गौरीकुंज, घाटशिला से लुगु मुर्मू आवासीय जनजातीय विद्यालय भाटिन तक
(7 से 10 दिसंबर, 2023) का यात्रा वृत्तांत
झारखण्ड में ढाई आखर प्रेम की पदयात्रा अपने निर्धारित तारिख 8 दिसंबर से शुरू नहीं हुई, और ना ही 12 दिसंबर को समाप्त ही हुई! 7 दिसंबर को घाटशिला में विख्यात बांग्ला साहित्यकार विभूति भूषण बंद्योपाध्याय के आवास ‘गौरीकुंज’ के तारादास मंच (विभूति भूषण बंद्योपाध्याय के बेटे के नाम पर बना) पर इसके पूर्वरंग और जमशेदपुर के साकची के बिरसा चौक पर 13 दिसंबर को समापन से कहीं अधिक विस्तार इस यात्रा का है. यह यात्रा कृषक प्रधान आदिवासी ग्रामों के बीच से गुजरते हुए राखा माइंस-जादूगोड़ा-भाटिन जैसे मजदूरों के इलाकों से महज़ गुजर नहीं गयी है, इसने अपने पदचापों में कबीर के इस अमर बोल ‘ढाई आखर प्रेम’ की ताकत लेकर अपने गीतों, नाटकों, संवादों के जरिये लंबे समय तक गूंजने और महकने वाला कोई असर भी छोड़ दिया है.
पलामू इप्टा के साथियों के गीतों और जज्बे से भरे आह्वानों ने खेत, रास्ते, घरों की छतों-मुंडेरों और दरवाजों पर खड़े-गुजरते आम जनता को बरबस ठिठका दिया! जब ये बोल उठे कि ‘एकता, समानता, शांति के लिए/ विश्वशांति के लिए… मानवता के लिए / सद्भाव के लिए… साथ जुड़ो, मिलके चलो, मिलके चलो रे…’ या ‘हे हैया हो हैया… हो सावधान/ आया तूफ़ान/ पर दूर नहीं है किनारा… है डर कहीं, कोई डर नहीं/ है भी कहीं, कोई भय नहीं!’ (जिसमें बीच बीच में उपेन्द्र भैया भी जोश से साथ में आवाज़ मिलाते) तो लगातार पदयात्रा करते अथक साथी के साथ ही सुनने वालों का भी हौसला बढ़ जाता.
यह आम मजमा नहीं था. यह यात्रा एक कहानी है, जिसे इसमें शामिल छोटे छोटे साथी आने वाले दिनों में सुनाया करेंगे और प्यार और दोस्ती के संक्रमण की इस दास्तान से भावी पीढ़ी भी उत्तेजित हो जाएगी.
यह कहानी झारखण्ड पड़ाव की यात्रा के पूर्व रंग से शुरू हुआ मान लें, तो इस दिन यानी 7 दिसंबर को दक्षिण तटीय क्षेत्रों में आये चक्रवात के कारण बारिश से घाटशिला और आसपास की जगहें बुरी तरह प्रभावित थीं. पिछली शाम से बरसात की शुरुआत हो गयी थी और सब साथी कार्यक्रम में खलल पड़ने की आशंका से उदास होने लगे थे. 7 दिसंबर को सुबह इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा में देश के अन्य राज्यों में साथ चल रहे रायपुर से इप्टा के वरिष्ठ साथी निसार अली अपने नाचा दल के तीन साथियों – जुगनू राम, देव नारायण साहू और हर्ष सेन के साथ घाटशिला स्टेशन पर उतरने वाले थे. इनकी आगवानी करने शेखर घाटशिला इप्टा के सबसे छोटे साथी स्नेहज के साथ बारिश में भीगकर सराबोर हुए इन्तजार कर रहे थे. ट्रेन करीबन तीन घंटे से विलम्ब होकर आखिरकार पहुंच रही थी. प्लेटफ़ॉर्म पर निसार भैया गर्मजोशी से मिले. रेल यात्रा (देरी सहित) तो छोड़िये, पहले के राज्यों में निरंतर यात्रा की कोई थकावट उनके चेहरे या भंगिमा में नहीं थी! बारिश को लेकर उन्होंने भी चिंता जाहिर की. जल्द ही उन्हें ठिये पर पहुँचाकर इन पंक्तियों का लेखक वापस तैयारियों में जुट गया. गौरीकुञ्ज में वरिष्ठ रंगकर्मी और इप्टा के साथी सुजन सरकार तैयारियों को देखने मौजूद हो गये थे. उन्होंने मंच पर फ्यूज़ हुए बल्ब को बदलने से लेकर कुर्सियां सही समय तक बिछ जांय, इसका पूरा ख्याल रखा. शाम को पारम्परिक वेश में उहें तुम्दा बजाकर सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में भागीदारी करनी थी.
बारिश दोपहर को फिर बढ़ गयी. आसमान स्याह बादलों की मोटे नम लिहाफ में छुपा था. हवा के साथ सिहराती ठंडी बढ़ती जा रही थी. लेकिन पूर्वरंग के लिए नियत समय पर पलामू इप्टा के साथी, जमशेदपुर के साथी पहुँच गये. राँची से कई महत्वपूर्ण साथियों के पहुँचने की सूचना थी. इतनी बारिश और ठंड में गांववालों के जुटने पर शंका होने लगी थी, लेकिन आख़िरकार ग्रामीण महिलाएं और बच्चे आ जुटे थे. स्थानीय साथियों में आई सी सी वर्कर्स यूनियन के महासचिव कॉमरेड ओम प्रकाश, अध्यक्ष कॉम. वीरेन्द्र सिन्ह्देब, गौरीकुंज उन्नयन समिति के अध्यक्ष तापस चटर्जी, जिनके पूरे सहयोग से पूर्वरंग का आयोजन संभव हुआ था, आदि आ बैठे थे. कार्यक्रम में रास्ते में भारी बारिश के व्यवधानों से जूझते राँची से प्रलेस झारखण्ड के महासचिव मिथिलेश, कथाकार रणेंद्र, चित्रकार डॉ. भारती प्रख्यात लोक गायक पद्मश्री मधु मंसूरी, राष्ट्रपति पदक प्राप्त वृतचित्र फिल्मकार बीजू टोप्पो भी आ पहुँचे.
गौरीकुंज में विभूति भूषण बंद्योपाध्याय की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ. संचालन घाटशिला इप्टा की चन्द्रिमा चटर्जी ने किया. आगाज़ करते हुए पारंपरिक परिधान में सजे धजे घाटशिला इप्टा के साथियों – गणेश मुर्मू, मल्लिका, गीता, मानव, ज्योति, चन्द्रिमा और शेखर ने अर्पिता के साथ यात्रा के थीम गीत “ढाई आखर प्रेम रे साधो!” गाया. पारम्परिक वाद्य यंत्र ‘बानाम’ के साथ इप्टा घाटशिला के अध्यक्ष गणेश मुर्मू, वरिष्ठ साथी सुजन सरकार तुम्दा, साथी कार्तिक हारमोनियम, मानव नाल और रंगकर्मी दिलीप सरकार घंटे के साथ संथाली गीतों – “बेरेद बेरेद बेरेद मेसे हो’” (जागो जागो इंसान) और झूमते हुए लोकगीत “आले ले ले दिशोम” की प्रस्तुति की. गणेश मुर्मू ने स्वरचित यात्रा गीत “ढाई आखर दुलड़” को बानाम के साथ गया. शेखर ने धन्यवाद करते हुए यात्रा के बारे में और तैयारियों में गाँवों की जनता से मिलने वाले उत्साहपूर्ण सहयोग के बारे में बताया और इस प्यार को यात्रा का हासिल के रूप में पाने की कामना की.
