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‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक जत्थे का आगाज

मीडिया में प्रतिदिन प्रसारित होने वाली नफरत और हिंसा की वारदातों और खबरों को सुनकर-देखकर देश के शांतिप्रिय संवेदनशील नागरिक बेचैनी महसूस कर रहे हैं। देश की फिज़ा में यह ज़हर क्यों फैलता चला जा रहा है? देश के गाँव-शहरों-कस्बों की गलियों-चौबारों में बसने वाले लोग क्या इस अमानवीय अनहोनी के प्रति बेचैन नहीं हैं? क्या बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा की बुरी हालत, पर्यावरण-असंतुलन के कारण बार-बार अलग-अलग राज्यों में बरपा होने वाली प्राकृतिक कयामत और फैलने वाली बीमारियों के अलावा कुछ लोगों द्वारा फैलाई जा रही परस्पर नफरत, विद्वेष और गालीगलौज भरी भाषा की खबरों से देश भर के संस्कृतिकर्मी आहत हैं इसीलिए कबीर जैसे सभी संतों द्वारा दिया गया ‘ढाई आखर प्रेम’ का संदेश लेकर 28 सितंबर 2023 से लगभग चार महीने की पदयात्रा पर देश भर के संस्कृतिकर्मी निकल गए हैं। नफरत की जगह प्रेम, इकतरफा बात की जगह परस्पर खुलकर संवाद करने, परस्पर एकदूसरे को जानने-समझने के लिए ‘ढाई आखर प्रेम’ अभियान शुरु हो गया है।

‘ढाई आखर प्रेम’ अभियान की शुरुआत राजधानी दिल्ली में 26 और 27 सितंबर 2023 को क्रमशः प्रेस कॉन्फ्रेन्स और कर्टेन रेज़र के रूप में कार्यक्रम में सम्पन्न हुई।

प्रेस कांफ्रेंस में विनीत तिवारी, राकेश, प्रसन्ना, प्रसाद बिडप्पा, वेदा राकेश, संजीव

26 सितम्बर मंगलवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में रंग निर्देशक व इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव संजीव, प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी, कोरियोग्राफर और डिज़ाइनर प्रसाद बिडप्पा तथा इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश एवं रंग निर्देशक वेदा ने प्रेस को ‘ढाई आखर प्रेम’ के सांस्कृतिक जत्थे के उद्देश्यों से परिचित कराया। प्रसन्ना ने पदयात्रा की जानकारी देते हुए कहा कि, हम संस्कृति के राजनीतिकरण के खिलाफ हैं। विभाजनकारी सांस्कृतिक राजनीति और उपभोग की मशीनीकृत अर्थव्यवस्था मिलकर मानव-गरिमा को कमज़ोर कर रही है। कबीर और अन्य संत कवि भारतीय सभ्यता के सच्चे प्रतिनिधि हैं। उनके विचारों से प्रेरित यह जत्था कई सांस्कृतिक संगठनों के साथ भारत के लोगों और संस्कृति से रूबरू होने जा रहा है।

जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव संजीव ने कहा कि, प्रगतिशील सांस्कृतिक संगठन हमेशा साम्प्रदायिक नफरत और वैज्ञानिक दृष्टि विरोधी स्वभाव और बढ़ती असमानता के वर्तमान माहौल के प्रति जागरूक रहे हैं। जब इप्टा प्रेम का संदेश फैलाने के लिए सांस्कृतिक जत्था लेकर चलने के विचार के साथ आई तो हम सब स्वाभाविक रूप से जुड़ गए। कलाकार नफरत फैलाने वालों से नफरत करते हैं। गलत को गलत कहना ही सही है। हम कबीर की तार्किकता के साथ उनके ढाई आखर प्रेम के मार्ग पर चलते हैं।
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा, कपड़े के टुकड़े का ताना-बाना हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक महान प्रतीक रहा है। इस प्रतीक के साथ हम मानव-श्रम की गरिमा, एकदूसरे के दैनिक संघर्षों के साथ एकजुटता, प्रेम की भावना, विचारों और संस्कृति की विविधता को सीखने और सराहने की क्षमता और तर्क की शक्ति को पुनः प्राप्त करना चाहते हैं।

