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राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था का कर्नाटक चरण राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्तर के सभी वर्गों की उत्साही भागीदारी के साथ सम्पन्न

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‘ढाई आखर प्रेम’ के नारे के तहत राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे का कर्नाटक राज्य का चरण 02 दिसम्बर से 07 दिसम्बर 2023 तक सम्पन्न हुआ। इस जत्थे ने दक्षिण कन्नड़ जिले के मुख्यालय मंगलुरु से केरल राज्य के कासरगोड जिले की सीमा पार कर मंजेश्वर तक यात्रा की। इसकी योजना बनाते वक्त जो सोचा गया था, उससे कहीं बेहतर सफलता जत्थे ने प्राप्त की। इसमें राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक आदि सभी स्तरों और वर्गों के लोगों ने उत्साह से भागीदारी की और ‘ढाई आखर प्रेम’ के आदर्श वाक्य का अक्षरशः पालन करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से यात्रा पूरी की।

वर्तमान दक्षिण कन्नड़ जिला दक्षिण कैनरा जिले से बना है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास रेसिडेंसी के अधीन था। यह पयस्विनी नदी से, जो अब केरल राज्य के कासरगोड में है, कुंडापुर तक फैला हुआ है। हालाँकि अब यह उडुपी जिले का एक हिस्सा है, जो कर्नाटक राज्य में दक्षिण कन्नड़ जिले के उत्तर में स्थित है। दक्षिण कैनरा क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र हमेशा कन्नड़, तुलु, मलयालम और कोंकणी भाषाओं का संगम और इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों की बहुत समृद्ध परम्पराओं, रीति-रिवाज़ों और व्यंजनों के लिए जाने जाते हैं। पूर्ववर्ती दक्षिण कैनरा, जो अब दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिला है, हमेशा ‘बुद्धिमान लोगों का जिला’ होने का गौरव रखता रहा है। स्वतंत्रतापूर्व काल से लेकर आज तक शिक्षा, बैंकिंग, सामाजिक-आर्थिक विकास और औद्योगीकरण में यह क्षेत्र आगे रहा है। इसमें अनेक संस्कृतियों, भाषाओं और समुदायों का समन्वित और सामंजस्यपूर्ण जीवन मिलता है। लेकिन दुख की बात है कि पिछले दो दशकों से इन जिलों में साम्प्रदायिक राजनीति के उदय ने जिलों की छवि खराब कर दी है। ‘नैतिक पुलिसिंग’ की आड़ में युवाओं पर लगातार हमले, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और बढ़ते कट्टरवाद के कारण, सभी प्रकार के पेशेवरों तथा मीडिया के बीच सभी प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों की जगह सीमित कर दी है।

कर्नाटक सांस्कृतिक जत्थे का आदर्श वाक्य ‘ढाई आखर प्रेम’ के साथ स्थानीय देवताओं द्वारा कहे गए शब्द ‘पटाप्पे जोकुलु ओन्जे मेटेल्ड’ को जोड़ा गया, जिसका अनुवाद है – दस माताओं के बच्चो, एक गोद में आ जाओ। यह एक प्रकार से सभी धर्म-सम्प्रदायों और भाषाओं के सभी लोगों को एकजुट करने और उनकी रक्षा करने के लिए देवताओं का आवाहन है। यात्रा के चिह्न के लिए स्वागत समिति द्वारा भगत सिंह, महात्मा गांधी और कबीर के साथ-साथ प्रसिद्ध संत, दार्शनिक कवि श्री नारायण गुरु की तस्वीर भी जोड़ी गई, जिन्होंने महात्मा गांधी और रविंद्रनाथ टैगोर को प्रेरित किया था।

यात्रा की योजना बनाते समय रास्ते पर एकल कार्यक्रम विकसित होते गए। स्वागत समिति के सदस्यों ने उत्साहपूर्वक अपने निकट या सम्बद्ध स्थलों पर कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी ली। स्थानीय और अन्य लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि अंतिम समय तक मेहमानों और वक्ताओं की सूची में बढ़ोतरी होती रही। इन सभी कार्यक्रमों की व्यवस्था और आर्थिक प्रबंधन स्थानीय आयोजकों द्वारा स्वयं किया गया था इसलिए स्वागत समिति को धन जुटाने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ा और न ही किसी नए बैंक खाते को खोलना पड़ा, न ही किसी अन्य बैंक खाते का उपयोग करना पड़ा। संगीत के कार्यक्रमों के लिए अधिकांश कलाकारों ने बिना किसी शुल्क के स्वेच्छा से कार्यक्रम प्रस्तुत करने की पेशकश की। उनके उपकरणों का खर्च कुछ स्थानीय शुभचिंतकों द्वारा वहन किया गया। इसी तरह स्थानीय आयोजकों द्वारा आवास एवं भोजन की व्यवस्था भी की गई थी।

यात्रा के आयोजन के ई-ब्रोशर पर भी किसी संगठन या स्वागत समिति के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था। इस प्रकार यह बिना किसी संगठन या व्यक्ति के नाम पर आयोजित की जाने वाली यात्रा थी, लेकिन अनेक संगठन और व्यक्ति इसमें सहभागी थे। कोई धन-संग्रहण नहीं हुआ, फिर भी कार्यक्रमों पर, आवास व भोजन पर स्थानीय स्तर पर पर्याप्त धन खर्च हुआ। सचमुच, इसमें सहभागी यात्रियों के लिए यह एक बहुत ही यादगार अनुभव बन गया।

प्रथम दिन 02 दिसम्बर 2023, शनिवार

सुबह 09 बजे – श्री कुदमूल रंगा राव मेमोरियल बाबूगुड्डे, मंगलुरु में उद्घाटन :

‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के कर्नाटक चरण का उद्घाटन ब्रह्म समाज कब्रिस्तान में श्री कुदमूल रंगाराव समाधि स्थल मंगलुरु में सुबह 09 बजे किया गया। श्री कुदमूल रंगाराव 1859-1928, जिन्हें महात्मा गांधी ने अछूतों के उत्थान के लिए एक शिक्षक के रूप में स्वीकार किया था, एक दलितोद्धारक के रूप में भी उन्हें जाना जाता था। उन्होंने सबसे पिछड़े बच्चों के लिए कई स्कूल और छात्रावास खोले थे, उन्हें मध्याह्न भोजन उपलब्ध करवाया था। लड़कियों की शिक्षा तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहन देकर सामाजिक सुधारों का बीड़ा भी उठाया था।

