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बापू धाम, चंद्रहिया पहुँचा ‘ढाई आखर प्रेम’ का जत्था

•बिहार पड़ाव: चौथा दिन•

09 अक्टूबर की शाम को ग्राम झखरा बलुआ में ग्रामीणों के साथ संवाद किया गया और जत्थे के साथियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गई। इस संवाद और सांस्कृतिक कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लगभग हर उम्र के ग्रामीण शामिल रहे।

रात्रि विश्राम के बाद 10 अक्टूबर की सुबह जत्थे के साथियों ने झखरा बलुआ में प्रभात फेरी निकाली और “गंगा की कसम यमुना की कसम” जैसे गीत गाते हुए लगभग 10ः15 पर झखरा चौक पर रुक कर जत्थे ने लोगों से संपर्क किया। उसके बाद राष्ट्रीय उच्च मध्य विद्यालय झखरा सर्व शिक्षा अभियान के भवन पर बच्चों से मुलाकात की गई। वहां 500 बच्चे पढ़ते हैं। सतेंद्र कुमार शिक्षक हैं और चतुर्भुज बैठा प्रधानाध्यापक, उनसे बात हुई। उन्होंने बताया, आज भी काफी ग़रीबी है। उनके पास जमीन नहीं है, बाथरूम वगैरह भी नहीं है। अभी भी लोगों को काफी कष्ट झेलना पड़ रहा है।

झखरा बलुआ में जोगी मांझी को सम्मानित करते हुए

वहां से पदयात्री सूर्यपुर पहुंचे। फर्नीचर की दुकान वाले मनोज कुमार से बातचीत हुई। यह भी एक टोला है, काफी गरीब है। यहां के लोगों से बातचीत की। उसके बाद सूर्यपुर अंबेडकर टोला जाकर लोगों से मिले। 11ः00 बजे दिन में राजकीय मध्य विद्यालय सूर्यपुर पिपरा कोठी प्रखंड पहुंचकर वहां के शिक्षकों और विद्यार्थियों से बातचीत की गई। जत्था के साथ चलने वाले साथियों ने उन्हें कुछ गीत सुनाए। शिक्षक, प्रधानाध्यापक व विद्यार्थियों को जत्था का उद्देश्य बताया गया। प्रमोद सिंह इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं। विद्यालय में 550 विद्यार्थी पढ़ते हैं। शिक्षकों की संख्या 13 है। विनोद राम स्टीफन शिक्षक हैं। उन्हें बातचीत के दौरान जत्थे का मकसद बताया गया कि, हमें समता और समानता मूलक समाज बनाना है। हम बाबासाहेब आंबेडकर, जोतिबा फुले, गांधीजी, भगत सिंह आदि महापुरुषों के विचारों को लेकर गांव-गांव जा रहे हैं। यह हम सब के लिए बहुत जरूरी है। बाबा साहब ने समाज सुधार के लिए जो शिक्षा की अनिवार्यता बताई है, उसे आगे बढ़ाना है। विषमता मूलक संस्कृति को हटाना है। समता मूलक संस्कृति को लाना है। गांधी जी, भगत सिंह ने कहा था कि सबको साथ लेकर ही एक बेहतर समाज बनेगा। विनोद राम स्टीफन ने बताया कि, यह इलाका दलित अति पिछड़ों का रहा है। मैं मुशहरों के टोले में पढ़ता था, तब शिक्षा नाम मात्र की भी नहीं थी। बोलना नहीं आता था। वहां सब लोगों ने मिलकर शिक्षा को बढ़ाने का प्रयास किया। आज हम कुछ आगे बढ़े हैं।

यहाँ से जत्थे ने आगे की ओर प्रस्थान किया। सूर्यपुर में ही कालेश्वर चौरसिया जी से मिलने पर उन्होंने कहा कि आप लोग बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। आज देश को ऐसे संदेश की जरूरत है। आगे चलकर जत्था जीवधरा पहुंचा। इस रास्ते में गांव थोड़े हैं। एक ही गांव तीन-चार किलोमीटर तक फैला हुआ है। दोपहर को जीवधारा में मुख्य मार्ग के किनारे चौराहे पर जत्था के साथियों ने कार्यक्रम पेश किया गया। ‘ढाई अक्षर प्रेम के हम जानते हैं बहुलता में एकता पहचानते हैं’ – इस गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। हिमांशु ने गीतों के बाद लोगों को संबोधित किया कि हम प्रेम की बात करने आए हैं। अपने यात्रा के उद्देश्यों को आप तक पहुंचाना चाहते हैं।

रितेश ने लोगों को बताया कि हमारा यह ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा अभियान 28 सितंबर को राजस्थान के अलवर से शुरू हुआ। यह दिन भगत सिंह का जन्मदिन है। इसका समापन 30 जनवरी 2024 को गांधी के शहादत दिवस पर दिल्ली में संपन्न होगा। इस बीच हम देश के 22 राज्यों से गुजरते हुए प्रेम, समानता, भाईचारे के सूत्र को और मजबूत करने आपके पास आए हैं। आपसे सीख कर, आपसे बातें कर के हम इस जत्था के उद्देश्य को पूरा कर पाएंगे। फिर साथियों ने गीत की अगली प्रस्तुति की – ‘गंगा की कसम यमुना की कसम, यह ताना-बाना बदलेगा, तू खुद को बदल, तब तो यह जमाना बदलेगा’।