रंग निर्देशक वेदा ने कहा कि, हमने अनेक यात्राएँ की हैं। हजारों लोगों से मिले हैं, वे नफरत करने वाले नहीं हैं और न ही नफरत की राजनीति को पसंद करते हैं। गाँवों के लोग हमें विश्वास दिलाते हैं कि यह यात्रा लोगों की आवाज़, प्यार और फिक्र की आवाज़ बन सकेगी।

इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने बताया कि भगतसिंह के जन्मदिवस पर 28 सितम्बर से यह पैदल यात्रा अलवर से शुरु होगी, जो 2 अक्टूबर 2023 तक राजस्थान के अनेक गाँवों के लोगों से संवाद करेगी। 2 अक्टूबर को देश भर में वायकॉम मंदिर सत्याग्रह आंदोलन के शताब्दी वर्ष पर जाति-व्यवस्था के उन्मूलन के लिए सेमिनार आयोजित किये जाएंगे तथा 3 अक्टूबर से 6 अक्टूबर तक केरल के अर्नाकुलम में छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाँपा में, झारखंड के गढ़वा में, उत्तर प्रदेश के काकोरी में तथा मध्य प्रदेश के चंदेरी में एक-एक दिन की पदयात्रा की जाएगी। इसी कड़ी में 07 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक बिहार में यात्रा अनेक ऐतिहासिक महत्व के स्थलों पर जाकर आम जन से संवाद करेगी। इस तरह सांस्कृतिक जत्था 22 प्रदेशों की यात्रा करते हुए ‘ढाई आखर प्रेम’ का संदेश लेकर लोगों से गंगा-जमुनी संस्कृति के विभिन्न आयामों से परिचित होगा और 30 जनवरी 2024 को दिल्ली में अपनी पदयात्रा समाप्त करेगा।

पद्मश्री सैयदा हमीद

27 सितम्बर 2023 को ‘ढाई आखर प्रेम’ की चार माहा पदयात्रा के कर्टेन रेज़र के रूप में जवाहर भवन नई दिल्ली में हथकरघा के श्रम से निकली कला और संस्कृतिकर्मियों की प्रस्तुतियाँ सम्पन्न हुईं। कार्यक्रम का उद्घाटन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, योजना आयोग की पूर्व सदस्य, जेंडर अधिकार कार्यकर्ता पद्मश्री सैयदा हमीद ने किया। उन्होंने फैज़ अहमद फैज़ की पंक्तियों को ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा की आह्वान-पंक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया, ‘बोल के लब आज़ाद हैं तेरे, बोल के ज़बाँ अब तक तेरी है।’

‘हिंदुस्तान’ में छपी खबर के अनुसार, खादी, रंगों और संतों के शब्दों में डूबी सांस्कृतिक संध्या ने लोगों को प्रेम और एकजुटता का संदेश दिया। इस मौके पर इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने एक आर्थिक मॉडल की कार्य-योजना का सुझाव दिया जो सत्तर-तीस के सिद्धांत पर काम करता है। सत्तर प्रतिशत मानव हाथ और तीस प्रतिशत मशीनें। यह अनुपात कायम करने पर ही हमारे पास मशीनें काम करने वाले हाथों के दृढ़ नियंत्रण में रहेंगी। हमारे देश में हाथ से श्रम करने वालों की संख्या आज भी बहुत ज़्यादा है, परंतु उन्हें मशीनी काम से रिप्लेस किया जा रहा है और उनके जीने-खाने के तमाम संसाधन उनसे छीन लिये जा रहे हैं। बदले में उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। वे कचरे की तरह समाज-व्यवस्था में निष्कासित किये जा रहे हैं। इसीलिए मानव-श्रम के अवमूल्यन पर विचार करना बहुत ज़रूरी है।