इस बीच मधु मंसूरी ने अपने दो प्रसिद्ध गीत सुनाये – ‘गाँव छोड़ब नहीं’ जिस पर ग्रामीण बच्चे भी साथ में दोहराते दिखे और ‘मुझे काम नहीं’ सुनाया. अन्य के साथ उनकी मौजूदगी से शाम समृद्ध और यादगार हो गयी थी.
निसार अली ने अपने दल के साथ नाचा गम्मत की छोटी सी प्रस्तुति दी – ढाई आखर प्रेम, जिसे मौजूद सभी ने, खासकर जिन्होंने पहली बार देखा, प्रभावित हुए. बच्चों ने लुत्फ़ उठाया. तापस चटर्जी, प्रभात ख़बर के स्थानीय प्रतिनिधि अजय पाण्डेय, रणेंद्र, डॉ. भारती, बीजू टोप्पो, मधु मंसूरी, जलेस के राष्ट्रीय सचिव प्रो. अली इमाम खान, जमशेदपुर की नाट्य संस्था ‘पथ’ के प्रमुख मो. निज़ाम, कॉम. वीरेन सिन्हदेब, जलेस, जमशेदपुर के अशोक शुभदर्शी आदि कई साथियों को ‘ढाई आखर प्रेम’ गमछा ओढ़ाकर सम्मानित किया गया और उनके सहयोग के लिए आभार प्रकट किया गया.
वरिष्ठ कथाकार रणेंद्र ने अपने सम्बोधन में कहा कि मैं और तुम में बाँटा जाने की शुरुआत से ही समाज में फर्क पैदा होना शुरू होता है. हमें मनुष्य ही नहीं पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं से भी प्रेम की बात करनी चाहिए.
सर्दी के मारे कलाकारों और उपस्थित सबलोगों के लिए उपेन्द्र भैया, जो अपने साथ भोजन-पानी की पूरी तैयारी लेकर चल रहे थे कि कहीं प्रतिकूल स्थिति हुई और चाय-नाश्ता-भोजन नहीं मिला तो यात्रियों को परेशानी नहीं होगी, (और ऐसा यात्रा में कुछ जगह जब हुआ भी तो वे तुरंत चाय-नाश्ता, पकौड़ी, चने, सत्तू, और भोजन तैयार कर यात्रा दल में जान फूंके रहे) ने झट नींबू वाली चाय बनाई और सबने राहत पाई.
पूर्वरंग में तारादास मंच पर यहीं बांग्ला भाषा सिखाने के लिए लगने वाली नि:शुल्क कक्षा ‘अपूर पाठशाला’ के बच्चे – बच्चियों शुभाशीष मंडल, संजना मंडल, बबीता प्रधान, रिया मंडल और स्वीटी बारीक ने सलिल चौधरी के क्रांतिकारी जनगीत “पोथे इबार नामो साथी” पर ज्योति मल्लिक की देखरेख में तैयार किया नृत्य पेश किया.
तापस चटर्जी ने अविभूत होते हुए शुभकामना में कहा कि प्रेम के संदेश को लेकर चलने वाली यह यात्रा सफल हो. प्रो. अली इमाम खान, मिथिलेश आदि ने भी सभा को सम्बोधित किया. शैलेन्द्र ने कहा कि, “मुहब्बत की वज़ह से दुनिया अस्तित्वमान है. हम इसी मोहब्बत की रक्षा करना चाहते हैं. हमारा पैगाम है मोहब्बत, जहाँ तक पहुँचे…. हम मोहब्बत के इस पैगाम को लेकर हाज़िर हैं.” जमशेदपुर से साइंस सोसायटी के डी एन एस आनंद, पथ की कलाकार छबी और अन्य युवा कलाकार, हीरा अरकने, शशि कुमार, अहमद बद्र, अर्पिता श्रीवास्तव, अंकुर (जिन्हें यात्रा की फोटो – वीडियो के रूप में दस्तावेजीकरण करने की जिम्मेवारी थी), डाल्टनगंज से शैलेन्द्र, पंकज श्रीवास्तव, मृदुला मिश्रा, भोला. अभिनव, प्रेम प्रकाश, शशि पाण्डेय, अरमान, गोपालपुर पंचायत के सुकलाल हांसदा और दाहिगोड़ा गाँव के स्त्री पुरुष और बच्चे प्लास्टिक की झुलती हुई बड़ी सी पन्नी (तिरपाल की तरह) के आसरे में ठंडी और बारिश में भी पूर्वरंग का यह कार्यक्रम जमकर देख रहे थे.
बारिश के कारण गौरीकुंज से आई सी सी वर्कर्स यूनियन के दफ्तर, जहाँ यात्रा पूर्वसंध्या का ठहराव था और जहाँ के कॉमरेड बासुकी मंच से अगले दिन सुबह यात्रा के पहले क़दमों शुरुआत होनी थी, तक रंग जुलूस की शक्ल में लौटना रद्द करना पड़ा.
आई सी सी वर्कर्स यूनियन में जत्था आकर रुका और रात के भोजन के रूप में लिट्टी – चोखा की तैयारी थी. इसे इप्टा घाटशिला की महिला साथियों कविता सीट, संगीता हेम्ब्रम, आकांक्षा सीट के साथ सचिव ज्योति की माताजी भवानी देवी ने अध्यक्ष गणेश मुर्मू के बगीचे में दोपहर से बनाना शुरू किया था. साथ में पकौड़ी और चाय भी थी. लिट्टी चोखा साथियों को बहुत भला लगा. छोटे साथी स्नेहज ने लिट्टी चोखा परोसने की जिम्मेदारी खुद ही ले ली थी! वर्कर्स यूनियन के हाल में यात्रा के साथियों के सोने का इंतजाम गद्दे, तकिया वगैरह के साथ किया गया था. पूर्व रंग की ठंडी और भीगी रात में गप्पें, आने वाले दिन की तैयारी की बातों के साथ देर तक सब साथ रहे. बारिश अब रुक चुकी थी.
