सुभाष राय
प्रधान संपादक,जन सन्देश टाइम्स
बसवन्ना ने कभी अपने हाथ से बने कपड़े का, प्रेम, करुणा और श्रम का महत्व समझा था। उनके समय में चरखा एकमात्र मशीन थी। उनके काम को आगे बढ़ाया कबीर ने। उन्होंने हाथ से बाहर का करघा चलाया तो सांसों से भीतर का। एक करघे से सूत निकला। उससे गमछे बने, चादर बनी, लुंगी बनी, साड़ियां बनी। भीतर के करघे से प्रेम उपजा। इड़ा, पिंगला और सुषमन के धागे से उन्होंने जो चादर बुनी, उस पर कभी कोई दाग नहीं लगा। जस की तस धर दीनी चदरिया। वह प्रेम की चादर थी। दाग लगाती है, घृणा, वैमनस्यता, सांप्रदायिकता, मनुष्य को मनुष्य न समझने की दुर्भावना। सारे दाग धुलते हैं प्रेम से। इसी धागे और प्रेम का महत्व गांधी ने समझा। अहिंसा, मनुष्यता और प्रेम की अलख जगायी, देसी के महत्व की वकालत की, गांवों की अहमियत बतायी। भगत सिंह ने जिस क्रांति की बात की थी, वह भी इसी देस और इसी गांव को जगाने की बात थी। धीरे-धीरे हम सब भूल गये। मनुष्यता, प्रेम, अपना देस सब कुछ। जिनसे सीखना था, उन्हीं से विलग हो गये, उन्हें ही गंवार समझ लिया। और फिर एक बार एक ओढ़ी हुई गुलामी के शिकार हो गये। अब हम अपनी बात नहीं कर सकते, अपने लोगों की बात नहीं कर सकते, असहमत नहीं हो सकते, मनुष्यता के पक्ष में खड़े नहीं हो सकते। हमारे दिमागों तक जासूसों की पहुंच है। वे लगातार हथकड़ियां लिए हमारा पीछा कर रहे हैं।
इस भयानक परिस्थिति में अनेक सांस्कृतिक संगठनों के साथ मिलकर इप्टा के पदयात्री दल 25 से भी ज्यादा राज्यों में ‘ढाई आखर प्रेम’ की यात्रा पर निकले हैं। किसानों के आंदोलन ने यह सीख दी है कि गांवों में ही वो ताकत है, जो परिस्थितियों को बदल सकती है, जो बदलाव के तरीके बता सकती है। खेत की मिट्टी में ही परिवर्तन के नये अंकुर फूट सकते हैं। वही मिट्टी बलिदानी है। वहीं से मिलेगा लड़ने का साहस। उसे ही माथे पर लगाना होगा। ग्रामीणों का दिमाग भले छोटा हो लेकिन दिल बहुत बड़ा है और आज दिमाग से ज्यादा दिल की जरूरत है।
यह एक जागरण अभियान है। कोई भी बड़ा अभियान आम जन के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकता। सहयोग साथ चलने का और साथ देने का भी। तन, मन और धन का। बहनों, मांओं ने गमछे बनाये हैं। प्रेम से बनाये हैं गमछे। कबीरी गमछे। यह गमछा मेहनत में पसीना पोंछने के काम आता है, खेत में काम करते किसान के लिए खाना ले जाने के काम आता है और तीखी धूप से सिर को बचाने के काम आता है। यह गमछा खेत- खलिहान का, श्रम का, किसानी का और बदलाव का भी प्रतीक है। स्त्रियों ने अपनी मेहनत और कला से निर्मित गमछे पदयात्रियों को दिये हैं। कोई भी उनसे यह गमछा अपनी सामर्थ्य भर धन का योगदान कर हासिल कर सकता है। यह धन ढाई आखर यात्रा की व्यवस्था में काम आयेगा।
नरेश सक्सेना जी ने यह गमछा हासिल किया। हमने भी लिया। यह प्रेम का, सद्भाव का, बदलाव का गमछा है। यह कबीर का, गांधी का गमछा है। यह भगत सिंह का गमछा है। यह आप का गमछा भी हो सकता है। इप्टा से संपर्क कर सकते हैं।
सुनो बुला रहे हैं गांव, अब निकल चलो
सुनो वो प्रेम की पुकार, अब निकल चलो।