उद्घाटन समारोह परिवहन कार्यालय के सेवानिवृत्त अधिकारी, कवि और विद्वान डॉ. मुगलवल्ली केशव धरानी के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। बेहतरीन व्यवस्थाओं के साथ जलपान भी आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की शुरुआत रंगकर्मी कार्यकर्ता प्रभाकर कपिकाड, श्यामसुंदर राव तथा इप्टा कर्नाटक के राज्य सचिव शण्मुखानंद स्वामी के ‘ढाई आखर प्रेम’ के पाठ से हुई। श्री कुदमूल रंगाराव पर राधा टीचर द्वारा लिखित एक भजन कुदमूल रंगाराव मेमोरियल के देवेन्द्र और किरण द्वारा गाया गया। यात्रा का उद्घाटन प्रसिद्ध रंग निर्देशक तथा इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना के नेतृत्व में सभी प्रतिभागियों द्वारा श्री कुदमूल रंगाराव की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया।

प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए डॉ. केशव धरानी ने ‘ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा के उद्घाटन के लिए श्री कुदमूल रंगाराव स्मारक को उपयुक्त बताते हुए कहा कि श्री कुदमूल रंगाराव द्वारा आरम्भ किये गये दलित वर्ग मिशन के घर को हिंदू, मुस्लिम तथा ईसाई तीन व्यक्तियों द्वारा एकजुट होकर बनाया गया था। उन्होंने राव की महानता को उनकी समाधि पर अंकित शब्दों में दोहराते हुए बताया, ‘‘मेरी स्कूल में पढ़ने वाले एक दलित लड़के को पब्लिक सर्विस में जाना चाहिए तथा हमारे गाँव की सड़कों पर अपनी कार में घूमना चाहिए। जब उस कार से उड़ती धूल मेरे माथे को छुएगी, तब मैं अपने जीवन को सार्थक समझूँगा।’’ 1911 में जब श्री कुदमूल रंगाराव ने अपने इस सपने की बात की थी, उस समय देश भर में सिर्फ तीन कारें थीं।

इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने श्री कुदमूल रंगाराव को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा सभी से अनुरोध किया कि अपने प्राकृतिक परिवेश में शांति और सद्भाव बनाए रखें। अल्वा कॉलेज मुदाबिद्री में कन्नड़ के प्रोफेसर डॉ. वेणुगोपाल शेट्टी ने श्री कुदमूल रंगाराव द्वारा दलितों के उन्नयन के लिए महात्मा गांधी और राजगोपालाचारी के साथ अन्य राष्ट्रनेताओं को प्रेरित करने की बात को रेखांकित किया।

सुबह 10 बजे – बेसल मिशन कंपाउंड बालमट्टा :

यात्रा का अगला पड़ाव मुंगलुरु के बालमट्टा में बेसल मिशन कंपाउंड था। यात्रा का स्वागत कर्नाटक थियेलॉजिकल कॉलेज के डॉ. एच एम वाटसन, कर्मचारियों और छात्रों ने किया। डॉ. वाटसन के वक्तव्य के बाद प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगोड़ा पाटिल और डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा के नेतृत्व में सभी यात्रियों ने रेव फर्डिनेड किटेल 1832-1903 की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। प्रसन्ना ने रेव किटेल के अपार योगदान की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह बेसल मिशन के एक पुजारी के रूप में उन्होंने राज्य भर में घूम-घूमकर लोगों की बातचीत को ध्यान से सुनकर कन्नड़ के हज़ारों शब्द संकलित किये और 1894 में 70000 शब्दों का विशाल कन्नड़-अंग्रेज़ी शब्दकोश प्रकाशित किया। इसे आज भी मील का पत्थर माना जाता है। ‘होसाथु’ मासिक के संपादक कन्नड़ विद्वान, लेखक व कार्यकर्ता डॉ. सिद्दानगोड़ा पाटिल ने रेव किटेल द्वारा नागार्जुन लिखित कन्नड व्याकरण की सबसे कठिन पुस्तक ‘शब्द-मणि-दर्पण’ के अंग्रेज़ी अनुवाद के असाधारण काम का उल्लेख किया। इसके बाद कर्नाटक थियासॉफिकल कॉलेज के छात्रों ने रेव किटेल की प्रशंसा में एक गीत गाया। बाद में डॉ. सबिहा भूमिगौडा, प्रसन्ना और डॉ. सिद्दानगोड़ा ने रेव हरमन मोगलिंग (1811-1881) की प्रतिमा पर भी पुष्पांजलि अर्पित की। रेव हरमन मोगलिंग 1843 में कन्नड़ भाषा के पहले समाचार पत्र ‘मंगलुरु समाचार’ के प्रकाशक थे। बेसल मिशन प्रेस, मंगलुरु समाचार, किटेल के शब्दकोश और प्रेस में प्रयुक्त अन्य सामग्रियों के अभिलेखागार का सभी यात्रियों ने अवलोकन किया। कॉलेज की ओर से यात्रियों को जलपान कराया गया।

सुबह 9.30 बजे – महिला सभा, बाबासाहेब आंबेडकर सर्कल, बालमट्टा :

अगला पड़ाव था महिला सभा, बाबासाहेब आंबेडकर सर्कल, बालमट्टा में। महिला सभा मंगलुरु की स्थापना 1911 में देशभक्त कर्नाड सदाशिव राव, उनकी पत्नी शांताबाई, कमलादेवी चट्टोपाध्याय की माँ गिरिजाबाई और अन्य लोगों ने महिलाओं की मुक्ति, खासकर बाल विधवाओं और महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए की थी। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने महिला सभा को 1.2 एकड़ ज़मीन दान में दी थी, जहाँ की इमारतें इन स्वतंत्रता सेनानियों और सुधारकों के महान कार्यों की गवाही देती हैं। हालाँकि इन दिनों मुंगलुरु की स्मार्ट सिटी परियोजना के कारण यह परिसर अपने अस्तित्व के लिए खतरे में है।

श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद महिला सभा में आर्ट कनारा ट्रस्ट और इंटेक (INTACH) के मंगलुरु चैप्टर के संयोजक राजेन्द्र कडिगे, नेमिराज शेट्टी और सुभाषचंद्र बसु के नेतृत्व में एक विरासत संरक्षण कला कार्यशाला (Heritage Conservation Art Workshop) का आयोजन किया गया। इसमें कलाकार विलसन सूजा, संतोष एंड्राडे, सुजीत के वी और विवेक ए आर ने भाग लिया। जैसे ही यात्री कार्यक्रम स्थल पर पहुँचे, महिला सभा की अध्यक्ष विजयलक्ष्मी राय के नेतृत्व में अन्य सदस्यों तथा एसीटी और इंटेक के सदस्यों ने उनका स्वागत किया। विजयलक्ष्मी ने महिला सभा की स्थापना और आदर्शों के बारे में जानकारी प्रदान की। कमलादेवी चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने बताया कि कमलादेवी ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, बल्कि उसे भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा सहित सभी कलाओं के संस्थान के रूप में पुनर्जीवित और मजबूत करने के लिए अथक प्रयास किये। प्रसन्ना ने इन महान लोगों के बलिदान की सराहना करते हुए अनुरोध किया कि उनके द्वारा स्थापित इन संस्थानों को संरक्षित करने के लिए कटिबद्ध रहें।

सुबह 10 बजे – टैगोर पार्क :

मैंगलुरु के माथे पर झिलमिलाने वाला लाइट हाउस मैसूर के सुल्तान हैदर अली (1761-1782) द्वारा बनाया गया था, जिसे उसके बेटे टीपू सुल्तान ने और विकसित किया। अंग्रेज़ों ने इसे एसिटिलिन लैम्प से सुशोभित किया। यहाँ गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर भी आए थे, इसलिए उनके जाने के बाद इसे टैगोर पार्क कहा जाने लगा। यह स्वतंत्रता संग्राम का गवाह रहा है, साथ ही मंगलुरु में विभिन्न संघर्षों और श्रमिकों के जुलूसों का आरम्भ-बिंदु रहा है। इसका संचालन अब महात्मा गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा किया जा रहा है।

यहाँ कार्यक्रम का आयोजन महात्मा गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव श्री इस्माइल एन तथा अन्य पदाधिकारियों के नेतृत्व में दक्षिण कन्नड़ गांधी विचार वेदिके के सहयोग से किया गया। कर्नाड सदाशिव राव पर लिखी किताब ‘कबीरानाडा कुबेरा’ (कुबेर जो कबीर बन गया) के लेखक एवं विचारक अरविंद चोक्कड़ी ने कर्नाड सदाशिव राव को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि के एस राव एक बहुत अमीर वकील थे, जो तत्कालीन आधे मंगलुरु को खरीद सकते थे, परंतु उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपने देश और देशवासियों को अपना सब कुछ अर्पित कर दिया। उनकी मृत्यु अत्यंत गरीबी में हुई। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि यह के एस राव ही थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका से लौटे हुए महात्मा गांधी को भारत की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह जारी रखने के लिए प्रेरित किया था। वे कांग्रेस पार्टी को दक्षिण केनरा में लाने वाले और सत्याग्रह के लिए याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति थे। इस अवसर पर प्रभाकर शर्मा, सेवानिवृत्त अतिरिक्त उपायुक्त, अन्ना विनयचंद्र, पूर्व एमएलसी, प्रो. सबिहा भूमिगौड़ा, प्रो. शिवराम शेट्टी, प्रो. जेवियर डिसूजा, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष सदानदा शेट्टी, पूर्व उपाध्यक्ष इब्राहिम कोडिजाल, प्रसन्ना सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन महात्मा गांधी और के सदाशिव राव को माल्यार्पण कर किया गया।

स्ुबह 11.30 बजे – टेम्पल स्क्वायर, कार स्ट्रीट :

इसके बाद सांस्कृतिक जत्था कार स्ट्रीट के टेम्पल स्क्वायर की ओर रवाना हुआ, जहाँ कोंकणी भाषी सारस्वतों के प्रमुख देवता श्री वेंकटरमण का मंदिर स्थित है। यहाँ प्रति वर्ष पारम्परिक कार उत्सव मनाया जाता है। दक्षिण कन्नड़ जिले में कोंकणीभाषी सारस्वत लोगों का एक बड़ा वर्ग है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र-निर्माण के दौरान बहुत योगदान दिया है। टेम्पल स्क्वायर पर कार्यक्रम की संकल्पना और आयोजन फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ रेशनलिस्ट एसोसिएशन (एफआईआरए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, विचारक और कार्यकर्ता प्रोफेसर नरेन्द्र नायक द्वारा किया गया था।

यात्रा का स्वागत करने के बाद उन्होंने सद्भाव और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। बैनर पर कुदमुल रंगा राव, राधाबाई कुदमुल, कर्नाड सदाशिव राव, उमाबाई कुंडापुरा, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, ए शांताराम पै जैसे सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और सुधारकों की तस्वीरें अंकित थीं। इन सभी ने सबसे पिछड़े समुदायों और महिलाओं की मुक्ति के लिए अथक प्रयास किया था। ए शांताराम पै, एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुंबई में पीसी जोशी के नेतृत्व में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भूमिगत नेटवर्क के प्रमुख केंद्र में काम किया था। उल्लाल श्रीनिवास माल्या दक्षिण कन्नड़ से संसद के पहले सदस्य थे। उन्हें आधुनिक मंगलुरु के वास्तुकार के रूप में श्रेय दिया जाता है। केनरा शैक्षणिक संस्थान और केनरा बैंक के संस्थापक अम्मेम्बल सुब्बा राव पै की प्रतिमा इस अवसर पर टेम्पल स्क्वायर पर स्थापित की गई थी। आयोजकों और यात्रियों की ओर से मंजुला नायक ने सभी दिग्गजों को श्रद्धांजलि अर्पित की। 125 से अधिक प्रतिभागियों को मुगा उसली (उबले हरे चने, ताजा नारियल, मिर्च के साथ), चने उपकारी (काले चने, कसा हुआ नारियल, मिर्च और मसाले), फोवा चटनी (चावल के टुकड़े, कसा हुआ नारियल), कनंगा चिप्स (शकरकंद वेफर्स) और पनाका (मसालेदार पेय) जैसे शानदार पारंपरिक कोंकणी व्यंजन खिलाए गए।

दोपहर 02 बजे – ढाक्के मछली पकड़ने का यार्ड :

दोपहर का पहला पड़ाव पुराने बंदरगाह पर मछली पकड़ने के यार्ड, मंगलुरु ढाक्के पर था। ढाक्के और मंगलुरु का बंदर (बंदरगाह) क्षेत्र लंबे समय से भाषाओं, समुदायों, संस्कृतियों और कामगारों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रतीक है। ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के प्रतिभागियों का नेतृत्व इप्टा कर्नाटक के डॉ. सिद्दनगौड़ा पाटिल, साथी सुंदरेश, अमजद, शण्मुखस्वामी और एनएफआईडब्ल्यू कर्नाटक के सचिव भारती प्रशांत, दक्षिण कन्नड़ इप्टा के सुरेश कुमार बंटवाल, करुणाकर मारिपल्ला, सीताराम बेरिंजा, थिमप्पा के साथ अन्य लोगों ने किया। उन्होंने मछुआरों और महिलाओं के साथ बातचीत की और सद्भाव, प्रेम और सह-अस्तित्व के गीत गाए।

शाम 4.30 बजे – श्री गोकर्णनाथेश्वर मंदिर :

इसके बाद यात्रा कुद्रोली में श्री गोकर्णनाथेश्वर मंदिर के लिए रवाना हुई। यह 1912 में निर्मित, संत, सुधारक और कवि श्री नारायण गुरु द्वारा प्रतिष्ठित, इस क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जहां श्री नारायण गुरु के सच्चे आदर्शों को व्यवहार में लाया जाता है। यहाँ महिलाएं और विधवाएं भी ‘अर्चक’ के रूप में कार्य करती हैं। मंदिर द्वारा प्रति वर्ष आयोजित प्रसिद्ध मंगलुरु दशहरा के दौरान सभी समुदायों, धर्मों और वर्गों के लोग यहाँ अपनी सेवा प्रदान करते हैं।

मंदिर में ‘ढाई आखर प्रेम’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे के हिस्से के रूप में, कर्नाटक के प्रसिद्ध गायक इम्तियाज सुल्तान द्वारा भक्ति संगीत का एक कार्यक्रम एक शुभचिंतक दानकर्ता की मदद से आयोजित किया गया था। भक्ति संगीत ने उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना इसमें पूरी तरह से डूबे हुए नजर आये। मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट के प्रमुख सदस्य पद्मराज ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और बाद में कलाकारों को सम्मानित किया। इस आयोजन में इप्टा के प्रेमनाथ एवं जगत पाल ने सहयोग किया।

शाम 5.30 बजे – सुल्तान बाथेरी :

यात्रा शाम को सुल्तान बाथेरी पहुँची। 1784 में टीपू सुल्तान द्वारा निर्मित यह वॉच टावर, अरब सागर के साथ नेत्रावती और गुरुपुर नदियों के संगम पर खड़ा है, जो ताकत, साहस और संस्कृतियों तथा परंपराओं के सामंजस्यपूर्ण संगम का प्रमाण है। सुल्तान बाथेरी में कार्यक्रम का आयोजन करावली लेखाकियारा वाचकियारा (लेखक और पाठक) संघ द्वारा मोगावीरा महासभा व बोलार (मछुआरे संघ) के सहयोग से किया गया था। जत्थे का स्वागत करावली लेखाकियारा वाचकियारा संघ और मोगावीरा महासभा के पदाधिकारियों और सदस्यों ने ज्योति चेल्यारू और मोगावीरा महासभा के अध्यक्ष यशवन्त मेंडन के नेतृत्व में किया। डॉ. शैला यू ने उल्लाल की रानी (1525-1570) रानी अब्बक्का को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने लोगों को एकजुट करने का काम किया था और बहादुरी से लड़ते हुए पुर्तगाली आक्रमणकारियों को हरा दिया था। फेल्सी लोबो और विलिता लोबो ने कोंकणी कविता गाई और रत्नावती बैकाडी ने तुलु गीत प्रस्तुत किए। यशवन्त मेंडन ने मछुआरों की जीवन शैली और धार्मिक विभाजन से परे श्रमिक वर्ग के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व, संघर्ष और श्रम के बारे में बताया। प्रसन्ना और डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा ने भी इस अवसर पर बात की। कलाकार प्रदीप ने आयोजन-स्थल को सजाकर सुपारी के पत्तों में तख्तियां तैयार की थीं। मोगावीरा महासभा के सहयोग से जगदीश बोलर ने इस आयोजन की व्यवस्था की थी।

शाम 6.30 बजे – तन्नीरभावी समुद्र तट :

सुल्तान बाथरी में कार्यक्रम के बाद, जत्था के प्रतिभागी मोगावीरा महासभा द्वारा प्रदान की गई नावों पर सवार होकर नेत्रावती नदी के पार तन्नीरभावी समुद्र तट पर पहुंचे, जहां हुसैन कटिपल्ला और यूएच खालिद उजिरे के नेतृत्व में करावली ब्यारी आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा प्रसिद्ध गायक मुहम्मद इकबाल कटियाप्पल्ला के सहयोग से सूर्यास्त के समय एक संगीतमय संध्या का आयोजन किया गया था। इसकी व्यवस्था शुभचिंतकों द्वारा की गई थी।

इस आयोजन में मंगलुरु के सहायक पुलिस आयुक्त (अपराध, कानून और व्यवस्था) श्री महेश कुमार मुख्य अतिथि थे। उन्होंने जत्था और उसके आदर्शों की सराहना करते हुए एकता, भाईचारे और शांति को मजबूत करने का आह्वान किया और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और अधिक कार्यक्रम आयोजित करने का सुझाव दिया। प्रसन्ना, डॉ. सिदानगौड़ा पाटिल, डॉ. सबीहा भूमिगौड़ा, ब्यारी वेलफेयर फोरम, अबू धाबी के अध्यक्ष मोहम्मद अली उचिल, डॉ. जाकिर यूसुफ हुसैन, अयाज कैकम्बा, बशीर बायकम्पाडी, पूर्व उप महापौर, केपी पणिक्कर, पूर्व नगरसेवक ने इस अवसर की शोभा बढ़ाई और भाषण दिया। गणेश, रोनी क्रस्टा, रिशाल क्रस्टा, मुहम्मद इकबाल, अशफाक कटिपल्ला, फैज कटिपल्ला, खालिद, मनोहर, अज़हर दाजिन ने कन्नड़, तुलु, कोंकणी, बयारी, मलयालम और हिंदी में सद्भाव के गीत गाए। कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कलाकार समद कटिपल्ला ने किया। यह 3 घंटे का यादगार कार्यक्रम मंगलुरु में यात्रा के बहुत ही शानदार पहले दिन के लिए उपयुक्त समापन था।

दूसरा दिन, 3 दिसंबर 2023 रविवार

सुबह 09 बजे – ब्रह्म बैदरकला गराडी, नागोरी

यात्रा का दूसरा दिन मंगलुरु के नागोरी में श्री ब्रह्मा बैदरकला गरडी क्षेत्र से शुरू हुआ। इस क्षेत्र में तुलु नाडु क्षेत्र के जुड़वां सांस्कृतिक नायकों, कोटि और चेन्नय्या (1556-1591) को समर्पित एक मंदिर है। परिसर में महात्मा गांधी को समर्पित एक अनोखा मंदिर भी है, जहां उनकी मूर्ति की प्रतिदिन पूजा की जाती है।

