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राजस्थान की पाँच दिवसीय पदयात्रा : अनेकधर्मी सांस्कृतिक इंद्रधनुष की झलक

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28 सितम्बर 2023 से 30 जनवरी 2024 तक ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक पदयात्रा राजस्थान से दिल्ली तक आरम्भ हो चुकी है। इसमें देश के विभिन्न प्रगतिशील-जनवादी संगठन, साहित्यकार, रंगकर्मी, संगीतकार, कलाकार, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा सभी गंगा-जमुनी संस्कृति के वाहक और पक्षधर लोग शामिल हो रहे हैं। इस यात्रा के माध्यम से आपसी प्रेम, भाईचारा, सौहार्द्र, सामाजिक न्याय, शांति का सन्देश देते हुए स्थानीय लोगों से बातचीत की जाएगी। यह यात्रा देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब, स्वतंत्रता, समता, और एकजुटता को समाज में फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रही है।

28 सितम्बर 2023, गुरुवार :
पहले पड़ाव अलवर में पहले दिन 28 सितम्बर को पदयात्रा में सम्मिलित संगठन ’जन नाट्य मंच’ (जनम) ने अपने नुक्कड़ नाटक ’सांझी रे चदरिया’ के तीन प्रदर्शन तीन अलग-अलग स्थानों पर किये। मलयश्री हाशमी और उनकी टीम ने अलवर के विवेकानंद चौक, होप सर्कस तथा कंपनी बाग़ में दोपहर 2 बजे से 5 बजे तक अपने नुक्कड़ नाटक में गीतों और चुटीले संवादों के माध्यम से समाज के बहु-सांस्कृतिक ताने-बाने को ऐतिहासिक तथ्यों के छोटे-छोटे कथा-प्रसंगों में गूँथकर प्रस्तुत किया। देश की साझा संस्कृति, कोरोना की मानव-पीड़ा, संत कवि तुलसीदास और कवि रहीम की दोस्ती का ज़िक्र उल्लेखनीय है। दोस्ती की चदरिया ओढ़कर जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। ’ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक यात्रा में जिस तरह हाथ के श्रम और प्यार-मोहब्बत को रूपायित करने वाले ’गमछे’ को प्रतीक की तरह प्रयुक्त किया जा रहा है, उसको नाट्य-प्रस्तुति के दौरान प्रदर्शन-स्थल पर साकार होते हुए देखा गया। एक अभिनेत्री एक चौखट के प्रतीकात्मक करघे पर रंगीन ताने-बाने बुन रही थी।

ब्रिजेश लिखित इस नाटक का निर्देशन किया था, आत्मन और कोमिता ने। अभिनय किया था – अशोक, ब्रिजेश, दिस्ता, कोमिता, कृतार्थ, मलयश्री, मुस्तफा, प्रियंका, पूर्बाशा, रिद्धिजीत, साची और विजय ने।

हॉप सर्कस पर छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली और उनके साथियों ने नाटक ‘गमछा बेचैया’ प्रस्तुत किया। आर्थिक सहायता हेतु चादर भी फैलाई गई। यहाँ स्थानीय मिठाईवाले ने सभी को अलवर का प्रसिद्ध मिल्क केक खिलाया। कंपनी बाग में नाट्य-प्रदर्शन के बाद हरिशंकर गोयल ने अलवर के बारे में रोचक जानकारी दी। साथ ही विवेकानंद के राजस्थान प्रवास के बारे में बताया। नाटक के बाद जन नाट्य मंच की मलयश्री हाशमी, इतिहासकार हरिशंकर गोयल, प्रोफेसर शंभु गुप्त, प्रोफेसर रमेश बैरवा, ऐडवा की प्रदेश उपाध्यक्ष रईसा, राजस्थान इप्टा के प्रदेश अध्यक्ष जगदीश शर्मा एवं महासचिव संजय विद्रोही, भारत परिवार के वीरेन्द्र क्रांतिकारी, एटक के तेजपाल सैनी, बिजली वर्कर्स फेडरेशन के गजराज सिंह आदि का इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश वेदा और अन्य बाहर से आए अतिथियों द्वारा गमछा पहनाकर स्वागत किया गया।

कंपनी बाग से वंडर मॉल, राजकीय जनाना अस्पताल होती हुई पदयात्रा भगतसिंह चाराहे पर पहुँची। यह उस दिन की यात्रा का अंतिम पड़ाव था।

मनुष्य मात्र में समता और भाईचारे की स्थापना के लिए अपनी कम उम्र में शहीद होने वाले भगत सिंह के जन्म दिवस 28 सितम्बर से ’ढाई आखर प्रेम’ की देशव्यापी यात्रा की शुरुआत की गयी है, ताकि उनके विचारों के इस आयाम पर परस्पर चर्चा हो सके। नाट्य-प्रदर्शन के बाद पैदल यात्रा करते हुए सभी यात्री शहीद भगत सिंह की प्रतिमा के पास पहुँचे। पुष्पांजलि अर्पित करने वाले यात्रियों में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, कार्यकारी अध्यक्ष राकेश, कर्नाटक के राज्य सभा सदस्य अनिल हेगड़े, बापू के लोग संगठन के संयोजक विजय प्रताप, तनवीर आलम, प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा, छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष नथमल शर्मा, जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी, नाट्य निर्देशक वेदा राकेश, इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार, संयुक्त सचिव अर्पिता श्रीवास्तव तथा वर्षा आनंद, राष्ट्रीय सेवा दल के महासचिव शाहिद कमाल, अवधेश कुमार, जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वयक कैलाश मीणा, अलवर के हरिशंकर गोयल तथा प्रोफ़ेसर शम्भू गुप्त थे। सभी ने अपने विचार व्यक्त किये। सवाई माधोपुर इप्टा की टीम ने जनगीत गाया। नन्हें बच्चे अर्थ अग्रवाल ने कबीर के दोहे सुनाए।

इस अवसर पर ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की राजस्थान संयोजक सर्वेश जैन, एडवा की उपाध्यक्ष रईसा, जनवादी लेखक संघ के जिला उपाध्यक्ष छंगाराम मीणा, घनश्याम शर्मा, भारत परिवार के अध्यक्ष वीरेंद्र क्रांतिकारी, सरिता भारत, इप्टा के जिला अध्यक्ष महेंद्र सिंह, प्रदीप माथुर, देवेंद्र शर्मा, मोहन लाल गुप्ता, एमएमएसवीएस के अनूप दायमा, सृजक संस्थान के रामचरण राग, शहीद भगत सिंह समारोह समिति के जोगेंद्र सिंह कोचर, प्रमोद मलिक, प्रोफ़ेसर रमेश बैरवा, प्रोफ़ेसर मीनेश जैन, अर्थ अग्रवाल तथा प्रगतिशील लेखक संघ दिल्ली के अतिरिक्त सचिव ज्ञानचंद बागड़ी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन किया डॉ भरत मीणा ने। कार्यक्रम की विशेषता रही कि इसमें काफी संख्या में बच्चे भी उपस्थित थे और उनका उत्साह देखते ही बनता था।

29 सितम्बर 2023, शुक्रवार :
ढाई आखर प्रेम राष्ट्रीय पदयात्रा के राजस्थान राज्य के दूसरे दिन की यात्रा मोती डूँगरी, जहाँ सैयद बाबा की मज़ार और हनुमान मंदिर एक साथ हैं, से शुरू हुई। लिटिल इप्टा पीपाड़ के बच्चों ने नाटक ‘सद्भावना’ प्रस्तुत किया। मोती डूँगरी के विषय में जीवन सिंह मानवी ने जानकारी प्रदान की। मोती डूँगरी से निकलकर नेहरू गार्डन पहुँचकर अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद को श्रद्धासुमन अर्पित किये गये। वहाँ से विवेकानंद स्मारक, भगत सिंह सर्कल, आम्बेडकर सर्कल, तुला राव सर्कल, हसन खाँ मेवाती पेनोरमा होते हुए भर्तृहरि पैनोरमा, झोली दूब और लालदास मंदिर पहुँची।

लालदास मंदिर में भोजन के उपरांत लिटिल इप्टा पीपाड़ ने नाटक ‘महँगाई की मार’ प्रस्तुत किया। छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली की टीम ने नाचा-गम्मत शैली में नाटक प्रस्तुत कर प्रेम और सौहार्द्र का सन्देश दिया। जगदीश शर्मा और उनकी टीम ने लालदास और सूरदास संवाद की महत्ता और राजहंस शर्मा ने लाला लाजपतराय के माध्यम से देश प्रेम का संदेश दिया। इस अवसर पर एडवा की उपाध्यक्ष काजल ने लोकनृत्य प्रस्तुत किया। इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने लालदास के बारे में विस्तार से बताया।

इससे पूर्व आयोजित सभा में इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने सामाजिक कार्यकर्ताओं व कलाकारों को संगठित संघर्ष करने का आह्वान किया। प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने पंजाब की संस्कृति में समाहित प्रेम की भावना को बुल्ले शाह की रचनाओं के माध्यम से साझा संस्कृति के महत्व को रेखांकित किया। प्रोफेसर शम्भू गुप्त ने जन-आंदोलन में आधुनिक साधनों व विधाओं के इस्तेमाल पर बल दिया। भारत परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र क्रांतिकारी ने यात्रा के विभिन्न पड़ावों की कार्य-योजना प्रस्तुत की। प्रगतिशील लेखक संघ दिल्ली के अध्यक्ष ज्ञानचंद बागड़ी ने ग़ज़ल सुनाई। इस अवसर पर लाइफ सेवर टीम ने मूलचंद जांगिड़ के नेतृत्व में यात्रा के धोली दूब पड़ाव की व्यवस्थाओं और भोजन का प्रबंध किया।

पदयात्रा लालदास मंदिर से शाम पाँच बजे निकलकर ठेकड़ा गाँव पहुँची। सरपंच ताराचंद द्वारा राजकीय माध्यममिक स्कूल में व्यवस्था की गई थी। यहाँ निसार अली और साथियों द्वारा गमछे पर केन्द्रित नाअ्य-प्रस्तुति दी गई। जनगीत ‘राहों पर नीलाम हमारी भूख नहीं हो पाएगी’ गाया गया। बिहार इप्टा के सदस्य और वर्तमान में भारत परिवार तथा एबीपी न्यूज़ मधुबनी के सुमन सौरभ ने ‘हम होंगे कामयाब’ गीत गाया। पीपाड़ इप्टा द्वारा नाटक ‘मशीन’ का मंचन किया गया। ठेकड़ा गाँव के सरपंच को प्रसन्ना द्वारा गमछा ओढ़ाया गया।

यात्रा में नाट्य निर्देशक वेदा राकेश, इप्टा के राष्ट्रीय सचिव शैलेन्द्र कुमार, संयुक्त सचिव अर्पिता श्रीवास्तव तथा वर्षा आनंद, अवधेश कुमार, जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी, सामाजिक कार्यकर्ता हरिशंकर गोयल, सृजक संस्थान के रामचरण राग, जलेस अलवर के सचिव भरत मीणा, एडवा की उपाध्यक्ष रईसा, भारत परिवार की सरिता भारत, इप्टा के जिला अध्यक्ष महेंद्र सिंह, प्रदीप माथुर, देवेंद्र शर्मा, मोहन लाल गुप्ता, कांति जैन, संदीप शर्मा, मीनेश जैन, किशन खरालिया आदि उपस्थित थे।

जनवादी लेखक संघ राजस्थान के अध्यक्ष जीवन सिंह मानवी ने अलवर के स्थानों का ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व प्रतिपादित करते हुए 28 और 29 सितम्बर को की गयी यात्रा पर अपनी टिप्पणी भेजी है –

देश के कुछ संस्कृतिकर्मियों ने, खासतौर से राष्ट्रीय भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा ने एक सांस्कृतिक अभियान के तौर पर पूरे देश के विभिन्न अंचलों में “ढाई आखर प्रेम“ शीर्षक से एक सांस्कृतिक सद्भाव यात्रा की शुरुआत की है। इसी क्रम में कल शहीद-ए-आजम भगतसिंह के जन्मदिन 28 सितंबर से राजस्थान के पूर्वी द्वार अलवर से इसकी शुरुआत हुई । उल्लेखनीय है कि अलवर आज से नहीं, पिछली पांच सदियों से भी अधिक समय से एक मिलीजुली संस्कृति का अंचल रहा है।आज भी है। मध्यकाल में यह खूब फली फूली।भक्ति आंदोलन ने इसको व्यापकता और गहराई दोनों दीं। जिससे यहां एक मेव परिवार में लालदास जैसा संत पैदा हुआ, जिसने हिंदू-मुस्लिम धर्मों से अलग एक इंसानियत प्रधान धर्म चलाया – उन्होंने कहा – दोनू दीनन सू जायगौ, लालदास कौ साध।