ढाई आखर प्रेम पदयात्रा की शुरुआत तय तारिख 8 दिसंबर को शुरुआत हुई. मऊभंडार स्थित आई सी सी मज़दूर यूनियन ऑफिस के प्रांगण में कॉमरेड बासुकी मंच से निसार अली की प्रस्तुति के साथ आगाज़ किया गया. पलामू इप्टा के जनगीतों साथ कांरवा बढ़ा. सभी एकजुट हो गये थे और बारिश बंद होने से उत्साह बढ़ गया था. यात्रा के साथियों के साथ कॉम. ओम प्रकाश सिंह, कॉम. बीरेंद्र सिंह देब, कॉम. महमूद अली, सुशांत सीट, इप्टा घाटशिला के प्रेस मिद्या प्रभारी रवि प्रकाश सिंह, कॉम. विक्रम कुमार, संयुक्त नाट्य कला केंद्र के अध्यक्ष रंगकर्मी सुशांत सीट सहित अनेक लोगों ने यात्रा की शुरुआत में अपनी भागीदारी की और पहले पड़ाव तक चले.
पहला पड़ाव धरमबहाल पंचायत चुनुडीह गाँव में हुआ. मुखिया बनाव मुर्मू और माझी मुकेश मुर्मू आदि ने जत्थे के कलाकारों का स्वागत किया. गणेश मुर्मू के संथाली गीत ‘ढाई आखर प्रेम द चेदे काना/ मनमिया मनमिया दुलड़ काना’ सुनाया. इप्टा झारखण्ड के संरक्षक मधु मंसूरी के गीत गूंजे. चुनुडीह के ग्रामीणों ने भी धमसा तुम्दा बजाकर और लोकगीत नाच कर अपना प्रदर्शन किया, जिसमें यात्रा के साथी भी सहज ही शामिल हो गये. हाथों में हाथ डाले मिथिलेश, मृदुला मिश्रा, डॉ. भारती और अन्य साथी स्थानीय ग्रामीण महिलाओं संग खूब नाचे.
सुबह से बारिश के आसार ख़त्म हो ही चुके थे और अब धूप निकल आई. चाय और मुढ़ी के नाश्ते की व्यवस्था की ग्रामीणों द्वारा की गयी थी. साथियों ने सहर्ष खाया. इसके बाद ख़ुशी की बात थी कि यहाँ के ग्रामीण कुछ दूर तक साथ चलकर यात्रा में शामिल भी हुए. स्थानीय महिलाएं अपनी भाषा में गीत भी गाकर चल रही थीं.
यात्रा में रणेंद्र (जिन्हें आकर्षक संथाली धोती – फूटा धोती बेहद पसंद आ गयी थी और वे अपने लिए एक लेने का आग्रह कर चुके थे), अहमद बद्र, मिथलेश सिंह, शैलेन्द्र, कॉमरेड शशि कुमार, जलेस के कवि साथी अशोक शुभदर्शी, पंकज श्रीवास्तव, डीएनएस आनंद, शादाब, पद्मश्री मधु मंसूरी, छत्तीसगढ़ नाचा के कलाकार निसार अली के नेतृत्व में देवरानारायण साहू, नाल वादक जगनू राम, छत्तीसगढ़ी ‘परी नाच’ करने वाले महिला नर्तक ऋतु के रूप में युवा हर्ष सेन, वृत्तचित्र फ़िल्मकार बीजू टोप्पो अपने कैमरे के साथ, घाटशिला इप्टा के गणेश मुर्मू, ज्योति, मल्लिका, गीता, मानव, मल्लिका, शेखर और डाल्टनगंज के इप्टा के साथी कलाकार गीत संगीत के साथ चल रहे थे.
हाइवे को पार कर बतकही और आसपास के दृश्यों को देखते जत्था एदेलबेड़ा गांव होते हुए दोपहर झांपड़ीशोल गांव पहुंचा. रास्ते में ग्रामीण सौन्दर्य भरा था. पेड़ों पर फूल थे, जिनको महिला साथियों ने अपने उल्लासपूर्वक जुड़े में लगा भी लिया था, मिट्टी के घरों की दीवारों पर आकर्षक चित्रकारी, अमरुद और आंवले से डालियाँ भरे पेड़… बस एक ग्लानी यह थी कि हाल की बारिश ने खेतों की फसलों को बेरहमी से मार डाला था. झांपड़ीशोल में माझी पीतांबर जी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने जत्थे के आगमन पर पारंपरिक रूप से स्वागत किया. लोटे में जल लेकर पैर धोने को दिया और वाद्ययंत्र बजाकर अगवानी की. घाटशिला के साथी यात्रा की तयारी के समय से जानते थे कि, झांपड़ीशोल गाँव के ग्रामीण यात्रा को लेकर बेहद उत्साहित हैं और उन्होंने अपने पुराने कलाकारों के साथ अपनी प्रस्तुतियों की तैयारी भी कर रखी थी.
शैलेन्द्र के संबोधन के साथ मुख्य आकर्षण मधु मंसूरी ने झारखंड कर कोरा गाकर झुमाया. उन्होंने कहा कि इस विशाल इमली के पेड़ ने उन्हें उनके गाँव के इमली के पेड़ की याद दिला दी है. इस गीत को उनके अनुसार विदेशी धरती, बोस्टन आदि, पर काफी सराहना मिली है. गीत के साथ अर्पिता और ग्रामीण महिलाएं, घाटशिला इप्टा और पलामू इप्टा के साथी, माझी पीताम्बर सोरेन, राम मार्डी, सुशीला टुडू, डॉ. भारती, मृदुला मिश्रा आदि झूम कर पारम्परिक नृत्य में शामिल हो गये. घाटशिला इप्टा के कलाकारों ने संथाली गीत बेरेद बेरेद बेरेद मेसे हो गाया. इसके बाद गांव के प्राथमिक स्कूल में, जहाँ तक पारंपरिक नृत्य वादन के साथ साथी पहुँचे, इप्टा घाटशिला के साथी नाच में साथ देते हुए कदम मिला रहे थे, धमसा, तुम्दा बज रहा था, मानव ने नाल सम्भाल रखी थी, निसार अली के नाचा दल ने स्कूल के बच्चों के सामने खूबसूरत प्रस्तुती दी, जिसका संदेश भी मायने भरा था. इसमें रूपक की तरह यह कथा है कि लालच के कारण हम मुसीबत में पड़ते हैं. शिकारी लालच देता है और चिड़ियाँ जाल में फंस जाती हैं. लेकिन एक ‘लाल’ चिड़िया सायानी होती है, वह अपने साथियों को आगाह भी करती है मगर, वे नहीं मानती और संकट में पड़ती है. तब ‘लाल’ चिड़िया उन्हें चूहे की मदद से आजाद करा देती है. (आगे चलकर निसार भाई ने चूहे के रूप में स्नेहज को किरदार दे दिया था!) ‘लाल चिड़िया’ ही समझदार होती है! वही संकट को पहचानती है और बाकि चिड़ियों की मुक्ति सम्भव करती है. उसके ‘लाल’ होने पर हम इशारा समझकर मुस्कुरा रहे थे. अहमद बद्र ने कहा कि ‘अपनी बात’ कहने का तरीका है!
