेतों को सींच रहा था। स्थानीय लोग यात्री की भांति जुड़ते गए और पलाही से बढ़ते हुए कारवां में अदम गोंडवी की उपरोक्त ग़ज़ल के अलावा “दमादम मस्त कलंदर” की प्रस्तुति और संक्षिप्त में “ढाई आखर प्रेम” यात्रा के उद्देश्यों पर जत्थे के यात्री निसार अली ने संवाद किया। उन्होंने कहा कि “यह यात्रा शांति, प्रेम और सद्भाव का संदेश देती हुई देशभर में चल रही है। प्रेम और सद्भाव की शुरुआत अपने घर, परिवार से होती है, वहां से यह आसपास, जिला-जवार तक पहुंचती है, लोग जुड़ते चले जाते हैं और देश बन जाता है। इस यात्रा में कबीर और नानक के संदेश हैं, गांधी की विरासत है।”
जत्था का अगला पड़ाव रानीपुर होने वाला था। यात्री चल पड़े। जब यात्री आगे बढ़ रहे थे तो स्थानीय साथियों ने बताया कि रानीपुर में क़रीब पांच गुरुद्वारे हैं और यहां का लगभग हर स्थानीय दुकानदार रस्क बनाता है। संवाद का यह सिलसिला चल ही रहा था तब तक रानीपुर चौक आ गया। वृक्षों की छांव में संवाद जारी रखने से पहले इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने श्रमदान शुरू कर दिया और देखते ही देखते सभी स्थानीय लोगों ने जत्थे का हिस्सा बनते हुए श्रमदान करना शुरू कर दिया। रानीपुर में श्रमदान के बाद पेड़ों की छांव में कुछ नज़्मों और कुछ कविताओं का पाठ निसार अली और विनीत तिवारी ने किया जिसमें फ़ैज़ की नज़्म “ऐ ख़ाकनशीनों उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुंचा है”, अदम गोंडवी की ग़ज़ल और कबीर के दोहे शामिल थे, जिन्हें सभी ने साथ मिलकर गुनगुनाया।
क़रीब दो बजने को थे और कुछ दूरी पर गुरु हरगोविंद का रामसर गुरुद्वारा था। इस गुरुद्वारे के बारे में कहा जाता है कि यहां छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद सहित आठवें एवं नौवें गुरु भी आए थे। स्थानीय यात्रियों के साथ जत्था गुरुद्वारा पहुंचा और बड़े उत्साह के साथ गुरु दा प्रसाद – लंगर (गुरुद्वारों में परोसा जाने वाला एक सामुदायिक भोजन) खाया।
जत्थे के साथी खटकड़कलां पहुंचे। शहीद भगत सिंह नगर जिले में स्थित खटकड़कलां को भगत सिंह का पैतृक गांव कहा जाता है जहां जत्थे के साथी भगत सिंह के घर और उनकी सहेजी हुई विरासत से रूबरू हुए। पैतृक गांव को देखने स्थानीय कॉलेज के कुछ छात्र-छात्राओं का एक दल भी आया था। निसार अली ने उनसे नाचा गम्मत पर एक संक्षिप्त संवाद किया जिसके क्रम में विद्याथियों के अनुरोध पर उन्होंने नाचा गम्मत “ढाई आखर प्रेम” की प्रस्तुति दी। इस प्रकार संवाद और सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ पंजाब में जत्थे का तीसरा दिन पूरा हुआ।
जत्थे में प्रसन्ना (राष्ट्रीय अध्यक्ष, इप्टा), सुखदेव सिंह सिरसा (राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ), विनीत तिवारी (राष्ट्रीय सचिव, प्रगतिशील लेखक संघ), इंद्रजीत रूपोवाली (महासचिव, इप्टा पंजाब), सुरजीत जज्ज (अध्यक्ष, प्रगतिशील लेखक संघ, पंजाब), दीपक नाहर, छत्तीसगढ़ से निसार अली, देवनारायण साहू, गंगाराम बघेल और जगनू राम के साथ ही बड़ी संख्या में स्थानीय लोग सहयात्री के रूप में जुड़े जैसे देविन्दर दमन (थिएटर कलाकार), जसवन्त दमन (फिल्म कलाकार), जसवन्त खटकर, अमन भोगल, डॉ. हरभजन सिंह, परमिंदर सिंह मदाली, सत्यप्रकाश, रणजीत गमानु, बिब्बा कलवंत, रोशन सिंह, रमेश कुमार, कपन वीर सिंह, विवेक, सरबजीत रूपोवाली, अन्नू रुपोवाली, आंचल नाहर, वैष्णवी नाहर, रेणुका आज़ाद, वैष्णवी रूपोवाली, कलविदर कौर, चाहतप्रीत कौर आदि।
रिपोर्ट: संतोष, इप्टा दिल्ली