 

आधुनिक काल में भी इसका एक शुरुआती लोकतांत्रिक संस्कृति की तरह विकास हुआ लेकिन धीरे-धीरे पिछले कुछ सालों से देश की जनता को धार्मिक तौर पर विभाजित कर उन संकीर्ण एवं संकुचित विषाणुओं ने इस पर हमला किया है, जो सत्ता हासिल करने के लिए इस तरह के हथकंडों को काम में लाता है।इस तरह की नफ़रत पर आधारित राजनीति को सद्भाव की गांधीवादी संस्कृति से ही दूर किया जा सकता है। इसी क्रम में आज अलवर में दूसरे दिन की यात्रा की शुरुआत मोती डूंगरी पर स्थित सैय्यद बाबा की मज़ार और हनुमान मंदिर जैसे संयुक्त परिसर से सुबह सात बजे हुई। उल्लेखनीय है कि इसमें यहां के स्थानीय सांस्कृतिक मंच जैसे जनवादी महिला समिति, जनवादी लेखक संघ, सृजक संस्थान, भारत परिवार आदि अलवर इप्टा के साथ सहयोग करते हुए इसमें भागीदारी कर रहे हैं।

 

आज यह यात्रा शहीद चन्द्रशेखर, विवेकानंद स्मारक , अंबेडकर चौराहा, राव तुलाराम पर स्थित प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करती हुई हसनखां मेवाती पेनोरमा और राजर्षि भर्तृहरि पेनोरमा से होती हुई धौली दूब गांव स्थित संत लालदास के मंदिर तक पहुंची। यहां छत्तीसगढ़ नाचा के कलाकारों ने एक नाटक का मंचन किया।इस यात्रा का नेतृत्व राष्ट्रीय इप्टा अध्यक्ष और कर्नाटक निवासी श्री प्रसन्ना कर रहे हैं। इस जत्थे में महिलाओं की भागीदारी बेहद उत्साहवर्धक है। जोधपुर के पीपाड़ कस्बे के बाल नाटककारों की टीम का उत्साह देखने लायक है। जोधपुर, जयपुर के कलाकारों का भी इसको पूरा सहयोग मिल रहा है। अलवर में इसका संयोजन और संचालन अलवर इप्टा सचिव डा सर्वेश जैन, जनवादी महिला समिति की नेता रईसा,और अलवर जलेस इकाई के सचिव डा भरत मीना कर रहे हैं।यह यात्रा तीन दिनों तक आसपास के गांवों में सद्भाव वार्ता और नाट्य-मंचन तथा वहीं रात्रि विश्राम कर 2 अक्टूबर को अलवर वापस आयेगी।

28 सितम्बर 2023 से अलवर राजस्थान से शुरु हुई राष्ट्रीय सांस्कृतिक सद्भाव यात्रा ‘ढाई आखर प्रेम’ इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना जी के नेतृत्व में पूरे जोश खरोश के साथ अलवर के आसपास के ऐतिहासिक गाँवों से होकर 02 अक्टूबर को समाप्त हुई। खुशी की बात यह है कि इसमें हर रोज़ अलवर के बाहर से आने वाले कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि इसका मूलभूत इंतज़ाम स्थानीय ग्रामवासियों ने प्रसन्नतापूर्वक किया। इस तरह की गतिशील सामूहिक सांस्कृतिक मुहिम एक छिपे हुए सत्य को उद्घाटित करने का काम करती है कि लोग प्रेम और सद्भाव के साथ ही रहना चाहते हैं।

30 सितम्बर 2023, शनिवार:
29 सितंबर 2023 की रात ग्राम ठेकड़ा में रात्रि-विश्राम किया गया और 30 की सुबह सरपंच ताराचंद जी के साथ गाँव के वरिष्ठ नागरिकों तथा समस्त पदयात्रियों ने प्रभात फेरी की। उसके बाद पदयात्रियों को चाय-नाश्ता करवाकर भाईचारा और अमन के नारे लगाते हुए उन्हें गाँव से विदा किया गया।