आगे पुन: इमली के छतनार पेड़ के नीचे (दूसरे दिन राजाबासा गाँव के चौक पर भी एक बड़ा इमली का पेड़ मिला, जिसके नीचे यात्रा ठहरी!) गांव के लोक कलाकारों ने पारंपरिक गीत गाए, जिसमें प्रेमिका प्रेमी के कानूनी पेंच में फंस जाने पर कहती है कि अगर मैं वकील होती तो तुम्हें छुड़ा लेती. और एक अन्य गीत का अर्थ गायक ने बताया कि इसमें सन उन्नीस सौ साठ के दशक में घाटशिला में हुए राँची एक्सप्रेस रेल हादसे का वर्णन है. सिंग सिंगराय शैली के लोक गीत ये वरिष्ठ ग्रामीण कलाकार बुढ़ान सोरेन और सुंदर हेंब्रम सम्भवत: कई वर्षों बाद अपनी कला का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे थे. यही यात्रा का हासिल था. यात्रा के साथी रणेंद्र आदि ने कहा कि किस प्रकार गीतों में इन कथाओं/ स्मृतियों को जीवित रखा गया गया है. युवा रंगकर्मी साथी उर्मिला हांसदा ने सुंदर गीत सुनाया. यहाँ उर्मिला हाँसदा, रामचन्द्र मार्डी, डॉ. देवदूत सोरेन, दो. डी. डी. लोहरा और झूमर कलाकार मनोरंजन महतो आदि जुड़ गये थे. गाँव की महिलाओं के साथ पारंपरिक नृत्य में झारखण्ड इप्टा की महासचिव अर्पिता, इप्टा घाटशिला की साथी कलाकार और अन्य पूरे उत्साह से शामिल हो रहे थे. कला ने मैत्री के रस से सभी को सिक्त कर दिया था. रास्ते में रणेंद्र, मधु मंसूरी आदि गाँवों को लेकर, परम्परागत रहन शान और लोकचारों को लेकर बातचीत करते रहे थे और जिज्ञासाएं प्रकट करते थे. मधु मंसुरी जी ने एदेलबेड़ा पहुँचने पर ‘एदेल’ का अर्थ जानना चाहा तो रणेंद्र जी ने पता लगाया कि इसका अर्थ ‘सेमल’ होता है. कभी यहाँ सेमल के खूब पेड़ रहे होंगे, जिससे गाँव का नाम पड़ा. सखुआ के पेड़ को देखकर मधु जी ने नमन किया. रास्ते के बगल में आते खेत, जलाशयों में गुलाबी, सफेद खिली हुईं कुमुदनी और साफ़ होकर चमकता नीला आसमान, पलामू इप्टा के साथियों के जोशीले गीतों के साथ पैदल चलते जा रहे साथी इस यात्रा के अनुभव को चिरस्थायी बना रहे थे.
गांव में जत्थे को खिचड़ी भोजन कराया गया. इसी समय डॉ. देवदूत सोरेन भी आ जुड़े. साथी पंक्ति में बैठकर नामक-मिर्च के साथ खिचड़ी खाकर तृप्त हुए. गाँव वालों खासकर महिलाओं ने स्वागत की तरह झांपड़ीशोल से विदाई भी पारम्परिक नाच वादन के साथ दी.
इसके बाद यह पदयात्रा बनकाटी, जहाँ निसार अली ने ग्रामीणों के सामने गुजरते रास्ते में ही प्रस्तुति शुरू की. काफी संख्या में ग्रामीण, खासकर महिलाएं और बच्चे वैसे ही साथी प्रेम प्रकाश के माइक पर करते उद्घोषणा कि ‘ढाई आखर प्रेम यात्रा’ आपके गाँव (नाम लेकर) पहुँची है, कई बार बांग्ला में यह करने का दायित्व शेखर ने संभाला, एकत्र हो गये और निसार भाई के संदेश को ग्रहण किया. इसके बाद हेंदलजुड़ी ग्राम के आंबेडकर चौक होते हुए, जहाँ यात्रियों ने चाय पी, पलामू के साथियों ने गीत सुनाये. प्रेम प्रकाश ने मौजूद लोगों को यात्रा का संदेश को बताया. इस बीच यात्रा में गाँधी शांति प्रतिष्ठान के अरविंद अंजुम जुड़े थे, जिन्होंने चलते हुए माइक पर और अंबेडकर चौक पर बांग्ला भाषा में दुनिया में चल रहे घृणा, हिंसा और युद्ध की घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए प्रेम की यात्रा के बारे में बताया. शाम घिर आई थी और अब दिन के आखरी पड़ाव कालाझोर पहुंची, जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम तय हुआ था और यहीं आज जत्था का रात्रि विश्राम होना था.
कालाझोर में कॉमरेड दुलाल चन्द्र ने जत्थे की अगवानी और अन्य व्यवस्था की जिम्मेदारी उठाई थी. स्थानीय कलाकार ने वायलिन पर स्वागत गीत सुनाया. ठंडी की रात जल्द हो चुकी थी, और बीच कार्यक्रम बिजली चले जाने से अंधकार हो गया. फिर भी बैटरी के प्रकाश में निसार अली के दल की, इप्टा घाटशिला के दल की प्रस्तुतियां देखने – सुनने ग्रामीण डटे रहे. गणेश मुर्मू ने संथाली में और शेखर मल्लिक ने यहाँ बांग्ला में यात्रा के बारे में ग्रामीणों को बताया.
कालाझोर में उत्क्रमित विद्यालय में पहले दिन का विश्राम हुआ. ग्रामीणों ने रात्रि भोजन के लिए स्थानीय मैदान में खिचड़ी की व्यवस्था की. यात्रा के साथी थक चुके थे. दिन भर में करीब 12 किलोमीटर की पदयात्रा हो चुकी थी. विद्यालय में हेडमास्टर के सहयोग से दरी उपलब्ध थी, हालाँकि साथी अपने साथ गद्दे, चादर वगैरह लेकर ही चल रहे थे. एक खेद की बात हुई गाँव में रात भर एक पारिवारिक आयोजन में तेज आवाज़ में डीजे बजता रहा, जिससे साथी ठीक से सो नहीं पाए. लेकिन अगले दिन वे उसी उत्साह से यात्रा बढ़ाने के लिए सुबह से ही तैयार हो गये थे.
9 दिसम्बर को राष्ट्रीय सांस्कृतिक पदयात्रा के दूसरे दिन संस्कृतिककर्मियों का जत्था कालाझोर स्कूल से निकलकर खेतों, नाले, सफेद कुमुदनी से पोखर के खूबसूरत रस्ते से होकर राजाबासा पहुँची. सुबह की शानदार धूप में खेतों में स्त्रियाँ काम पर लग गयी थीं. साथ चलते यात्रा के वाहन से प्रचार और गीत की आवाज़ गाँव में गूंजने लगी. एक बहके हुए ग्रामीण के उत्तेजित होने पर अहमद बद्र और उपेन्द्र भैया ने उसे संभाला. बद्र साहब ने उसे शांत कराते हुए कहा कि आपके गाँव आये हैं. आपके साथ बैठकर भात खायेंगे. इस बीच रास्ते में बीजू टोप्पो ने अपने वृत्तचित्र के लिए इप्टा घाटशिला के युवा और बाल कलाकारों मल्लिका, गीता, मानव और स्नेहज से इंटरव्यू कर लिया था. उनके सवालों के अच्छे ढंग से दिए गये उत्तरों के लिए वहाँ मौजूद निसार भाई ने खुश होकर सभी बच्चों को इप्टा का बैच भेंट किया…
अब जत्था में जमशेदपुर लिटल इप्टा के वर्षा, सुजल, रौशनी, करन के साथ प्रशांत भैया, भावी पीढ़ी के कॉमरेड ओम और बरेली के साथी गार्गी सिंह और अंजना भी जुड़े.