इस यात्रा में विभिन्न राज्यों के जिलों के तथा विभिन्न संगठनों के साथी भी शरीक हुए हैं। पंकज श्रीवास्तव झारखंड प्रलेस उपाध्यक्ष ने अपनी बातें रखते हुए गांधी जी के चंपारण आगमन की कहानी को व्यवस्थित तरीके से उपस्थित लोगों के सामने रखा। उन्होंने बताया कि कैसे किसानों के साथ मिलकर गांधी जी ने निलहों के खिलाफ एक जबरदस्त आंदोलन खड़ा किया और चंपारण का आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक मील का पत्थर बना। इस आंदोलन ने किसानों और मजदूर की ताकत को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट किया, जो देश के अन्य आंदोलनों की नज़ीर बनी। हम लोग जहां भी इस जत्था के साथ जा रहे हैं, वहां लोगों का पूरा समर्थन मिल रहा है। लोगों ने जत्थे का स्वागत किया। साथ ही साथ इस जत्थे को मजबूती प्रदान की। यहाँ के कार्यक्रम में अंतिम गीत रितेश, हिमांशु और जत्थे में चल रहे अन्य साथियों ने गाया – ‘तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर’। अंत में रितेश ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उसके बाद जीवधारा मलाई टोला के मुखिया पासवान जी के यहां जत्थे के लोगों ने भोजन किया।

सांस्कृतिक जत्था वहां से चंद्रहीय के लिए चल पड़ा। वहां जाकर जत्थे के साथियों ने गांधी स्मारक को देखा और उपस्थित लोगों से बातचीत की।

शाम में जत्था सलेमपुर पहुंचा, जहां ग्रामीणों से मिलकर जत्थे के उद्देश्य के बारे में बताया। सलेमपुर के मुकेश जी ने कहा कि ऐसा जत्था देश की एकता और अखंडता तथा प्रेम और विश्वास के लिए बहुत जरूरी है। हम गांववासी आपके इस यात्रा का समर्थन ही नहीं, बल्कि आपके काम की सराहना भी करते हैं। वहां से जत्था रात्रि विश्राम के लिए शंकर सरैया पहुंचा।

रात साढ़े आठ बजे जत्था शंकर सरैया के दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल पहुँचा। इसी स्कूल में जत्थे के भोजन और ठहरने की व्यवस्था थी। काफी बड़ी संख्या में विद्यार्थी और ग्रामीण पहुँचे हुए थे। सांस्कृतिक जत्थे द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम की शुरुआत लक्ष्मीप्रसाद यादव के गीत से हुई – ‘बढ़े चलो, जवान तुम बढ़े चलो’। उसके बाद उन्होंने ‘कैसे जइबइगे सजनिया पहाड़ तोड़े ला’ प्रस्तुत किया। वहाँ उपस्थित दर्शकों ने इन गीतों को खूब पसंद किया। इसके बाद राजेन्द्र प्रसाद ने गाया, ‘लिहले देसवा के अजदिया, खदिया पहिन के जी’। उनकी दूसरी प्रस्तुति थी, ‘हमरा हिरा हेरा गइल कचरे में’। इन गीतों का भी श्रोताओं ने भरपूर रसास्वादन किया।

रंजीत गिरी और स्कूल प्रबंधक रामपुकार जी ने जत्थे के सभी साथियों का बहुत ही प्रेम से स्वागत किया। रंजीत गिरी समाजसेवी हैं। उनकी उपस्थिति और उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। रामपुकार जी ने सांस्कृतिक पदयात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज जिस तरह से दुनिया में हिंसा बढ़ती जा रही है, वैसे ही प्रेम का यह प्रचार-प्रसार और गाँव-गाँव जाकर लोगों को जागृत करने का जज़्बा और उनसे सीखने की ललक बहुत महत्वपूर्ण है। आज समाज में भाईचारे के लिए ऐसे कामों की सख्त ज़रूरत है।

हिमांशु कुमार एवं साथियों ने फिर एक गीत की प्रस्तुति की, ‘गंगा की कसम, यमुना की कसम, ये ताना-बाना बदलेगा। तू खुद को बदल, तब तो ये ज़माना बदलेगा।’ अगली प्रस्तुति छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली और साथियों द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘ढाई आखर प्रेम’ था। निसार अली अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ से आकर बिहार के इस जत्थे के साथ लगातार भ्रमण कर रहे हैं। उनके नाचा-गम्मत शैली के नाटक को बच्चों ने खूब पसंद किया। इस नाटक में कबीर, रहीम, अदम गोंडवी की रचनाओं को भी पिरोया गया था। साथ ही भगत सिंह, महात्मा गांधी, बाबासाहेब आंबेडकर के वक्तव्यों के उद्धरण देकर उसे बहुत शिक्षाप्रद बनाया गया था।

कार्यक्रम के अंत में हिमांशु और साथियों ने ‘तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’ प्रस्तुत किया। रितेश ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

रिपोर्ट – सत्येंद्र कुमार

 

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