तीसरे दिन का अगला पड़ाव था चरणदास की मज़ार। ठेकड़ा गाँव से सुबह निकलकर जत्था गाँव डेहरा के चरणदास मंदिर पहुँचा। डेहरा गाँव के संत चरणदास की जन्मस्थली है। वहाँ मंदिर बनाया गया है। चरणदास ने समाज में सदभाव स्थापित करने के लिए काफी काम किये। हाल में 18 सितंबर को उनकी 321वीं सालगिरह पर मेला लगा था। डेहरा ग्राम के सरपंच भीम सिंह जोनवाल ने जत्थे का स्वागत किया। नाश्ते के बाद पहले सत्र में गाँव के वरिष्ठ लोगों के साथ ‘ढाई आखर प्रेम’ जत्था के उद्देश्य पर चर्चा की गई। सभी ने कहा कि आज के दौर में प्रेम और भाईचारा सामाजिक सद्भाव के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक हथियार है। इसी के साथ मंदिर में एकत्र हुई नरेगा में काम करने वाली लगभग 30 महिलाओं के साथ संवाद हुआ। उन्होंने चरणदास के तीन भजन सुनाए तथा उनका अर्थ भी समझाया। उसके बाद लोकनृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें इप्टा की अर्पिता भी खुशी से शामिल हुई। इन गीतों में लोक-भक्ति की बयार बह रही थी और मानव-कल्याण पर बल दिया गया था। छत्तीसगढ़ के निसार अली और साथियों ने ‘गुरु के बाना’ गीत गाया और उसके बाद जेंडर आधारित गीत ‘पापी हो गए नैना तेरे’ प्रस्तुत किया।

शाम साढ़े चार बजे यहाँ से निकलकर लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित गाँव अमृतबास (रूँदशाहपुर) पहुँचे। यह पूरा गाँव अनुसूचित जाति (जाटव) का है तथा चारों ओर से अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। वैसे पूरा अलवर जिला ही अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित है। वहाँ दर्शकों में बच्चे, युवा, प्रौढ़ और वृद्धजन महिलाओं के साथ शामिल थे। भारत परिवार के वीरेन्द्र क्रांतिकारी ने ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा का संक्षिप्त परिचय दिया। पीपाड़ सिटी (जोधपुर) से आए प्रवीण शर्मा व रविन्द्र कुमार के निर्देशन में लिटिल इप्टा के बच्चों द्वारा नाटक ‘सद्भावना’ प्रस्तुत किया गया। साथ ही छत्तीसगढ़ के नाचा-गम्मत थियेटर ग्रुप के निसार अली के निर्देशन में देव नारायण साहू, गंगाराम साहू, जगनूराम ने लघु नाटिका और गीत प्रस्तुत कर सद्भावना और आपसी भाईचारे का संदेश दिया। गाँव की लड़कियों ने दो राजस्थानी लोकनृत्य प्रस्तुत किये। ग्राम अमृतवास में जत्थे ने रात्रि-विश्राम किया।

यहाँ कार्यक्रम के अंत में एक घटना घटित हुई। दर्शकों की भीड़ में एक बाबा बैठे थे, उन्होंने प्रसन्ना से उनकी जाति पूछ ली। प्रसन्ना ने जब उनसे बात की तो वे कुतर्क करने लगे और बात सुनने को तैयार नहीं थे। जब प्रसन्ना उन्होंने प्रसन्ना की बात नहीं सुनी, तो प्रसन्ना वहीं पर उपवास पर बैठ गए, प्रसन्ना ने भोजन नहीं किया। अन्य सभी गाँव वालों ने यात्रा के सभी साथियों को समझाया कि हर गाँव में एक-दो लोग इस तरह के होते ही हैं, आप लोग खाना खाएँ। यात्रा के अन्य साथियों ने वहाँ खाना खाया, बहुत मन से गाँव वालों ने खीर, पूड़ी, सब्जी बनाई थी।

तीसरे दिन की पदयात्रा में इप्टा के साथियों के अलावा भारत परिवार जिला अध्यक्ष जस्सू फौजी और जैनब सिद्दिकी, फातिमा शेख लखनऊ से तथा सुमन सौरभ पटना से शामिल हुए। राजस्थान से किशन खेरलिया, हर्षिता विकास कपूर, प्रवीण शर्मा, शफी मोहम्मद तथा अन्य साथी मौजूद रहे।