कार्यक्रम में खादी के बने आकर्षक वस्त्रों को प्रदर्शित करता हुआ एक गमछा शो संस्कृतिकर्मियों द्वारा आयोजित किया गया था, जिसे प्रसिद्ध कोरियोग्राफर और डिज़ाइनर प्रसाद बिडप्पा ने डिज़ाइन किया था, जिसे अभिनेत्री मीता वशिष्ट द्वारा शो स्टॉपर के रूप में कश्मीरी कवयित्री ललद्यद की कविता-प्रस्तुति से समाप्त किया गया।

देखें: कर्टन रेज़र फोटो गैलरी

गमछा शो ने सिद्ध किया कि, खादी एक फैशन स्टेटमेंट के रूप में भी सुंदर हो सकती है। प्रसाद बिडप्पा ने कहा, खादी विरासत का कपड़ा है। स्वतंत्रता संग्राम का कपड़ा है। यह ढाई आखर प्रेम की भावना व्यक्त करता है। इस गमछा शो में पाखी, अनुला, बाबुल अमृत रंजन, इंतज़ार अहमद, पम्मी अंशु केरकेट्टा, जया, साक्षी शर्मा, कृतिका, निरुपमा वडेरा, ख़ुशी खातून, सिप्टेन हैदर, वर्षा आनंद, अर्पिता श्रीवास्तव, तहरीन, शोभा, एलिना तथा आर्यन सम्मिलित थे।

आज का आयोजन नब्बे साल के युवा से लेकर दस साल तक की पीढ़ियों की रचनात्मक अभिव्यक्ति और सद्भाव की प्रतिबद्धता से ओतप्रोत था। विभिन्न शैलियों के कलाकार, हथकरघा, गीत-लेखक, गायक, संगीतकार, कोरियोग्राफर, प्रदर्शन कला, फैशन, कवियों ने अपने प्यार और काम की गरिमा का संदेश फैलाने के लिए अपने उपकरण और कौशल समर्पित किए। सभा में कई भाषाओं और संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग एक साथ आए, जबकि मंच पर कश्मीर, मणिपुर, पंजाब, पश्चिम बंगाल की समृद्ध लोक परंपराओं और कबीर, रैदास, फरीद से लेकर लाल देई तक के संत कवियों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बारे में वास्तव में आकर्षक बात यह थी कि युवा कलाकारों के लगभग दस समूह, जो भगतसिंह और अंबेडकर के आदर्शों से प्रेरित थे, न केवल संत कवियों के दोहे गा रहे थे, बल्कि उनकी भावना को आगे बढ़ाते हुए मूल स्वरचित गीत भी प्रस्तुत कर रहे थे। मंच पर दर्जनों आधुनिक कबीर थे।

सांस्कृतिक संध्या में इंदर सलीम (रोशे रोशे कश्मीरी गीत), सरफराज़ (दस्तूर), जन नाट्य मंच (सांझी रे चदरिया हो), जतन नाट्य केन्द्र (जात-पाँत का रोग), मंताश बैंड(कबीर के पद – लागो मेरो यार फकीरी में, चदरिया झीनी रे झीनी, होशियार रहना नगर में चोर आवेगा), प्रतिध्वनि (हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे) तथा जेएनयू इप्टा (बिदेसिया तथा ढाई आखर प्रेम साधो) ने गीत प्रस्तुत किये।

‘ढाई आखर प्रेम’ अभियान की शुरुआत में ही ‘मेरे घर आके देखो’ तथा कारवाँ-ए-मोहब्बत जैसे अभियानों ने कई लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया। ‘तुला’ ने जैविक हैंडलूम का एक समृद्ध संग्रह प्रदर्शित किया। गार्गी प्रकाशन ने पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित की। अरूण द्वार्की ने फोटोग्राफी की एक प्रदर्शनी प्रस्तु की, जिसमें दर्शाया गया कि गमछा और उनके उत्पादक हमारे सांस्कृतिक जीवन का कितना अभिन्न अंग हैं। उन्होंने किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए तैयार की गई प्रदर्शनी – गमछा, पर अपनी तस्वीरें छापीं।