कार्यक्रम का आयोजन श्री चितरंजन, श्री किशोर कुमार और श्री हेमन्त कुमार के नेतृत्व में क्षेत्र की प्रबंध समिति द्वारा स्थानीय युवाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ किया गया। जत्था में शामिल यात्रियों का प्रबंधन समिति की ओर से भावभीना स्वागत किया गया। यात्रियों के लिए गांधी प्रतिमा के विशेष दर्शन की व्यवस्था की गई थी। मुख्य पुजारी ने मंदिर परिसर और वहां होने वाले अनुष्ठानों के महत्व के बारे में बताया।

प्रवीण कुमार और ममता ने गांधी-भजन गाए। थिएटर और मानव अधिकार कार्यकर्ता वाणी पेरियोडी ने गांधी कथा प्रस्तुत की।

सुबह 10 बजे – श्री वैद्यनाथ दैवस्थान कर्मिस्तान :

धान के खेतों से होते हुए जत्था श्री वैद्यनाथ दैवस्थान कर्मिस्तान पहुंचा।

रास्ते में प्रतिभागियों द्वारा प्रेम, सद्भाव और देशभक्ति के गीत गाए गए। जेप्पिनमोगारू और कर्मिस्तान ऐसी भूमि है, जहां पचास और साठ के दशक में मजदूरों और किसानों के आंदोलन बहुत प्रसिद्ध थे। रास्ते में लिंगापोआ सुवर्णा, सिम्पसन सोन्स, नारायण मैसूर, मोनप्पा शेट्टी जैसे पुराने नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

श्री वैद्यनाथ दैवस्थान में कार्यक्रम का आयोजन प्रबंध समिति द्वारा जेप्पिनामोगारू युवक मंडल के श्री प्रभाकर श्रीयान, श्री नागेद्र, नगरसेवक, श्री एमजी हेगड़े, और श्री प्रेमचंद, पूर्व नगरसेवक के सहयोग से किया गया था।

श्री वैद्यनाथ दैवस्थान में मंदिर के बुजुर्ग श्री भुजंगा शेट्टी ने दैवस्थान की परंपराओं को समझाते हुए नाथ संप्रदाय के साथ इसके संबंधों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अनुष्ठान कृषि-संस्कृति के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं और आज भी स्थानीय देवता क्षेत्र में बहुत महत्व रखते हैं। प्रसन्ना ने इस अवसर पर ग्रामीण परंपराओं और श्रम के अंतर्सम्बन्धों को समझाते हुए इन्हें संरक्षित करने पर ज़ोर दिया। साथ ही अधिक सामंजस्यपूर्ण वातावरण के लिए इन स्थानीय रीति-रिवाजों को समझने और उनके साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता की याद दिलाई। प्रबंधन समिति द्वारा जलपान की व्यवस्था की गई थी।

उसके बाद जत्थे के प्रतिभागियों ने जेप्पिनामोगारू युवक मंडल के दशकों पुराने कार्यालय का दौरा किया। स्वागत समिति के सदस्य श्री एमजी हेगड़े, जिन्होंने जेप्पिनामोगारू में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए स्वेच्छा से काम किया था, ने युवक मंडल के पदाधिकारियों का परिचय दिया और उनकी मदद के लिए धन्यवाद देते हुए क्षेत्र में उनकी गतिविधियों के बारे में संक्षेप में बताया।

सुबह 11.20 बजे – स्वर्गीय श्री जेप्पू रामप्पा स्मारक :

स्वर्गीय श्री जे. रामप्पा एक परोपकारी व्यक्ति थे, जो गरीबों को खाना खिलाते थे और उनकी मदद करते थे। वे शहर में कई धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े हुए थे। श्री नागेंद्र और श्री सोनी के नेतृत्व में श्री रामप्पा के परिवार के सदस्यों ने जत्थे का स्वागत किया। श्री सुरेश कुमार और श्री सोनी के मार्गदर्शन में यात्रा के लिए स्मारक को सजाया और संवारा गया था। प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल और डॉ. सबीहा भूमिगौड़ा के नेतृत्व में यात्रियों ने स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की।

प्रतिभागियों को परिवार के सदस्यों द्वारा स्वर्गीय श्री रामप्पा के पुराने, भव्य, पारंपरिक गाँव के घर में ले जाया गया। सदन के सामने बोलते हुए, श्री एमजी हेगड़े ने बताया कि कैसे श्री रामप्पा ने हजारों लोगों को बहुत ही उचित मूल्य पर असीमित मात्रा में भोजन खिलाया और इस तरह मेहनतकश लोगों का समर्थन किया। डॉ. उदय कुमार इरवाथुर ने स्मरण करते हुए कताया कि उनके बैच के कई गरीब साथियों को श्री रामप्पा ने उनकी शिक्षा जारी रखने में भी मदद की थी। प्रसन्ना ने रामप्पा जैसे व्यक्तियों के बारे में बताया, जिन्होंने पूरी ईमानदारी से लोगों की सेवा की, फिर भी सरल बने रहे और किसी भी प्रकार के महिमा-मंडन से दूर रहे।

यात्रियों को सज्जिगे-बाजिल, जिसे स्थानीय भाषा में ’कंक्रीट’ कहा जाता है, खिलाया गया और चाय पिलाई गई। उपमा और मसालेदार पीटा चावल का यह मिश्रण श्रमिक वर्ग का पारंपरिक नाश्ता है, जो ‘अनेकता में एकता की मजबूती’ का प्रतीक कहा जा सकता है।

दोपहर 12.30 बजे – हर्बर्ट डी सूजा का फार्म :

हर्बर्ट डी सूजा एक प्रगतिशील किसान हैं, जो ईसाई समुदाय के नई फसल के उत्सव के साथ-साथ मंगलुरु और उसके आसपास के विभिन्न मंदिरों में भी त्योहारों के लिए स्वेच्छा से चावल की बालियां प्रदान करते हैं, इसके माध्यम से वे समुदायों के बीच पारंपरिक बंधन और साझा विरासत को बरकरार रख रहे हैं। जत्था प्रतिभागियों ने श्री डिसूजा से बातचीत की और उनकी उदारता की सराहना की।

दोपहर 2.30 बजे – हरेकाला को पार करना :