01 अक्टूबर 2023, रविवार:
सुबह सवा छै बजे पदयात्रियों का काफिला रूँदशाहपुर के पास स्थित पहाड़ी में स्थित चूहड़सिद्ध मज़ार-मंदिर जा पहुँचा। चूहड़सिद्ध बकरी चराने वाले ऐसे मेव (मुस्लिम) बाबा थे, जिन्हें सभी सम्प्रदायों के लोग मानते हैं। वे तमाम श्रम करते लोगों में प्रेम और सद्भाव का संदेश फैलाते रहे हैं। हर धर्म-सम्प्रदाय के लोग उनके अनुयायी हैं। मज़ार के भीतर छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली ने नज़ीर अकबराबादी की नज़्म ‘रोटियाँ’ प्रस्तुत की।
ग्रामीणों से संवाद करते हुए इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना ने कहा कि हमें खादी के स्वावलंबन और उसके प्रति प्रेम को समझना होगा। प्रेम और भाईचारे को अपनाने के लिए उन्होंने कबीर, रैदास, मीरा के विचारों को आत्मसात करने की सलाह दी।

यहाँ नाश्ता करने बाद पहाड़ी से नीचे उतरे और खेतों और पगडंडियों से चलते हुए लगभग 4 घंटे के बाद मंगलबांस गाँव होते हुए ग्राम पंचायत हाजीपुर पहुँचे, जहाँ एक सरकारी स्कूल में भोजन, विश्राम तथा गाँव वालों से बातचीत की व्यवस्था की गयी थी। सरपंच ताराचंद, भूमिराम गुर्जर, जिला परिषद सदस्य ओमप्रकाश, सामाजिक कार्यकर्ता अनूप दायमा तथा शिक्षक शिवराम ने राजस्थानी परम्परा का निर्वाह करते हुए जत्थे के सभी साथियों का साफा पहनाकर सम्मान किया।

सरपंच ताराचंद, जिला परिषद सदस्य ओमप्रकाश तथा सामाजिक कार्यकर्ता अनूप दायमा से गाँव और आसपास चलने वाली गतिविधियों के साथ नागरिक अधिकारों के लिए ग्रामीणों के एक साथ खड़े होने की कहानी के बारे में पता चला कि किसतरह हाजीपुर ग्राम पंचायत के सदस्यों ने सरपंच के साथ मिलकर पहाड़ों पर पशुओं को चरने से रोकने के लिए वन विभाग द्वारा लगाई जा रही फेंस के खिलाफ गाँववालों को एकजुट किया था।

दोपहर को सरपंच ने भी पदयात्रियों के साथ डडीघर में भोजन किया। ‘ढाई आखर प्रेम’ से संबंधित पदयात्रियों के अनुभवों पर दूसरे सत्र में चर्चा की गई तथा उनके अनुभव वीडियो रिकॉर्ड किये गये। इसमें पीपड़ से आए बच्चों सोनू, सुखदेव, जयकिशन, सुमित, रुद्र, ललित, युवराज, रामकिरण और राजवीर के अलावा अलवर से आए बच्चे गूँजन उर्फ़ बूँद और संकल्प विशेष रूप से शामिल थे। अन्य सभी पदयात्रियों ने भी अपने-अपने विचार और अनुभव प्रकट किये।

बीच में बाला डेहरा में बंजारा बस्ती में अनेक बंजारा महिलाओं से बातचीत हुई। सर्वेश जैन और अर्पिता को देवरानी-जेठानी लाड़ो और जाई ने बताया कि, उन्होंने सड़क और पानी की मांग की है। तमाम कागज जमा कर दिये हैं। वहीं दूसरी ओर प्रसन्ना ने लगभग ब्यानबे वर्षीय (अनुमानित उम्र, क्योंकि भारत के विभाजन के समय वे 15-16 वर्ष के रहे होंगे, उन्होंने बताया) आस मोहम्मद से बातचीत करते हुए बंजारा जनजाति के बारे में बताया, घुमंतू बंजारा जाति का यह पुनर्वसन केन्द्र है। वे भेड़े लेकर घूमते थे पर अब यहाँ बस गए हैं। महिलाओं ने जो गहने पहने हैं, वे बहुत अनूठे हैं। ये एल्यूमीनियम के हैं, जिन्हें महिलाएँ खुद बनाती हैं।

