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हमने कबीर के प्यार को चुना है : प्रसन्ना

‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा में इप्टा सिर्फ पहल कर रही है, मगर नफरत के खिलाफ प्यार की अलख जगाने के लिए कृतसंकल्प सभी संगठन और व्यक्ति मिलकर ‘जाथा’ में चलेंगे। इप्टा एक ‘बफर ज़ोन’ की भूमिका निभा रही है। राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख्तर ने उपस्थित साथियों के बीच यह बात आरम्भ में ही स्पष्ट की।

31 अगस्त 2023 को वरसोवा अंधेरी, मुंबई स्थित एम्ब्रोज़िया थियेटर ग्रुप के स्टुडियो में इप्टा के मुंबई, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल और छत्तीसगढ़ के लगभग 60 साथियों की बैठक सम्पन्न हुई। बातचीत की शुरुआत करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने कहा कि, हमने अपनेआप को सिकोड़ लिया है। हम लोगों के पास नहीं जा रहे हैं, युवाओं से, महिलाओं से कट गए हैं। लोग क्या सोचते हैं, इसे जानना होगा, उनसे संवाद बनाना होगा। आज परस्पर समन्वय को पीछे धकेलकर नफरत की राजनीति हावी हो गई है। मगर लोग इससे थक गए हैं। अभी सिर्फ कैमरे के सामने की राजनीति चल रही है, जो दस प्रतिशत लोगों तक भी नहीं पहुँचती।

कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने ‘जाथा’ के दौरान लोगों से किसी प्रकार की राजनीतिक बात करने की बजाय उनकी लोककथाएँ, लोकगीत माँगने के लिए कहा। साथ ही पूर्व की यात्राओं की संक्षिप्त जानकारी दी।

उपस्थित साथियों ने अनेक सवाल पूछे, जिनमें प्रमख थे, जाथा से हम अन्य लोगों को कैसे प्रेरणा दे सकते हैं? धर्म के मामले में कट्टर लोगों से कैसे बात करें?

सवालों का जवाब देते हुए प्रसन्ना ने ‘जाथा’ की अवधारणा को और स्पष्ट किया। ‘जाथा’ से पूर्व और ‘जाथा’ के दौरान हाथ के श्रम का प्रतीक ‘गमछा’ बेचकर और भेंटकर ‘देश बचाओ, पर्यावरण बचाओ’ का संदेश देकर हमें एक्टिव होना है। हमें किसी से कोई राजनीतिक बात नहीं करनी है, हमें अपने ‘एक्शन’ से लोगों को यकीन दिलाना है। एक्शन महत्वपूर्ण है इसीलिए पदयात्रा में शामिल पदयात्री का व्यक्तित्व पारदर्शी हो, उसमें प्राइवेट जैसा कुछ न रहे। हम विचारधारा पर नहीं बोलेंगे क्योंकि वे बोल रहे हैं। हमें सेंसिबली बोलना होगा। हमने कबीर के प्यार को चुना है। हमारे पास और कोई चारा नहीं है लोगों को समझने का। लोगों को इमोशनली जोड़ना होगा। लोगों से ‘नेगोसिएशन’ ज़रूरी है। इन दिनों स्कूली बच्चों के साथ होने वाली धर्मकेन्द्रित हिंसा और अन्याय पर हम प्रतिप्रश्न कर सकते हैं कि हिंदू इसतरह की मूर्खतापूर्ण हरकत क्यों और कैसे कर रहे हैं?

‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा विभिन्न राज्यों में सिर्फ टाइम वाइज़ हो रही है। अलग-अलग राज्य अपनी संस्कृति, अपनी भाषा-बोली में जन-संस्कृति को सेलिब्रेट करेंगे। जो राज्य से बाहर के लोग भी पदयात्रा में शामिल होंगे, वे उसी राज्य के कल्चर में रंगेंगे। इसीलिए इसे हम ‘कल्चरली ऑटोनॉमस जाथा’ कह रहे हैं।

‘जाथा’ में ‘गमछा बेचने’ के महत्व पर उठे अनेक सवालों का जवाब देते हुए प्रसन्ना ने समझाया कि यह हाथ से बुना हुआ ‘कबीर के गमछे’ का प्रतीक है। इससे श्रम और सत्य की स्थापना करनी होगी। हमारे यहाँ श्रम करने वाले अछूत हो गए इसीलिए ‘गमछा इज़ अ सिम्बल ऑफ यूनिटी’। जिनके पास ज़्यादा पैसा है, उन्हें गमछा पहनाकर उनसे ज़्यादा पैसा लेकर, जो गमछा नहीं खरीद सकते, उन्हें देंगे।

अंत में राकेश ने सभी साथियों से आग्रह किया कि, पदयात्रा में सहयोग करने की अपील करने वाले वीडियो सभी साथी बनाकर भेजें और अपने-अपने क्षेत्र के अन्य लोगों से भी बनवाकर भिजवाएँ। दिल्ली में युवा साथियों की सेन्ट्रल कोऑर्डिनेशन टीम काम कर रही है। उसने ‘ढाई आखर प्रेम’ नाम से वेबसाइट, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि सोशल साइट्स बना ली हैं। उसके माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाएगा।

 

मुंबई इप्टा की अध्यक्ष सुलभा आर्य, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अंजन श्रीवास्तव, रमेश तलवार, कुलदीप सिंह तथा शाहिद कबीर को प्रसन्ना, राकेश एवं तनवीर अख्तर द्वारा गमछा ओढ़ाया गया। साथ ही प्रसन्ना ने एक गमछे की झोली फैलाकर उपस्थित लोगों से सहयोग राशि इकट्ठा की।

स्टुडियो उपलब्ध कराने के लिए साथी मनोज वर्मा के प्रति आभार व्यक्त किया गया। बैठक का संचालन मुंबई इप्टा के विकास रावत ने किया।

रिपोर्ट: ऊषा आठले 

 

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