राजाबासा गाँव में इमली के बड़े से पेड़ के नीचे खुली जगह जिसे तिराहा कह सकते हैं, पर स्त्री, पुरुषों और बच्चों की भीड़ जुट गयी थी. कॉमरेड दुलाल चन्द्र हांसदा, सिद्धो मुर्मू ने जत्थे का स्वागत किया. जिन्हें ढाई आखर प्रेम गमछा ओढ़ाकर सम्मानित किया गया. जमशेदपुर लिटल इप्टा के बाल कलाकारों वर्षा, सुजल, रौशनी, करन, जिनके साथ प्रेम प्रकाश, रवि भाई और मल्लिका, गीता, मानव, स्नेहज भी जुड़ गये, ने यात्रा का गीत “ढाई आखर प्रेम साधो” जनगीत गाकर शुरुआत की.
यात्रा में चल रहे छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार निसार अली के नेतृत्व में नाचा का नाटक प्रस्तुत हुआ. निसार भाई के जनता से सीधे संवाद करने की खूबी के कारण लोग संदेश को समझ रहे रहे, भले ही छत्तीसगढ़ी और हिंदी भाषा की बोधगम्यता कम हो. इसी असर की बदौलत यह हुआ कि पास के गाँव के युवा ने अपने यहाँ भी जत्थे को आने का न्यौता दिया.
घाटशिला साथियों के द्वारा संथाली गीत प्रस्तुत हुए शेखर ने यात्रा के बारे में बांग्ला में ग्रामीणों से संवाद किया. युवा सरकार किस्कू ने सथाली में यात्रा के बारे में बताया. साथियों के आग्रह पर गाँव की आदिवासी महिलाओं सोमवारी हेंब्रम, रायमनी टुडू और चंपा मुर्मू ने पारंपरिक गीत पेश किए.
शैलेंद्र ने संबोधित करते हुए कहा कि घृणा सबसे पहले खुद को मारती है फिर दूसरे को मारती है. गाँव के लोग, जिनकी फसलें बेवक्त की बारिश से चौपट हो गयी थी, खेतों में कुछ भी बचा लेने की फिक्र लिए वहां व्यस्त थे. फिर भी लोग ठहरे हुए थे और जत्थे के गीतों, नाटक और बातचीत को अपना समय और ध्यान दे रहे थे. सिद्धो मुर्मू ने नाश्ते केलिए मुढ़ी बांधकर दिया और अपनी असमर्थता अफ़सोस व्यक्त की कि इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कर पाए.
कारवां आगे बढ़ चला. बीच वृन्दावनपुर गाँव रस्ते में पड़ा, जहाँ एक और तिहारे पर उपेन्द्र भैया ने यात्रियों के लिए नाश्ते की तैयारी कर ली थी. यहाँ खुली जगह में खिली हुई धूप और पास में पहाड़, रंगे बिरंगे कैनवास से सजे बढ़िया सजे लीपे –पुते खपरैल की छत वाले पारम्परिक मिट्टी के घर आँखों को भा रहे थे. यहाँ ग्रामीण महिलाओं ने जत्थे के काफिले को देखकर उत्सुकता व्यक्त की. ज्योति मल्लिक ने उन्हें यात्रा के बारे में बताया. एक तेज तर्रार स्त्री ने जानना चाहा कि क्या ये आने वाले चुनाव से जुड़ा हुआ कोई कार्यक्रम है? ज्योति ने उनके संदेह को दूर किया. ग्रामीण चाहते थे जत्था उनके गाँव के भीतर चले और प्रदर्शन करे. लेकिन समय की कमी के कारण यह सम्भव नहीं लग रहा था. ज्योति ने उनसे कहा कि आप इसी जगह इक्कट्ठे हो जाईये, हम जरुर आपको कुछ दिखायेंगे. और आप भी कुछ गायें. लेकिन ग्रामीण तैयार नहीं हुए. तब इस तिराहे पर ही बच्चों ने गीत पेश किया और इसके बाद यात्री आगे बढ़ चले.
रास्ते में जनगीत गाते, ग्रामिणों से संवाद करते हुए यात्रा इसके बाद खड़ियाडीह पहुंची. यहां प्राचीन वीणापाणी क्लब में कलाकारों का स्वागत हुआ, जहाँ के जाहेर स्थान में सौ वर्ष पुराना शाल का वृक्ष है. यहां ग्रामीण कलाकार निखिल महतो और शिव नाथ सिंह ने यात्रियों का स्वागत किया. इन्होने सभी व्यवस्थाएं कर रखी थीं. इस क्लब में संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रही छात्राओं भारती, ममता, झूमा, जानकी ने स्वागत गीत पेश किए. वीणापाणि क्लब खड़ियाडीह की चार किशोर साथी भारती महतो, जानकी महतो, ममता महतो और झूमा महतो ने यात्रा के साथियों द्वारा प्रोत्साहित किये जाने पर शर्माते हुए थोड़ा संवाद किया. इनके गायन में इनकी प्रतिभा को सबने लक्षित किया और सराहा. यात्रा में साथ चल रहे बल कलाकारों ने इससे पहले इनसे संवाद कर झिझक तोड़ने की कोशिश भी की थी.
लिटल इप्टा, जमशेदपुर और घाटशिला के बाल कलाकारों ने मिलकर “डारा डिरी डा… ढाई आखर प्रेम के पढ़ ले जरा” (गीत व धुन: हरिओम राजौरिया) गाया.
निसार अली ने अपनी टीम में शामिल देवनारायण साहू, जुगनू राम, हर्ष सेन और ऊर्जावान दमादम मस्त कलंदर गीत और नाच पेश किया. गाँव की महिलायें और बच्चे-बच्चियां इस निराली प्रस्तुति से प्रभावित हो गये थे. निसार भाई ने अपने नाचा गम्मत लोक कला के बारे में गांव वालों को बताया. मनोरंज महतो ने झूमर गान सुनाया. दुलाल चन्द्र हांसदा ने जाहेर स्थान के बारे में बताया. जनसभा को परवेज़ आलम और प्रो. अली इमाम खान ने भी संबोधित किया. प्रेम की जरूरत और हालातों पर बात करते हुए इस यात्रा के मकसद को बताया. शेखर मल्लिक ने बांग्ला में संबोधित कर गांव वालों को यात्रा की जानकारी दी. यात्रा को कैमरे की नज़र से दर्ज़ कर रहे अंकुर सारस्वत ने बड़े रोचक अंदाज़ में संचालन किया.
अंकुर अपनी बाइक साथ रखे हुए थे और कभी बीजू भाई को रिकॉर्डिंग में मदद के लिए जत्थे के साथ और आगे पीछे से शूट करने के लिए बाइक में बिठा लेते थे. साथ ही यदि कोई अस्थायी यात्री या वरिष्ठ साथी लगातार चलते हुए थकान महसूसता तो उन्हें बिठाकर आगे पहुँचा आते.
खड़ियाडीह में क्लब के प्रांगण में कार्यक्रम हुए और यहीं दोपहर का खाना पक रहा था. ग्रामीणों ने बड़े आदर और प्यार से भोजन कराया. इसके बाद कुछ देर सुस्ताकर यात्रा के साथियों ने यहाँ से विदा ली.
इसके बाद केशरपुर-महुलिया मुख्य सड़क यात्रा जोड़ीसा से हुए स्थानीय निवासी तापस जी के निमंत्रण पर बड़बिल गांव पहुंची. जैसा कि पहले कहा कि ये युवा जत्थे को राजाबासा में प्रदर्शन करते देखकर उत्साहित होकर अपने यहाँ आने का न्यौता दे गये थे. बड़बिल गाँव में औचक ही यात्रा पहुँची थी, लेकिन गाँव में औरतें, बच्चे और मर्द जल्द ही आ जुटे. सबसे पहले अहमद बद्र ने जनसभा को संबोधित करते हए कहा कि, पोथी पढ़ कर एटम बम तो बना सकते हैं, लेकिन प्रेम नहीं कर सकते हैं. प्रेम अपने घर और अपने आसपास से शुरू होता है. प्रेम सीखने और सिखाने की जरूरत है. ज्योति मल्लिक ने यात्रा के उद्देश्य के बारे में बांग्ला भाषा में बताया. वे लगातार ग्रामीण महिलाओं से स्थानीय भाषा में संवाद करती रहीं. निसार अली के नाचा गम्मत दल ने हर्ष सेन का नृत्य पेश किया, जिसमें छत्तीसगढ़ी धरती और नदी का अभिवादन किया गया है. निसार भई इस लोकगीत का अर्थ बता रहे थे. पलामू इप्टा के साथियों ने गीत “साथ जुड़ो, मिलके चलो…/ इंसान को इंसान से जो काट रहा है/ वो कौन है, हथियार हमें बाँट रहा है/ तबाहियों की है धर्म को छूट किसलिए / दिलों में बोई जा रही है फूट किसलिए/ ज़हर में डूबी जड़ें उखाड़ फेंकिये…” प्रस्तुत किया। स्थानीय ग्रामीण विकास भगत ने जत्थे को धन्यवाद दिया. उनकी बातों में एक सहमति थी. इस प्रकार एक ऐसे गाँव में जहाँ समकालीन विभाजनकारी राजनितिक ताकतें हाल के वर्षों में अत्यधिक सक्रिय और प्रभुत्व बनाये हुए हैं, वहां जत्थे को आमंत्रित करना और इस सांस्कृतिक यात्रा के संदेश को स्वीकार करना यात्रा दल के लिए महत्वपूर्ण बात थी. नफ़रत और विद्वेष के सैलाब से गाँवों कस्बों को जिस तरह से चपेट में ले लिया गया है, उस जमीन पर प्रेम और आपसी भाईचारे के गीत गाना और इन गीतों से लोगों के मन को सहज छू लेना, इस यात्रा का ध्येय ही है.
जत्था चलने को हुआ तो ज्योति ने गांव वालों को अगले पड़ाव तक साथ चलने का अनुरोध किया, जिसे गांव वालों ने खुशी से मान लिया और मुख्य सडक तक छोड़ने आये. चलते हुए ज्योति ने ग्रामीण महिलाओं से संवाद किया. स्थानीय भाषा में संवाद करने के कारण महिलाएं ज्योति से सहजतापूर्वक खुल रही थीं. वे बात करना चाहती थीं. एक महिला ने अपने दुख दर्द साझा किया. बताया कि उसका बेटा उसे प्रताड़ित करता है. शायद उसे लगा हो कि ये लोग कोई मदद करेंगे. ज्योति ने उसे समझाया कि आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. अन्य के सहारे का मुंह मत जोहिये. इसके बाद जत्था सीधे दिन के अंतिम पड़ाव महुलिया (गालुड़ीह) की तरफ चल पड़ा.
महुलिया आंचलिक मैदान (गालूडीह) पहुँचते पहुँचते शाम घिर आई थी. अँधेरा हो चुका था, और यहाँ रौशनी की कोई पूर्व व्यवस्था नहीं थी. अंकुर आदि ने जत्थे के साथ मौजूद लाइट को क्लब के बिजली की आउटलेट से जोड़कर प्रकाश की व्यवस्था की. यहाँ लिटल इप्टा, जमशेदपुर के बच्चों ने जनगीत “पढ़के हम तो इंकलाब लायेंगे” गाकर शुरू किया. इसके बाद “ढाई आखर प्रेम के पढ़ले जरा, दोस्ती का एहतराम कर ले जरा” गीत पेश किया. रविंद्र चौबे और नाचा कलाकारों ने छोटी सी प्रस्तुति दी. लोगों की संख्या अधिक नहीं थी. कुछ किन्नर भी जत्थे की प्रस्तुतियां देख रहे थे. उपस्थित लोग वे ही थे, जिनकी आसपास दुकानें थीं. उन्होंने कहा कि यदि हम उजाले में कार्यक्रम करते तो और भी लोग जुटते. उन्होंने प्रस्ताव दिया कि कल सुबह यहाँ बाज़ार लगेगा और तब आप कार्यक्रम दिखाईयेगा. जत्थे ने सहमती जताई. (अगली सुबह यात्रा के साथियों ने गीत गाते हुए उसी बाज़ार के बगल से गुजरते हुए एक तरह से स्थानीय जनता को उसी तरह से सम्बोधित किया, जिसकी अपेक्षा थी.)
इसके बाद जत्थे के साथी पंचायत सचिवालय भवन पहुँचे और विश्राम किया. रात्रि भोजन के लिए रोटी सब्जी की व्यवस्था कॉम. डी डी लोहरा ने कर दी थी. उसके पहले उपेन्द्र भैया ने विश्राम की जगह पर पहले से पहुँच कर पकौड़े और चाय बना ली थी. उपेन्द्र भैया पूरी यात्रा में सभी का किसी अविभावक की तरह ख्याल रख रहे थे. चाय, नाश्ता के लिए (खासकर बच्चों से पूछ लेते) और कभी सत्तू, कभी भूंजे चिवड़ा-बादाम, चना-मुढ़ी, कचौड़ी खिलाते. आगे चलकर अलगे दिन जब यात्रा राखा माइंस पहुँची थी तो वे एक जगह पुन: पहले पहुंचकर नाश्ता-चाय तैयार कर चुके थे! इसी से शशि जी और अन्य ने विनोद करते हुए कहा कि ‘आईये, उपेन्द्र चौक पर चाय पीजिये!’