यात्रा शाम को पाँच बजे निर्वाण वन फाउंडेशन पहुँची, जहाँ बोधिसत्व निर्वाण जी ने पदयात्रियों का स्वागत किया। यह फाउंडेशन नट और कंजर समुदाय में शिक्षा का काम करता है। अपने परिसर में वैकल्पिक स्कूल चलाता है, जिसमें कक्षा एक से लेकर आठ तक पढ़ाई होती है। इस अवसर पर बोधिसत्व जी ने विश्वास व्यक्त किया कि ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा देश में आपसी सौहार्द्र एवं प्रेम की भावना बढ़ाने में कामयाब होगी। यह एक सराहनीय पहल है। उन्होंने कहा कि, गौतम बुद्ध और कबीरदास ऐसे क्रांतिकारी संत रहे हैं, जिन्होंने समाज को जड़ता से बाहर निकालकर अहिंसा, प्रेम और सौहार्द्र का संदेश दिया, युवाओं को उनके विचारों को अपने जीवन में उतारना चाहिए। छत्तीसगढ़ के साथी निसार अली ने यात्रा में सम्मिलित बच्चों को ‘ले मशाले चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के’ जैसे कई गीत यात्रा के दौरान सिखाए।

यहाँ शाम छै बजे से सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ हुईं, जिसमें निसार अली, गंगाराम, जगनूराम और देवनारायण साहू द्वारा प्रहसन ‘गमछा बेचैया’ प्रस्तुत किया गया। मधुबनी से आए सुमन सौरभ ने स्वरचित ‘किसान की व्यथा’ नाटक की एकल प्रस्तुति दी। उत्तराखंड से आई अनिता पंत ने लोकनृत्य और गीत सागर ने गीत प्रस्तुत किया। ये तीनों साथी भारत परिवार से जुड़े हुए हैं और ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा में सहभागी होने आए थे। लिटिल इप्टा पीपड़ के बच्चों ने ‘सद्भावना’ नाटक प्रस्तुत किया। इस दिन की अंतिम प्रस्तुति थी तिलकराम और साथियों द्वारा कबीर-गायन की।

चौथे दिन यात्रा में राजस्थान जत्थे की संयोजक सर्वेश जैन, इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना, संयुक्त सचिव अर्पिता, राजस्थान के महासचिव संजय विद्रोही, इप्टा अलवर के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह, भारत परिवार के अध्यक्ष वीरेन्द्र क्रांतिकारी, लखनऊ की जैनब सिद्दिकी, उत्त्राखंड की अनिता पंत, बिहार के सुमन सौरभ, छत्तीसगढ़ के नाचा-गम्मत कलाकार निसार अली, देव नारायण साहू, गंगाराम साहू, जगनूराम, एडवा राजस्थान की उपाध्यक्ष रईसा, एडवा अलवर की कोषाध्यक्ष मंजू मीणा, जनवादी लेखक संघ अलवर के सचिव भरत मीणा, सरिता भारत, सुशीला रानी, राहुल जस्सू फौजी, किशनलाल खैरालिया के अलावा पीपड़ लिटिल इप्टा के बच्चे सोनू, सुखदेव, जयकिशन, सुमित, रुद्र, ललित, युवराज, रामकिरण और राजवीर के अलावा अलवर से आए बच्चे गूँजन उर्फ़ बूँद और संकल्प आदि शामिल थे।

02 अक्टूबर 2023, सोमवार:
पाँचवें और अंतिम दिन सुबह 7 बजे यात्रा की शुरुआत निर्वाण वन फाउंडेशन से हुई। यहाँ से पदयात्री 3 किलोमीटर दूरी तय करते हुए अपने पहले पड़ाव रूद्ध माच गाँव में स्थित मत्स्य मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान पहुँचे, जो गांधीवादी साथी वीरेन्द्र विद्रोही और वेद दीदी की कार्यस्थली रहा। वे अलवर के नागरिक मुद्दों और अधिकारों के लिए तत्पर रहते थे। यह जन-विकास और जन-संवाद केन्द्र के रूप में विकसित किया गया है। ये दोनों अब नहीं हैं परंतु उनके काम को अनूप दायमा, वीरेन्द्र क्रांतिकारी और अन्य साथी आगे बढ़ा रहे हैं।

