Categories
Travelogue

काश सरकार भी ऐसा ही संवेदनशील व्यवहार इन डूब प्रभावितों के साथ करे

“ढाई आखर प्रेम; राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा” 22 दिसम्बर से 26 दिसम्बर 2023 तक मध्यप्रदेश में रही, जिसमें मैं भी शामिल रही। यात्रा पीथमपुर, खलघाट, ठीकरी, सेमल्दा, धरमपुरी, कवठी, गोगाँवा से होते हुए बड़वानी जिले और धार जिले के कई गांवों में गई जिसमें डूब क्षेत्र में आने वाले गाँव जंगरवा और एक्कलवारा भी शामिल थे। वहाँ जब उजड़े ओर बेतरतीब घर देखे तो मन दहल गया।

वैसे तो बचपन से ही अखबार, रेडियो, टी.व्ही. पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की खबरें पढ़ते, देखते आ रहे थे परंतु इतने करीब से देखने का मौका पहली बार इस यात्रा में हुआ।

इन गाँवों में इसी सितम्बर में ये घटना घटी जिसने कई परिवारों को तहस-नहस कर दिया। पूरे गाँवों में सन्नाटा अभी तक पसरा हुआ है। एक अजीब-सा खालीपन है पूरे माहौल में। मवेशियों की बात करते-करते महिलाओं की आंखों में पानी आ आ जाता है। अपनी-अपनी कहानियों को कहते-कहते इनके मुँह सूख जाते हैं। इतनी बेबसी के किस्से सुनते-सुनते और अपनी जड़ों से उखड़े हुए गाँव देख कर आँखे फ़टी की फटी ही रह गईं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथी पिछले 38 सालों से चल रही लड़ाई से हारे नहीं हैं, अभी भी पूरी उम्मीद और आशा लिये वे डटे हुए हैं। उन्हें मुहँजुबानी याद है किस क्षेत्र में कौन-कौन से केस हैं और उनमें क्या-क्या परेशानियाँ है। कुछ साथी मुकेश भाई, भगवान भाई, वाहिद भाई, कमलू जीजी पूरी यात्रा में हमारे साथ रहे। अपने काम के प्रति उनके समर्पण को दिल से सलाम।

वहाँ की महिलायें मिलने पर ‘साथी जिन्दाबाद’ कहती हैं। ये सुनकर लगा चलो परेशानी के चलते ही सही महिलाओं में जागरूकता तो है, वे कम से कम ‘साथी, जिन्दाबाद, लड़ाई, न्याय, अधिकार’ आदि के मायने तो जानती हैं।

एक मासूमियत भरी कहानी यहाँ देखने मिली। एक लड़की मिली जिसका नाम सोनू था। उसका घर भी डूब गया था। छान छप्पर सब पानी में बह गये और अब ऐसे ही मकान में पूरा कुनबा रह रहा है गरीबी के चलते। मुआवजे के तौर पर दो पैसे भी इस परिवार को अभी तक नहीं मिले। लेकिन उस बच्ची ने गली के कुत्ते के लिये अपने टूटे मकान से निकली ईंटों से घर बनाया।

काश निकट भविष्य में सरकार भी ऐसा ही संवेदनशील व्यवहार इन डूब प्रभावितों के साथ करे, इन्हें न्याय मिले।

Spread the love
%d bloggers like this: