पटना • 07 अक्टूबर 2023 •
“ढाई आखर प्रेम: राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रेम, बंधुत्व, समानता न्याय और मानवता की संदेश की यात्रा है। इस यात्रा में हम बापू के चम्पारण सत्याग्रह के पदचिह्न पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि देश को चम्पारण और गांधी दोनो की तलाश है। डर का माहौल बना कर अपनी बात मानने की जबरदस्ती के प्रेम और बंधुत्व के अभियान में हम उसी गांधी को तलाश रहे हैं जिसने अंग्रेज़ो के नील उगाने के तीन कठिया परंपरा को तोड़ दिया। उस साम्राज्य को झुका दिया जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था।
बिहार में ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था की शुरुआत पर गांधी मैदान में दर्शकों को संबोधित करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि इस यात्रा से हम बापू, कबीर, रहीम, रसखान के पद चिह्न और चीन्ह की यात्रा कर रहे हैं।
ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की शुरुआत बांकीपुर जंक्शन (पटना जंक्शन) से हुई। अप्रैल 1911 में बापू इसी स्थान पर पहली बार बिहार आए और मुजफ्फरपुर होते हुए चम्पारण पहुंचे। चम्पारण में ही उन्होंने आज़ादी की राह खोल दी।
पटना जंक्शन से शुरू हुई पदयात्रा पटना यूथ हॉस्टल होते हुए भगत सिंह और महात्मा गांधी की प्रतिमाओं पर करती हुई, भिखारी ठाकुर रंगभूमि पहुंची और भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। पदयात्रा में शामिल पदयात्री तू खुद को बदल, तो ज़माना बदलेगा गाते हुए चल रहे थे। ढाई आखर प्रेम का नारा लगा रहे थे।
सांस्कृतिक संवाद में प्रख्यात चिकित्सक डॉ सत्यजीत, प्रगीतशील लेखक संघ के सुनील सिंह, लोक परिषद् के रूपेश और बिहार IPTA के महासचिव फीरोज अशरफ खां ने भी संबोधित किया। छत्तीसगढ़ से आए नाचा लोक नाट्य शैली के कलाकारों ने गम्मत नाटक की प्रस्तुति की। युवा पदयात्रियों ने कबीर के पदों पर आधारित भावनृत्य प्रस्तुत किया।
08 अक्टूबर को जत्था मुजफ्फरपुर के लिए प्रस्थान करेगा।
जत्था की शुरुआत के कुछ पल: