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वाईकोम सत्याग्रह शताब्दी वर्ष: दलित अधिकारों की संघर्ष यात्रा

02 अक्टूबर 2023 | लखनऊ.

ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक यात्रा आयोजन समिति, लखनऊ की तरफ से सोमवार को गांधी जयंती के मौके पर एक परिचर्चा का आयोजन कैफ़ी आज़मी सभागार में किया गया. परिचर्चा का विषय था, ‘वाईकोम सत्याग्रह शताब्दी वर्ष: दलित अधिकारों की संघर्ष यात्रा’.

बातचीत की शुरुआत करते हुए साहित्यकार वीरेन्द्र यादव ने वाईकोम सत्याग्रह के बारे विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि आज के केरल में सौ साल पहले त्रावणकोर राज्य में वाईकोम मंदिर के आसपास की सड़कों पर दलितों का आना-जाना प्रतिबंधित था. यही नहीं इसके अलावा कई सड़कों या क्षेत्र में भी दलित आ- जा नहीं सकते थे. यही नहीं उनके जीवन जीने पर भी कई तरह के प्रतिबंध थे.

वीरेन्द्र यादव ने जोर देकर कहा कि वह मंदिर प्रवेश का आंदोलन नहीं था बल्कि नागरिक अधिकारों का आंदोलन था. हालाँकि, शुरुआत में गांधी सीधे तौर पर इस आंदोलन से नहीं जुड़े थे. इस आंदोलन में कांग्रेस के लोग शामिल थे. उस वक़्त गांधी के विचार भी कुछ अलग थे. यह आंदोलन समाज सुधारक श्री नारायणा गुरु से काफी प्रभावित था.

उनके मुताबिक, आंदोलन जैसे- जैसे बढ़ता गया, पूरी मद्रास प्रेसिडेंसी से लोग आने लगे. सैकड़ों लोग गिरफ्तार हुए. पेरियार नायकर उन दिनों कांग्रेस में थे. वे भी उस आंदोलन में गए. उनके जाने से आंदोलन में गति आई. इस आंदोलन के बाद दलितों को चार में से तीन सड़कों पर चलने का अधिकार मिला. वाईकोम सत्याग्रह से हम भारतीय समाज और राजनीति के अंतर्विरोध को भी समझ सकते हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा ने कहा कि मैं उत्पीड़न की संरचना तोड़ने में यक़ीन रखती हूं. वाईकोम से पहले देश के कई इलाकों में दलितों के हक़ों की आवाज़ उठनी शुरू हो गई थी. दलितों के साथ न सिर्फ अमानवीय व्यवहार किए गए बल्कि उनके लिए नियम और नीति बनाई गई. कर्तव्य तय किए गए. उन्हें दलितों की नियति बताई गई. वाईकोम सत्याग्रह में हम इन सबके विरोध के बीज देख सकते हैं. रूपरेखा वर्मा ने दलितों के साथ आज भी हो रहे अमानवीय व्यवहारों पर कई घटनाओं के ज़रिए बात की.

प्रोफ़ेसर नदीम हसनैन ने अपनी बात की शुरुआत करते हुए पाँच दशक पहले लखनऊ में पेरियार से अपनी मुलाक़ात का ज़िक्र किया.
नदीम हसनैन ने कहा, दलित अत्याचार का सबसे भयानक रूप त्रावणकोर राज्य में देखने को मिलता था. वहाँ दलितों पर सौ से ज़्यादा टैक्स लगते थे. इनमें एक ‘ब्रेस्ट टैक्स’ भी था. उस वक़्त वहाँ दलित महिलाओं को अपनी छाती ढँकने की इजाज़त नहीं थी. जो महिलाएं छाती ढकती थीं, उनके टैक्स देना पड़ता था. उन्होंने एक महिला नांगेली की कहानी भी सुनाई. नांगेली ने ब्रेस्ट टैक्स के रूप में अपनी दोनों स्तन काटकर पेश कर दिए थे. वाईकोम सत्याग्रह की पृष्ठभूमि में ऐसी अनेक अमानवीय प्रथाएँ भी थीं. उन्होंने विदेशों में भारतीयों के बीच दलितों के साथ भेदभाव के बारे में बताया.

इप्टा के कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश वेदा ने ढाई आखर प्रेम यात्रा के बारे में जानकारी दी. उन्होंने डॉक्टर अंबेडकर की बात के हवाले से कहा कि आज सांस्कृतिक क्रांति की सख्त जरूरत है. उन्होंने कहा, गांधी भी सामाजिक- सांस्कृतिक क्रांति के पक्षधर थे. वाईकोम सत्याग्रह ने कांग्रेस के अंदर भी दलित चेतना का संघर्ष तेज़ किया था. ध्यान रहे, हम गांधी को उसी तरह याद नहीं करते हैं, जिस तरह गांधी की हत्या करने वाली विचार उन्हें याद करती है.

राकेश ने बताया कि हमारा “ढाई आखर प्रेम; राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था” बहुलतावादी सांस्कृतिक निशानियों से जुड़ने की भी यात्रा है. उन्होंने कहा कि आज सांस्कृतिक आंदोलन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. इस सांस्कृतिक आंदोलन की नींव में जाति उन्मूलन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा होना चाहिए. हम संस्कृतिकर्मी इस यात्रा के ज़रिए एक कोशिश कर रहे हैं.

पूर्व आईपीएस अधिकारी और दलित चिंतक और परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे एसआर दारापुरी ने कहा कि जैसी जाति व्यवस्था हमारे देश में है, वैसा भेदभाव दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलता है. त्रावणकोर राज्य में दलितों के साथ भेदभाव सबसे क्रूरतम रूप में था. दलितों की हत्या वहाँ अपराध नहीं था. वाईकोम से पहले भी आंदोलन हुए. वाईकोम आंदोलन से कांग्रेस के अंदर भी काफी बदलाव आया. कांग्रेस ने इसके बाद समाज सुधार आंदोलन भी शुरू किया. गांधी जी इस आंदोलन में बाद में आते हैं. दस साल के आंदोलन के बाद वाईकोम में दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार मिला. इसके बाद हम देश के कई हिस्सों में दलितों के आंदोलन का उभार देखते हैं. उन्होंने कहा कि पूना पैक्ट के बाद गांधी जी के विचार में काफी बदलाव देखने में आता है. उन्होंने छुआछूत विरोधी और दलितों के मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन शुरू किया. गांधी का काफी विरोध हुआ.
एसआर दारापुरी ने कहा कि आज फिर से ऐसी शक्तियाँ सर उठा रही हैं, जो भेदभाव की पक्षधर हैं. हमें इन्हें रोकना होगा.

परिचर्चा का संचालन सूरज बहादुर थापा ने किया. इप्टा के राज्य महासचिव शहजाद रिजवी ने स्वागत किया. धन्यवाद ज्ञापन दीपक कबीर ने किया.

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