मंच के सामने एक पुरुष और एक महिला साथी बैठकर चरखों पर सूत कात रहे थे। हाथ से सूत कातने की लय मंच पर प्रस्तुत गीत-संगीत के साथ घुल-मिलकर साकार हो रही थी।

उपस्थित अतिथियों में ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा को अपना समर्थन देते हुए साहित्यकार एवं प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा, ‘नफरत कुछ आसानी से फैलती है, मगर मोहब्बत या प्रेम के लिए एक अभ्यास चाहिए। परिश्रम चाहिए। इस कठिन काम को संस्कृतिकर्मियों ने चुना है, मुझे उम्मीद है कि लोग इससे जुडेंगे। एकदूसरे से बातचीत करेंगे, एकदूसरे को समझने की कोशिश करेंगे और एक ऐसी ज़ुबान मिलेगी, जिसमें हम एक-दूसरे पर चीखे-चिल्लाएंगे नहीं, बल्कि सामान्य बातचीत करेंगे।’

अनहद की संयोजक शबनम हाशमी ने शुभकामना प्रकट करते हुए कहा कि, ‘इप्टा द्वारा यह जो यात्रा निकाली जा रही है पूरे देश में, वह इसलिए ज़रूरी है कि जिस तरह का माहौल बन गया है, उसमें हम इसके माध्यम से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच सकते हैं। जब सारे रास्ते बंद हो जाएँ, सारा मीडिया प्यार-मोहब्बत, इंसानियत की बात करना बंद कर दे, तो यात्राओं के माध्यम से सीधे लोगों से जुड़कर बात करना, उन्हें सुनना बहुत अच्छा है।’

प्र्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव डॉ. सुखदेव सिंह सिरसा ने इस अभियान को बहुत ज़रूरी बताते हुए कहा कि, ‘हमारे देश की खूबसूरती ही यही है कि कितने ही धर्मों के लोग हैं, कितनी ही भाषाएँ जानने वाले लोग हैं, इसके बावजूद हम एक हैं और सदियों से एक साथ प्यार और सौहार्द्र के साथ रहते आए हैं। हिंसा की जगह मोहब्बत देना हमारी परम्परा रही है।’

इस यात्रा में संगवारी, अनहद, कारवाँ-ए-मोहब्बत, दलित लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक संघ, जन नाट्य मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा आदि संगठन शामिल हैं। अतिथियों में साहित्यकार विभूति नारायण राय, रंग निर्देशक एम. के रैना, सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी, प्रलेस तथा पंजाबी लेखक संघ के अध्यक्ष सुखदेव सिंह सिरसा, प्रलेस के सचिव विनीत तिवारी, जलेस के महासचिव संजीव, रंगकर्मी इंदर सलीम, स्टेज लाइट डिज़ाइनर हिमांशु बी जोशी, प्रोफेसर अपूर्वानंद, अनिल हेगडे, सांसद राज्य सभा, सीपीआई से भालचंद्र कानगो, मलयश्री हाशमी तथा सुधन्वा देशपांडे जन नाट्य मंच से, जन वैज्ञानिक अमिताभ पाण्डे, संगीत निर्देशक काजल घोष, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, राजेश तिवारी रंग निर्देशक, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश, रंग निर्देशक वेदा, विजय प्रताप गांधीवादी चिंतक, हीरालाल राजस्थानी, दलित लेखक संघ, दीपक कबीर सामाजिक कार्यकर्ता, लोकेश जैन रंग शिक्षक, इप्टा झारखंड से शैलेन्द्र कुमार, उपेन्द्र कुमार तथा अर्पिता श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़ इप्टा से साक्षी शर्मा, दिल्ली इप्टा से मनीष, विनोद, वर्षा, रजनीश, संतोष, अवध और प्रियंका के अलावा बड़ी संख्या में संस्कृतिकर्मी और दर्शक सम्मिलित हुए।

• रिपोर्ट: ऊषा आठले •

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