जत्था काडेकर-जेप्पिनामोगारू में नेत्रावती नदी के तट पर ग्रेगरी डिसूजा द्वारा तैयार की गई नाव में चढ़ गया। इसके लगभग एक किलोमीटर लंबे पुल के नीचे बैनर और तख्तियां थामे, गीत गाते हुए, यात्रियों ने नदी के उस पार मैंग्रोव वाले टापुओं के चारों ओर से गुजरते हुए, दूसरी तरफ हरेकला तक पहुंचने के लिए एक यादगार नाव-यात्रा की।

दोपहर 3.30 बजे – मैमुना डेयरी, हरेकाला :

यात्रियों का मैमुना डेयरी में श्रीमती मैमुना, उनके परिवार के सदस्यों और कर्मचारियों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया। उन्हें शानदार भोजन कराया गया। इसके बाद, श्रीमती मैमुना और बेटी मेर्गिन ने डेयरी की उत्पत्ति और विकास के बारे में बताते हुए कहा कि, उन्होंने किस तरह गरीबी के दौरान बीड़ी बनाकर अपना जीवनयापन किया था! मैमुना के पति के निधन के बाद, उन्होंने उनके इस सपने को साकार करने के लिए पिछले 4 वर्षों से मेहनत की। मवेशी पालने का उनका सपना कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण फार्म का निर्माण कर सका, जिसमें अब 62 गायें हैं। यह ग्रामीण उद्यमिता का एक मॉडल बन गया है, जिससे कई युवाओं के लिए रोजगार पैदा हुआ है। वे अपने मुनाफे का लगभग आधा हिस्सा सामाजिक कार्यों, गरीबों को खाना खिलाने और शिक्षित करने के लिए दान कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि जल्द ही मवेशियों की संख्या 100 तक बढ़ जाए। वे और ज़्यादा ज़रूरतमंदों की मदद के लिए संस्थान स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, डॉ. सबिहा, अमजद और अन्य प्रतिभागियों ने बातचीत में भाग लिया।

शाम 05 बजे : न्यू पद्पू स्कूल

हरेकला पंचायत कार्यालय से गुजरने के बाद यात्रियों ने अक्षरा सांता (साहित्य के संत) पद्मश्री हरेकला हजब्बा द्वारा निर्मित न्यू पद्पू स्कूल का दौरा किया। एक अनपढ़ फल विक्रेता होने के बावजूद, श्री हरेकला हजब्बा ने वहां के बच्चों के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने गांव में स्कूल का निर्माण किया। सभी यात्रियों के लिए इस स्कूल का दौरा करना वास्तव में एक समृद्ध अनुभव था।

यात्रियों के लिए रात भर ठहरने और भोजन की व्यवस्था नाटेकल के एक शुभचिंतक द्वारा की गई थी।

तीसरा दिन 4 दिसंबर 2023, सोमवार

सुबह 9.30 बजे – नाटेकल में छात्रों के साथ बातचीत :

दिन की शुरुआत नाटेकल में हाई स्कूल के 500 से अधिक छात्रों के साथ बातचीत से हुई। प्रसन्ना ने वैश्विक परस्पर संबंधों के बारे में बात की और बताया कि वर्षों से चले आ रहे ये रिश्ते किस तरह बदल रहे हैं। उन्होंने छात्रों से ज़मीनी स्तर पर जुड़े रहने, दयालु होने, अपने सपनों को साकार करने और आधुनिक मशीनों की बजाय आसपास की वास्तविकता से जुड़ने का आग्रह किया। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल और अन्य लोगों ने भी बातचीत में भाग लिया और इप्टा के यात्रियों ने प्रेम और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के गीत गाए।

सुबह 11 बजे – मंगलागंगोत्री – मैंगलोर विश्वविद्यालय :

मैंगलोर विश्वविद्यालय के एसवीपी कणंद अध्ययन केंद्र द्वारा भारतीय संत परंपराओं पर प्रसन्ना का एक व्याख्यान-सह-संवाद आयोजित किया गया था। प्रभारी कुलपति प्रो जयराज अमीन ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। एसवीपी कणंद अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष सोमन्ना, प्रोफेसर सबिहा भूमिगौड़ा, प्रोफेसर शिवराम शेट्टी के अलावा अन्य कर्मचारी और छात्र भी कार्यक्रम में शामिल हुए।

दोपहर 11.30 बजे – असाइगोली : सहकारी आंदोलन के बारे में बातचीत :

जत्था असाईगोली पहुँचा, जहाँ कोनाजे ग्राम पंचायत के पूर्व अध्यक्ष शौकत अली ने कोनाजे उपभोक्ता सहकारी समिति और दूध उत्पादक महिला सहकारी समिति के सदस्यों और पदाधिकारियों के साथ-साथ कोनाजे की आशा कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत आयोजित की थी। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, अमजद, शनमुखस्वामी और अन्य ने बातचीत में भाग लिया।

शाम 4.00 बजे कोनाजे युवक मंडल :

जिले के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता श्री इब्राहिम कोडिजल द्वारा कोनाजे युवक मंडल के तत्वावधान में युवाओं के साथ एक बातचीत का आयोजन किया गया था। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, अमजद, शण्मुखस्वामी और अन्य ने बातचीत में भाग लिया।

चौथा दिन – 5 दिसंबर 2023, मंगलवार

सुबह 9.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक – मुदिपु जन शिक्षण ट्रस्ट :

जन शिक्षण ट्रस्ट, मुदिपु वर्षों से ग्रामीण जनता, विशेषकर सबसे पिछड़े कोरगा आदिवासी समुदाय और महिला सशक्तिकरण के लिए ज़बर्दस्त काम कर रहा है। ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्था का स्वागत अबूबकर जल्ली और सुधीर बालेपुनी के नेतृत्व में नालिके (लोक नृत्य) मंडली ने ढोल और डूडी के साथ किया। जन शिक्षण ट्रस्ट की समन्वयक शीना शेट्टी ने यात्रियों का औपचारिक स्वागत किया और ट्रस्ट की गतिविधियों का परिचय प्रदान किया। सदस्यों और लाभार्थियों ने अपनी गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया, अपने कौशल का प्रदर्शन किया और गीत भी प्रस्तुत किये। प्रसन्ना, डॉ. सिद्धनागौड़ा पाटिल और अन्य यात्रियों ने बातचीत में भाग लिया। जन शिक्षण ट्रस्ट के समन्वयक कृष्ण मूल्या ने कार्यक्रम का संचालन किया। चित्तारा बलागा के चंद्रशेखर पथूर, सतीश इरा और नागेश कल्लूर ने जलपान की व्यवस्था की और दोपहर के भोजन की मेजबानी जनजीवन, बालेपुनी के रमेश शेनावा ने की थी। इस कार्यक्रम के समन्वय में शिवप्रसाद अल्वा, इब्राहिम तपस्या और हैदर कैरांगला ने मदद की।

शाम 4 बजे – बंगारागुड्डे – भैरा समुदाय के साथ बातचीत :

भैरा समुदाय के निवास स्थान बंगारागुड्डे तक पहुंचने के लिए जत्था दूरवर्ती ग्रामीण इलाके से गुजरा। डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल, शनमुखस्वामी, समुदाय कर्नाटक के सीएन गुंडन्ना और अन्य प्रतिभागियों ने आदिवासियों के साथ बातचीत की।

शाम 5.30 बजे – कुलाला संघ, कुर्नाड, मुदिपु :

कुर्नाड के कुलाला भवन में स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय डॉ. अम्मेम्बल बलप्पा के शताब्दी स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। डॉ. बलप्पा के रिश्तेदार श्री रवींद्रनाथ और डॉ. बलप्पा के पोते तेजस्वी राज ने डॉ. बलप्पा के जीवन और कार्य के बारे में जानकारी दी। अध्यक्षता कुलाला संघ के अध्यक्ष पुण्डरीकाक्ष मूल्या ने की।

इसके बाद कुम्हार सहकारी समिति पुत्तूर के सदस्यों ने मिट्टी के बर्तनों के निर्माण का प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किया। दक्षिण कन्नड़ कुलाल एसोसिएशन के अध्यक्ष मयूर उल्लाल, कुम्हार सहकारी समिति, पुत्तूर के क्रमशः अध्यक्ष और ईसीओ भास्कर एम पेरूवई और जनार्धा ने बर्तन बनाने की चुनौतियों और अवसरों पर एक इंटरैक्टिव सत्र आयोजित किया। प्रसन्ना, डॉ. सिद्दानगौड़ा पाटिल और अन्य ने भाग लिया।

इसके बाद जाने-माने गायक-कलाकार नाडा मनिनालकूर द्वारा कट्टाला हादुगालु (रात के गीत) का प्रदर्शन किया गया।

पांचवाँ दिन – 6 दिसंबर 2023, बुधवार

सुबह 10 बजे हुहाकुवा कल्लू :

मुदिपु के पास हुहाकुवा कल्लू में फूल फेंकने वाले मंदिर के दर्शन करके जत्थे के पाँचवें दिन की शुरूआत हुई। किंवदंती है कि कननथूर में दैव (देवता) ऊपर की पहाड़ियों से तटीय क्षेत्र कननथूर में बसने से पहले इसी पत्थर पर बैठे थे।

सुबह 11.30 बजे कनन्थूर श्री थोडुकुक्किनार दैवस्थान :

जत्था कननथूर श्री थोडुकुक्किनार दैवस्थान की ओर रवाना हुआ। किंवदंतियों के अनुसार, ये दैव (देवता) महिलाओं के संघर्ष और विजय के प्रतीक हैं। जत्थे का स्वागत क्षेत्र के प्रबंध ट्रस्टी श्री देवीप्रसाद पोय्याथाबैल ने किया। दैवस्थान के ‘कंठ’ ने दैवस्थान के देवताओं की कहानी बताते हुए पद-दान या लोककथा प्रस्तुत की। चंद्रहास कननथूर ने किंवदंती के साथ-साथ इसके आसपास के अनुष्ठानों को भी समझाया। परिसर में 800 वर्ष से अधिक पुराना एक आम का पेड़, जो लंबा खड़ा है, श्री देवीप्रसाद पोयथाबैल ने दिखाया। उन्होंने बताया कि उस पेड़ से अब तक एक पत्ता भी नहीं तोड़ा गया है। इसे इसके प्राकृतिक रूप में छोड़ दिया गया है। बातचीत ग्रामीण मुद्दों, विश्वासों और सतत विकास पर केंद्रित थी। प्रबंध न्यासी एवं प्रबंध समिति की ओर से सभी प्रतिभागियों के लिए दोपहर के भोजन का प्रबंध किया गया।

शाम 4.00 बजे पोय्याथाबेल जुमा मस्जिद और मानवती बीवी दरगाह :

यात्री धान के खेतों से होते हुए पोय्याथाबेल जुमा मस्जिद और मानवती बीवी दरगाह पहुंचे। ये बहुत पुराने धर्मस्थान सभी धर्मों के लोगों को आकर्षित करते हैं। मानवती बीवी को सभी गरीबों और वंचितों के उद्धारकर्ता के रूप में माना जाता है।

मस्जिद प्रबंधन समिति और स्थानीय लोगों की ओर से इस्माइल टी ने यात्रियों का स्वागत किया। छात्रों ने यात्रियों का भव्य स्वागत किया। डॉ. इस्माइल ने इन तीर्थस्थलों की सदियों पुरानी परंपराओं के बारे में बताया, जो क्षेत्र की समन्वित संस्कृतियों को दर्शाती हैं तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सद्भाव को भी प्रदर्शित करती हैं। प्रसन्ना ने कर्नाटक और केरल के बीच इस सीमा क्षेत्र में विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों के सामंजस्यपूर्ण और शांतिपूर्ण जीवन की सराहना की और कहा कि संतों और सूफियों ने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए धर्मों और संप्रदायों से ऊपर उठकर काम किया था। कार्यक्रम का संचालन डॉ इस्माइल एन ने किया।

छठवाँ दिन – 7 दिसंबर 2023, गुरुवार

सुबह 10ः30 – अरसु मंजिश्नार मंदिर माडा और हजार जमात मस्जिद, उदयवारा :

अरसु मंजिश्नार मंदिर माडा और थाउज़ेंड जमात मस्जिद, उदयवारा सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व और साझा विरासत और प्रथाओं के लिए लगभग 900 वर्षों के गवाह रहे हैं। इन तीर्थस्थलों पर वार्षिक अनुष्ठानों में दोनों तीर्थस्थलों के बुजुर्ग शामिल होते हैं। यह अनुष्ठान एक दूसरे की उपस्थिति के बिना सम्पन्न नहीं होता है।

