• सैयद ओबैदुर्रहमान •
‘ढाई आखर प्रेम’ अपने सांस्कृतिक अभियान पर पूरी शिद्दत के साथ निकल पड़ा है। समता, अनुराग, सौहार्द, वात्सल्य और प्रगतिशीलता हमारी ताकत है। यह सांस्कृतिक जत्था या पैदल मार्च 28 सितंबर, 2023 ( शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती) को राजस्थान के अलवर से शुरू हुआ और देश के 22 राज्यों की बहुरंगी संस्कृति, लोक जीवन, साझा विरासत और समरसता को जानते-समझते और अंगीकार करते हुए 30 जनवरी 2024 (महात्मा गांधी की शहादत दिवस) को दिल्ली में संपन्न होगा।
यात्राओं ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है। कोलंबस, हुएनसांग, वास्कोडिगामा, फाह्यान, इब्न बतूता, मार्को पोलो, लीफ एरिक्सन और राहुल सांकृत्यायन सरीखे हजारों घुमक्कड़ न होते तो आज शायद दुनिया का यह स्वरूप नहीं होता। हम विज्ञान और विकास की इन ऊंचाइयों पर नहीं पहुंच पाते।
दुनियाभर में नफरत, वैमनस्य, और तोड़ने-बांटने के इस दौर में ‘ढाई आखर प्रेम’ सिर्फ प्यार बांटने निकला है। इस सांस्कृतिक उत्सव के दौरान हम नाचेंगे, गायेंगे, नुक्कड़ और मंचीय नाटक करेंगे, साहित्य, संगीत और कला के विरसे को आपस में बांटेंगे। हम ‘कबीर’ और ‘महात्मा गांधी’ के पास बैठेंगे और जानेंगे कि राम और रहीम के रंग-रस से बने धागों से ‘झीनी-झीनी सी चदरिया’ कैसे बुनी जाती है। हम हथकरघा से बने गमछे और अन्य वस्त्र भी लोगों के साथ साझा करेंगे। इस यात्रा के दौरान हम कबीर, रसखान, मीरा, सूरदास, तुलसीदास, जायसी, रैदास जैसे संतों, फकीरों, समाज सुधारकों, लोक कलाकारों की मानवीय समृद्ध और उदात्त परंपरा से रू-ब-रू होंगे। हम उनके जन्म और कर्म स्थली तक जाएंगे। हम गांवों और कस्बों में जाएंगे और जंग-ए-आजादी के मतवालों के प्रतीकों को सलाम करेंगे।
‘ढाई आखर प्रेम’ के जत्थे गंगा-जमुनी तहजीब, एकता, भाई-चारे, न्याय, समरसता और सह-अस्तित्व के ताने-बाने को फिर से बहाल करने का प्रयास करेंगे, जो विद्वेष, लालच और अज्ञानता के काले सायों में धुंधला से गए हैं।
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