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तिरिया आदम गाछ ढोर सब भीतर बाहर प्रेम रे | Love is Inside Out in Birds, Humans, Trees, Animals

इस गीत को इप्टा जमशेदपुर के नन्हे साथियों ने राजबासा (पूर्वी सिंगभूम, झारखण्ड) में ‘ढाई आखर प्रेम’ यात्रा के दौरान 9-दिसम्बर-2023 को गया था.
This song was performed by young members of Little IPTA, Jamshedpur during the ‘Dhai Akhar Prem’ Jatha at Rajabasa (East Singhbhum, Jharkhand) on 9-December-2023.

https://youtu.be/UMJZIOpMGw8

गीत और धुन: मनीष श्रीवास्तव
Lyrics and composition: Manish Shrivastava

ढाई आखर प्रेम साधो, ढाई आखर प्रेम
कहे कबीर सुनो भाई साधो, ढाई आखर प्रेम
तिरिया आदम गाछ ढोर सब भीतर बाहर प्रेम
ढाई आखर प्रेम..

रंग-रंग का भेष बनाया, भांत-भांत की बानी
भेद-भेद का अन्न पकावे, स्वाद-स्वाद का पानी
मन की माटी एक सबहिं जग जामे उपजे प्रेम,
ढाई आखर प्रेम…

जुगति करिकै जड़मति, माया करि अथाह
बड़ा अभागा कुमति मारा, लड़ता और लड़ाय
सुख दुःख बांटे राम मेरो गैल सुमति की प्रेम
ढाई आखर प्रेम…

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