मत्स्य मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान में गांधी जयंती और वायकम सत्याग्रह के सौ बरस पूरे होने पर गांधी जी को याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किये। वेद दीदी और वीरेंद्र विद्रोही को भी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। वहाँ प्रसन्ना ने कहा, गांधी जी सिर्फ राजनीतिक काम नहीं करते थे, वे रचनात्मक कार्यक्रम भी करते जाते थे। यह जुड़ाव बहुत महत्वपूर्ण है। अनूप कुमार दायमा ने भी अपनी बातें कहीं। आपसी संवाद और नाश्ते के बाद यहाँ से अगले पड़ाव की ओर जत्था रवाना हुआ।

इसके बाद पदयात्रा रूद्ध माच गाँव से निकलकर लगभग ढ़ाई किलोमीटर दूर स्थित गाँव रावण देवरा पहुँची। यहाँ जैन मंदिरों के अवशेष मिले, जो अलवर के बीरबल मोहल्ले में स्थित रावण देवड़ा मंदिर में देखे जा सकते हैं। यहाँ एक बड़े बरगद के नीचे बने चबूतरे पर अलवर के रामचरण राग ने ‘ढाई आखर प्रेम’ पर आधारित रचना का गायन किया। प्रदीप माथुर द्वारा एक कविता भी पढ़ी गई। रूद्ध शाहपुर गाँव के बहुरूपिया राकेश ने अपनी कला से सब का मन मोह लिया। जिस दिन हम मिले, वे हनुमान का रूप धारण किये हुए थे। यहाँ रामचरण राग ने ग़ज़ल और गीत सुनाये। वे सृजक संस्थान के सचिव हैं, जो ’ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा में सहयोगी संगठन रहा। वरिष्ठ साथी प्रदीप माथुर, प्रदेश इप्टा के संयुक्त सचिव हैं और अलवर में साहित्य और ललित कला के सचिव भी हैं। पीपाड़ से आये प्रवीण परिमल ने एक ग़ज़ल सुनाई।

इसके बाद यहाँ से यात्रा प्रतापबंध होते हुए घोडा फेर चौराहा से जोतीबा फुले सर्किल पहुँची, वहाँ जोतीबा फुले को श्रद्धा सुमन अर्पित किये गए। वहाँ से यात्रा मनु मार्ग, मन्नी का बड़ होते हुए सैनिक विश्राम गृह के सामने कंपनी बाग़ पहुँची। यहाँ विजन संस्थान की ओर से भोजन का प्रबंध किया गया था। विजन संस्थान के हिमांशु तथा चिंटू गूजर ने सबको भोजन कराया। यहाँ छत्तीसगढ़ की टीम द्वारा नाटक प्रस्तुत किया गया। पीपाड़ (जोधपुर) की टीम ने नाटक ’सद्भावना’ प्रस्तुत किया। पदयात्रा में चलने वाले सभी साथियों का इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष नागेंद्र जैन, राजस्थान जत्था की संयोजक डॉ सर्वेश जैन, वीरेंद्र क्रान्तिकारी, भरतलाल मीणा, नीलाभ पंडित, छंगाराम मीणा, हरिशंकर गोयल, प्रोफ़ेसर शम्भू गुप्ता ने गमछा पहनकर स्वागत किया। ’ढाई आखर प्रेम’ सांस्कृतिक पदयात्रा के अंतिम पड़ाव नगर निगम पहुँचकर महात्मा गांधी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर राजस्थान की पदयात्रा को विराम दिया गया।

राजस्थान में पदयात्रा के आयोजक और सहयोगी संगठन थे – राजस्थान इप्टा, एडवा, भारत परिवार, जलेस, सृजक संस्थान, लाइफ सेवर टीम, विजन संस्थान, एटक, सद्भाव मंच, सीटू, एसएफआई, एम.एम.एस.वी.एस.

यह भी देखें: राजस्थान जत्था फोटो गैलरी

(यह रिपोर्ट अर्पिता श्रीवास्तव, सर्वेश जैन, संजय विद्रोही तथा जीवन सिंह मानवी की रिपोर्टों का संकलन है।
संकलन: ऊषा आठले )

 

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