मंदिर में वार्षिक अनुष्ठान के लिए अनुष्ठान का प्रमुख दैव पात्री, दैवस्थान के प्रमुखों और दस समुदाय के नेताओं के साथ एक जुलूस की शक्ल में मस्जिद के सदस्यों को आमंत्रित करने जाता है। वहाँ मस्जिद समिति द्वारा उनका गर्मजोशी से और अत्यंत सम्मान के साथ स्वागत किया जाता है। मस्जिद में त्योहारों के अवसर पर मंदिर के अधिकारियों द्वारा अनाज और अन्य सामग्री भेजी जाती है।

जब यात्रा अरसु मंजिश्ना मंदिर पहुंची, तो मंदिर के ट्रस्टियों, बुजुर्गों और स्वागत समिति की ओर से बीवी राजन ने यात्रियों का स्वागत किया। मंदिर के अनुष्ठानों को मंदिर के पुजारियों के साथ-साथ मस्जिद के बुजुर्गों द्वारा समझाया गया। यात्रियों को जलपान उपलब्ध कराया गया।

सुबह 11.30 बजे सुरेंद्र कोट्यान की लाइब्रेरी :

पुस्तक प्रेमी सुरेंद्र कोट्यान ने अपने खर्च पर 10 लाख रुपये से अधिक मूल्य की 10,000 से अधिक किताबें एकत्र की हैं और इस गांव में एक पुस्तकालय विकसित किया है। यात्रियों ने पुस्तकालय का दौरा किया और अपने लोगों तक ज्ञान फैलाने के उनके इन प्रयासों की सराहना की।

दोपहर 12.00 बजे :

इसके बाद यात्रा उदयवारा थाउजेंड जमात मस्जिद पहुंची। मस्जिद के पूर्व सचिव मोइउद्दीन, जिन्होंने मंदिर और मस्जिद दोनों में कार्यक्रमों के आयोजन में बहुत गहरी रुचि ली थी, ने मस्जिद की कार्यप्रणाली और दोनों तीर्थस्थलों की समन्वित संस्कृतियों और साझा अनुष्ठानों के बारे में बताया। उन्होंने मस्जिद द्वारा, विशेष रूप से लड़कियों के लिए संचालित शैक्षिक गतिविधियों के बारे में भी बताया। मस्जिद समिति ने यात्रियों के लिए भोजन और जलपान उपलब्ध कराया।

दोपहर 2ः30 बजे :

‘ढाई आखर प्रेम’ जत्था अपने अंतिम गंतव्य गिलिविंदु तक पहुंच गया। यह राष्ट्रकवि एम. गोविंदा पई की स्मृति में केरल के कासरगोड में मंजेश्वरम के पास उनके तत्कालीन निवास पर स्थापित सांस्कृतिक केंद्र है। श्री गोविंद पई एक विख्यात लेखक और बहुभाषाविद् थे, जिन्हें 1949 में कन्नड़ के पहले राष्ट्रकवि के रूप में सम्मानित किया गया था।

यात्रियों का स्वागत स्वागत समिति के अध्यक्ष जयानदा, स्वागत समिति के संयोजक बीवी राजन और गिलिविंदू के सचिव उमेश सालियान ने किया। दोपहर के भोजन के बाद, शाम 4.00 बजे, 6 दिवसीय जत्था का समापन कार्यक्रम एम गोविंदा पई की प्रतिमा के सामने आयोजित किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संचालन जयानदा ने सभी का स्वागत करते हुए किया। इप्टा केरल राज्य इकाई के अध्यक्ष टी बालन ने ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्थे की सराहना की। प्रसन्ना ने अपने समापन भाषण में कहा कि कैसे मशीनों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते उपयोग के साथ श्रमिक वर्ग तेजी से गायब हो रहा है, जिससे सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के ताने-बाने को गंभीर चुनौती मिल रही है। इसके साथ ही श्रमिक वर्ग की एकता और आंदोलनों को निरर्थक और अप्रभावी बना दिया गया है। डॉ. सबिहा भूमिगौड़ा ने कणंद कहावत ‘कोशा ओडु, देशा सुत्तु’, जिसका अर्थ है, ‘विश्वकोश पढ़ें, देश भर में घूमें’, का हवाला देते हुए बताया कि कैसे 6 दिवसीय जत्थे ने ज्ञान और अनुभव प्रदान करके प्रत्येक प्रतिभागी के जीवन को समृद्ध किया है, जो कभी भी किसी भी किताब से प्राप्त नहीं किया जा सकता था। नागेश कल्लूर ने बताया कि पूरा जत्था सभी के सामूहिक प्रयास से आयोजित किया गया था और इसे हर स्थानीय कार्यक्रम के उत्साही आयोजकों द्वारा स्व-वित्तपोषित किया गया। उन्होंने कहा कि इस प्रयास ने यह सिद्ध किया है कि सार्थक और जन-समर्थक गतिविधियों के लिए जनसाधारण द्वारा आसानी से आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके लिए बड़े लोगों या कॉरपोरेट्स की कोई ज़रूरत नहीं है।

इसके बाद, 6 और 7 दिसंबर 2023 को गिलिविंदु में प्रसन्ना द्वारा आयोजित थिएटर कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रशिक्षुओं ने पृथ्वी नामक एक नाटक प्रस्तुत किया जिसे दर्शकों द्वारा बहुत सराहा गया।

कर्नाटक के मंगलुरु से केरल के मंजेश्वर तक छह दिवसीय ‘ढाई आखर प्रेम’ – ‘पट्टप्पे जोकुलु ओन्जे मैटेल्ड’ राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्थे ने योजनाबद्ध तरीके से यात्रा की और आशा से कहीं अधिक जन-संवाद किया। इसने वास्तव में अपने विषय ‘पट्टप्पे जोकुलु ओन्जे मैटेल्ड’ को सभी वर्गों के लोगों के साथ साकार किया। सभी प्रभाग, बहुत उत्साह से भाग ले रहे थे, खुशी-खुशी भोजन और आवास प्रदान कर रहे थे, खर्च उठा रहे थे। कहीं भी कोई गड़बड़ी नहीं, पुलिस द्वारा कोई सुरक्षा नहीं, कोई अप्रिय घटना या किसी भी तरफ से विरोध की आवाज़ नहीं। सभी प्रतिभागियों के लिए, जत्था हमेशा के लिए संजोया जाने वाला शानदार यादगार अनुभव रहा है और रहेगा। निश्चित रूप से यह जत्था उन सभी लोगों को, उनकी संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों की मिलीजुली विरासत और ज्ञान को सामने लाने के लिए इसी तरह के और अधिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

रिपोर्ट : डॉ. बी. श्रीनिवास कक्किलाया, मैंगलुरु
अनुवाद: ऊषा आठले

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