ढाई आखर प्रेम पदयात्रा का तीसरा दिन महुलिया से भाटिन की ओर चलने का था. 10 दिसंबर को यात्रा दिगड़ी, राखा माइंस, जादूगोड़ा मोड़ होते हुए भाटिन में ‘लुगु मुर्मू आवासीय विद्यालय’ पहुँची. पहले के दो दिनों के मुकाबले इस दिन की यात्रा लगातार और एकमुश्त लंबी थी. कुछ नये साथी जुड़ने की बात से सभी उत्साहित थे. इस दिन की यात्रा स्वर्णरेखा नदी, पहाड़ों के नज़दीक गुजरने वाली थी और आशातीत प्राकृतिक खूबसूरती ने सुबह से ही आगे की लंबी यात्रा के लिए मन को तरोताजा कर दिया था.
ढाई आखर प्रेम पदयात्रा का जत्था झारखंड पड़ाव के तीसरे दिन पिछले पड़ाव महुलिया से आगे बढ़ा. सुभाष चौक, गालूडीह बाज़ार पर यात्रा के कलाकारों ने जनता को संबोधित करते हुए जनगीत गाए और यात्रा का संदेश दिया. साथी प्रेम प्रकाश ने यात्रा के उद्येश्य को बताया. सुबह ही जमशेदपुर से मनोरमा, शशांक, लिटल इप्टा के कुछ और बाल कलाकार मिसाल, नम्रता, सुरभि, श्रवण, दिव्या, गणेश, लक्ष्मी जुड़ गये थे. बीजू टोप्पो ने ठीक ही कहा बच्चों ने नये गीतों और अपनी उर्जा से नया रंग भर दिया है! गालुडीह के कॉमरेड डी डी लोहरा विदा करने आये, जिन्हें विगत शाम ढाई आखर प्रेम गमछा देकर सम्मानित नहीं किया जा सका था, तो आज यह किया गया. यात्रा दल ने उनका आभार व्यक्त किया.
बराज कॉलोनी में जब ज्योति द्वारा विगत दिन की तरह घर से तैयार कर थर्मस में लाया गयी चाय पीने सब ठहरे तो वहां जत्थे को देखकर ग्रामीण जुट गये. ज्योति ने संवाद किया. शेखर ने एक ग्रामीण महिला से बात की, यात्रा के बारे में बताया. महिला ने कहा कि आप उस तरफ हमारे गाँव में आईये. लेकिन मार्ग तय था और समय की बाध्यता थी, तो शेखर ने विनम्रता से इसके लिए असमर्थता व्यक्त की. पर यहीं नाचा के कलाकारों द्वारा लोकनृत्य पेश किया गया. ज्योति ने बांग्ला भाषा और प्रेम प्रकाश ने हिन्दी में ग्रामीणों को यात्रा के उद्देश्य के बारे में बताया. ज्योति ने खूब कहा कि हम प्रेम का एक पौधा रोप कर जा रहे हैं, जिसे आप लोगों को सींचना है!
बराज की खूबसूरत वादियों से होते हुए, जहाँ प्रेम प्रकाश ने यात्रा के दौरान ही शायर और इप्टा जमशेदपुर के अध्यक्ष अहमद बद्र के लिखे गीत ‘ढाई आखर प्रेम ही जीवन’ को गाया. इप्टा, जमशेदपुर के अध्यक्ष अहमद बद्र साहब ने यात्रा में ही दो अर्थवान पंक्तियाँ भी दीं – “ढाई आखर प्रेम का/ ढाई आखर द्वेष/ एक से मन जुड़े/ दूसरा तोड़े देश”. साथियों ने समूह चित्र भी लिया. स्वर्णरेखा का पानी सूख चुका था. बराज के पुल से मछुआरे जाल फेंककर मछली पकड़ रहे थे. शेखर ने कहा कि इस नदी का गला टाटा कंपनी ने डैम – चांडिल, डिमना आदि में, बनाकर घोंट दिया है. फिर भी बराज का क्षेत्र दर्शनीय था, जहाँ से जोश से जनगीत गाते हुए जत्था दिगड़ी गाँव होकर राखा माइंस में केदार भवन पहुंची. इस बीच कथाकार कमल, विनय कृपाशंकर, जनमत के संपादक सुधीर सुमन, शशि कुमार, शायर गौहर अज़ीज आदि जमशेदपुर के साथी जुड़ गये. कमल ने यात्रा का बैनर उठा लिया और शेखर के साथ आगे आगे चलने लगे. राखा माइंस में यहां प्रख्यात मजदूर नेता कॉमरेड केदार दास के जीवन के बारे में कॉम शशि कुमार ने संक्षेप में बातें की. उन्होंने बताया कि केदार बाबू के जीवन भर की कमाई सिर्फ दो जोड़ी धोती और बनियान थी. यह बेमिसाल ईमानदारी का उदाहारण है. उनकी अंतिम यात्रा में दस किलोमीटर तक उन्हें चाहने वाली जनता की लम्बी कतार थी. कॉम शशि ने प्रेम की यात्रा के संदर्भ में कहा कि आंसू हों तो प्रेम के हों, छेड़ छाड़ हो तो प्रिय प्रिया के हों, कलह के न हो.
लिटल इप्टा के बाल कलाकारों ने “पढ़के हम तो इंकलाब लायेंगे” गाया.
माटीगोड़ा को पार कर जादूगोड़ा के यूसीआईएल कॉलोनी तक पहुँचने पर जमशेदपुर से प्रशांत भैया नाशिक इप्टा के युवा साथियों तल्हा और संकेत के साथ आ मिले. बीजू टोप्पो की छात्रा नोरा भी जुड़ीं. युवा शायर और फ़िल्मकार संजय सोलोमन, जिन्हें फ़ोटो फ़ीचर की जिम्मेदारी उठानी थी, यहीं जुड़े. बस स्टैंड पर कुछ देर सुस्ताने के बाद जादूगोड़ा बाज़ार से यात्रा गुजरने लगी. लोग जत्थे की तरफ उत्सुकता से देखते. जत्था बढ़ते हुए जादूगोड़ा चौक पहुंचा, जहां बाल कलाकारों ने पुन: जनगीत “ढाई आखर प्रेम के पढ़ले जरा” गाया. दोपहर की धूप और लगातार दस किलोमीटर से अधिक चलने के कारण पैर और देह थकने लगी थी, लेकिन हौसले पस्त नहीं हुए थे.
यात्रा दोपहर को जादूगोड़ा अंचल के भाटिन गांव में लुगू मुर्मू रेसिडेंशियल ट्राइबल स्कूल में पहुँच गयी, जहां स्कूल के बच्चों और स्कूल से जुड़े हुए लोगों ने पारंपरिक रूप से सांस्कृतिक जत्था का स्वागत किया. कतार बनाकर स्कूल के बच्चे दोनों तरफ से यात्रियों पर फूल बरसा रहे थे. स्कूल के बीच बड़ा सा आंगन था, जहाँ नगाड़ा आदि पारम्परिक बाद्य यंत्र सजाकर रखे थे, जिन्हें बाद में सुंदर प्रस्तुतियों में व्यवहृत किया जाना था. कक्षा चल रही थी. स्कूल पहुँचने पर स्कूल की महिला और पुरुष प्रतिनिधियों ने पारम्परिक जोहार किया और यात्रा के साथी भी उत्तर में जोहार का रहे थे. नाशिक के साथी तल्हा को शेखर बताते चल रहे थे कि आदिवासी समाज में किस प्रकार अभिवादन किया जाता है. लोटे में पानी देकर अतिथियों को पैर धोने की परम्परागत प्रथा का निर्वाह किया गया. स्कूल चलाने वाले रामो सोरेन और उनकी जीवनसाथी फूलो मुर्मू तत्परता से सारी व्यवस्था करते हुए दिख रहे थे. लखाई बास्के ने संचालन किया. उन्होंने अतिथि कलाकारों यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि सांस्कृतिक तरीके से गायन वादन द्वारा स्वागत करने का विचार था, लेकिन अब समयाभाव को देखते हुए हम आपको भिन्न प्रकार से स्वागत करेंगे. उन्होंने शाल के दोने में डूमू पीठा से स्वागत किया. बताया कि यह खलिहान में पहुंचने वाले साल के पहले धान से तैयार किया जाता है. यात्रियों से उन्होंने जब इसके स्वाद आदि के बारे में प्रतिक्रिया जाननी चाही तो कई साथियों ने खुलकर इसके अनुभव को साझा किया. महिला साथी इसकी रैसिपी जानना चाहती थीं. यह चावल के आटे से बनाया जाता है. लखाई बसके ने कई प्रकार के पीठा के बारे में बताया.
रामो सोरेन ने स्कूल के बारे में जानकारी दी. अपने श्वसुर के निधन के बाद उनके नाम को जीवित रखने के लिए पत्नी के साथ सास, जो उनके अनुसार एक बड़ा सा पेड़ हैं, जिनकी छाया में सबलोग सरंक्षित और पल्लवित महसूस करते हैं, के सहयोग से यह स्कूल 2020 से शुरू किया था. यहाँ ऐसे बच्चे, जिनके माता-पिता नहीं हैं, या वे इतने निर्धन हैं कि बच्चों को शिक्षा नहीं दे पाते, उन्हें गोद ले लिया जाता है. बीस बच्चों से और एक कमरे से शुरू होकर मात्र डेढ़-दो साल में यह आवासीय स्कूल आज अनेक पक्के कमरों और 180 बच्चों तक पहुँच गया है. राम सोरेन स्वयं भी लोक कलाकार हैं और टाटा स्टील के प्रोजेक्ट से जुड़कर देश भ्रमण कर चुके है. वे विदेश भी जा चुके हैं. वे कहते हिं कि स्कूल मात्र बच्चों को शिक्षा देकर अच्छे नम्बरों से पास कराने का नाहिंन, उनके कैरियर को स्थापित करने में सहयोग करने वाला, उनके सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का भी आधार तैयर करने वाला होना चाहिए. स्कूल के बारे में विस्तार से बताने के बाद स्कूल के शिक्षक शिक्षिकाओं का परिचय कराया.
यहीं दोपहर और रात के भोजन व विश्राम की व्यवस्था थी. साथियों को भात दाल, सब्जी का सुस्वादु भोजन कराया गया. भोजन के बाद धमसा बजाकर पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत हुआ, जिसमें यात्री कलाकार भी उत्साह से शामिल हो गये. इप्टा पालमू के कलाकारों ने उमेश नज़ीर के गीत “बोल भाई झारखंड” जाकर सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत की.
लिटल इप्टा, जमशेदपुर के बच्चों ने, जिनका गाया ‘डारा डिरी डा” खूब पसंद किया जा रहा था और बार बार गाने का आग्रह किया जा रहा था, इसी के साथ जनगीत “ढाई आखर प्रेम के पढ़ ले जरा” पेश किया. स्कूल के बच्चों ने लोकगीत के अलावा ओलचिकी वर्णमाला पर आधारित लखाई बास्के रचित गीत गाया. इप्टा घाटशिला के कलाकारों ने संथाली गीत “आले ले ले दिशोम” गाया, जिसमें स्कूल की सह संस्थापिका फूलो मुर्मू भी प्रमुदित होकर शामिल हुईं. निसार भाई की अगुवाई में नाचा गम्मत के कलाकारों में लोक नाटक प्रस्तुत किया. अँधेरा हो चुका था. पश्चिम की ओर बिलकुल सामने पहाड़ थे. उत्तर पूर्व में खेतों का खुलापन. ठंड बेहद बढ़ गयी थी. इसके बाद प्रख्यात वृतचित्रकार बीजू टोप्पो की फिल्म का प्रदर्शन हुआ. स्कूल के बच्चों और सबने इन रोचक वृत्तचित्रों को देखा और फ़िल्मकार से परस्पर संवाद भी किया.
इसके (फ़िल्म प्रदर्शन से) पूर्व यहीं से घाटशिला के साथी विदा हुए. इन तीन-चार दिनों में इप्टा, घाटशिला के बाल साथियों मल्लिका, गीता, मानव और स्नेह्ज की यात्रा के साथियों, खासकर हर्ष सेन और यात्रा वाहन के युवा चालक से बेहद आत्मीयता हो गयी थी. बिछुड़ने के भाव से भावुक होकर इन साथियों की आँखें भीग गयीं. लौटते हुए पुरे समय वे गुमसुम रहे. ये चाहते थे कि यात्रा समापन से पहले एक बार और जत्थे में जाकर शामिल होंगे. यात्रा ने अपनेपन और मित्रता के अहसास को घरे भर दिया था, जिसकी कसक बिछुड़ने पर महसूस हुई. यही दोस्ती और प्यार तो यात्रा का मक़सद था!
ढाई आखर प्रेम की यात्रा का कारवां आगे बढ़ता रहा. यह आगे बढ़ता रहेगा. यह यात्रा हर तारीख को पारकर हमारे भीतर, समाज में, दुनिया में बढ़ती रहेगी. यात्रा के अनुभव इस अभियान से जुड़े हर साथी को हमेशा रौशनी और हौसला देते रहेंगे. बंधुता, जो आपसी रही और जहाँ जहाँ गये, वहां बनाई, सांस्कृतिक कर्म के लिए बहुत से प्रेरक तत्वों में से एक अन्य जरूरी तत्व के तौर पर हासिल हुआ. यात्रा के लिए तैयारियों के दौरान संपर्क अभियान से लेकर यात्रा का झारखण्ड अध्याय पूरा होने तक हम सभी साथियों ने स्मृतियों के अलावा मैत्री, अपनत्व, समझ और लोक सांस्कृतिक गठबंधन पाया. बहुत कुछ पाया!
ढाई आखर प्रेम की यात्रा ज़िन्दाबाद!